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फूस के छप्पर से 340 कमरों वाले भवन की शोभा बढ़ाएंगे कोविंद

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नयी दिल्ली : कभी फूस के छप्पर से बारिश के दिनों में टपकते पानी से बचने के लिए भाई-बहनों के साथ छोटे से कोने में दुबकने वाला शख्स अब दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सरकारी भवन की शोभा बढ़ाएगा। यह कोई और नहीं कानपुर देहात के एक छोटे से गांव परौख में जन्मे श्री रामनाथ कोविंद हैं, जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति के लिए निर्वाचित हुए हैं।

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परौख की संकरी गलियों में बचपन गुजारने वाले श्री कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति बने हैं और उनका इस्तकबाल करने के लिए तैयार है रायसीना हिल्स स्थित 340 कमरों और 750 कर्मचारियों वाला राष्ट्रपति भवन।

इटली के क्यूरनल पैलेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी निवास

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देश के प्रथम नागरिक का यह आवास-सह-सचिवालय इटली के रोम स्थित क्यूरनल पैलेस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी निवास स्थान है। वर्ष 1912 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जो 17 साल की मेहनत के बाद 1929 में बनकर तैयार हुआ था। इसके निर्माण में करीब 29 हजार श्रमिक लगे थे।

1950 के बाद इसका नाम वायसराय हाउस से बदलकर राष्ट्रपति भवन हो गया
वर्ष 1911 में जब भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया था, तो ब्रितानी हुकूमत को इसे बनाने की जरूरत महसूस हुई थी, जिसके लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था। वर्ष 1950 के बाद इसमें भारत के राष्ट्रपति रहने लगे और इसका नाम वायसराय हाउस से बदलकर राष्ट्रपति भवन हो गया।

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जाने-माने वास्तुकार सर लैंडसीर लुटियन की निगरानी में रायसिनी और माल्चा नामक दो गांवों को हटाकर उनकी जगह इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण किया गया था। इसीलिए इसे रायसीना हिल नाम दिया गया। आजादी से पहले इसे वायसरॉय हाउस के नाम से जाना जाता था और यह भारत का सबसे बड़ा निवास स्थान था।

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वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति, उन कक्षों में नहीं रहते, जहां वायसरॉय रहते थे, बल्कि वह अतिथि-कक्ष में रहते हैं। लगभग 70 करोड़ ईंटें और 35 लाख घन फुट (85000 घन मीटर) पत्थर से बने इस भवन में लोहे का इस्तेमाल न के बराबर हुआ था।

राष्ट्रपति भवन के बैंक्वेट हॉल में एक साथ 104 अतिथि बैठ सकते हैं

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राष्ट्रपति एस्टेट में एक ड्राइंग रूम, एक खाने का कमरा, एक बैंक्वेट हॉल, एक टेनिस कोर्ट, एक पोलो ग्राउंड और एक क्रिकेट का मैदान तथा एक संग्रहालय शामिल है। राष्ट्रपति भवन के बैंक्वेट हॉल में एक साथ 104 अतिथि बैठ सकते हैं। इतना ही नहीं इसमें न सिर्फ संगीतकारों के लिए दीर्घा है, बल्कि इसमें प्रकाश की भी अछ्वुत व्यवस्था है। ये रोशनियां खानसामों को यह संकेत देती हैं कि उन्हें कब खाना परोसना है, कब नहीं परोसना है और कब कक्ष की साफ सफाई करनी है।

इसके मुगल गार्डन में अकेले गुलाब की ही 250 से भी अधिक किस्में हैं

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राष्ट्रपति भवन के पीछे मुग़ल गार्डन है जो मुगल और ब्रिटिश शैली का एक अनूठा मिश्रण है। यह 13 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और यहाँ फूलों की कुछ विदेशी किस्में भी शामिल हैं। यह हर वर्ष लोगों के लिए फरवरी-मार्च के मध्य महीने में खुलता है। इस गार्डन में अकेले गुलाब की ही 250 से भी अधिक किस्में हैं। मुगल गार्डन के बारे में सबसे पहले लेडी हार्डिंग ने सोचा था। उन्होंने श्रीनगर में निशात और शालीमार बाग देखे थे, जो उन्हें बहुत अच्छे लगे थे। बस तभी से मुगल गार्डन बनाने की बात उनके मन में बैठ गयी थी।

मुगल गार्डन फरवरी-मार्च के मध्य आम जनता के लिए खोला जाता है

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देश के अब तक जितने भी राष्ट्रपति इस भवन में निवास करते आए हैं, उनके मुताबिक मुगल गार्डन में कुछ न कुछ बदलाव जरूर हुए हैं। प्रथम राष्ट्रपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस गार्डन में कोई बदलाव नहीं कराया, लेकिन उन्होंने इस खास बाग को जनता के लिए खोलने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि क्यों नहीं यह गार्डन जनता के लिए भी कुछ समय के लिए खोला जाये। उन्हीं की वजह से प्रति वर्ष मध्य-फरवरी से मध्य-मार्च तक यह आकर्षक गार्डन आम जनता के लिए खोला जाता है।

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