राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को 2 सप्ताह में दस्तावेज तैयार करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी। बीते 5 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि पिछले 7 सालों से लंबित इस मामले को और नहीं टाला जाएगा। 8 फरवरी से पहले सभी पक्ष अनुवाद, आपस में उनके लेन-देन की प्रक्रिया पूरी कर लें।
आपको बता कि इससे पहले , सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले इस मामले की प्रमुख याचिका पर पूरी सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा है कि पहले मुख्य याचिकाकर्ता की सुनवाई होगी, उसके बाद अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी।
वही , राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की बेंच 13 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है। वरिष्ठ वकील व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की ओर से इस मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव तक डालने की अपील की गई थी, जिसे शीर्ष अदालत ने ठुकरा दिया।
अयोध्या में कुल 2.7 एकड़ की विवादित जमीन पर हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों ने दावा ठोंक रखा है। 5 दिसंबर, 2017 को बेंच ने इस मामले की सुनवाई के लिए 8 फरवरी की तारीख तय की थी। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे जैसे वरिष्ठ वकीलों ने देश के राजनैतिक हालात को देखते हुए सुनवाई टालने की गुहार लगाई थी। हालांकि अदालत ने सुनवाई को टालने से इनकार करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ताओं के व्यवहार को ‘शर्मनाक’ करार दिया था।
आपको बता दें कि सुनवाई में सबसे बड़ी अड़चन हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, पाली सहित सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद था। सुप्रीम कोर्ट में 29 नवंबर, 2017 को हिंदू महासभा के वकील विष्णु जैन ने जानकारी दी थी कि मामले से जुड़े करीब 10 हजार पन्नों के दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है।
बाबरी मस्जिद के स्वामित्व की कानूनी लड़ाई हारने के सात दशक बाद 10 अगस्त, 2017 को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए एक हलफनामा दायर किया था। इसमें बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर अपनी दावेदारी जताते हुए कहा था कि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी।
बता दे कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को फैसला सुनाया था। इसमें न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों (हिंदू, मुस्लिम और निर्मोही अखाड़ा) में बांट दिया था। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी।
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