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कांग्रेस ने सरकार को घेरा

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रायपुर : छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संशोधन विधेयक के विरोध में कांग्रेस के आदिवासी विधायकों ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष शिशुपाल सोरी, विधायक मोहन मरकाम और संतराम नेताम शामिल हैं। छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संशोधन विधेयक के विरोध में ये तीनों नेता मीडिया से रू-ब-रू हुए हैं। गौरतलब है कि कल सरकार के चार मंत्रियों ने भी भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।

सरकार ने कांग्रेस पर आदिवासियों को भ्रमित करने का आरोप लगाया था, जिसका पलटवार आज कांग्रेस कर रही है। आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष शिशुपाल सोरी ने कहा कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक का कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया था, लेकिन संख्याबल के आधार पर विधेयक पारित हो गया था। लेकिन इसके दुष्परिणाम क्या होंगे, ये चिंता का विषय है। शिशुपाल सोरी ने कहा कि भू-राजस्व संहिता की धारा- 165(6) आदिवासियों की जमीन को के अंतरण को लेकर है।

इस प्रावधान के तहत गैर आदिवासी को जमीन का अंतरण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन केवल वस्तु नहीं है, बल्कि उनकी संस्कृति का अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा कि अगर ये तीनों नहीं होंगे, तो आदिवासियों का अस्तित्व भी नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ये सर्वमान्य कानून है।

गुण-दोषों पर चर्चा नहीं हो जाती, तब तक इस पर कोई फैसला नहीं हो सकता। संविधान में भी इसे प्रतिबंधित किया गया है और यह संविधान में धारा- 144 में निहित है। उन्होंने कहा कि कानून में जो संशोधन किया गया है, उसमें कहा गया है कि सरकार समय-समय पर जो क्रय नियम लाएगी, उस पर आदिवासी क्षेत्रों में धारा 165 (6) लागू नहीं होगी, यही सबसे खतरनाक पहलू है। सोरी ने ये भी कहा कि संशोधन विधेयक लाने के पहले राज्यपाल की ओर से कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया, जो संविधान के खिलाफ है।

अधिसूचित इलाकों के कानून के संशोधन का वास्तविक अधिकार राज्यपाल के पास है, तो फिर सरकार ने ये संशोधन कैसे कर दिया। शिशुपाल सोरी ने कहा कि कानून में किया गया संशोधन संविधान के खिलाफ है। शिशुपाल सोरी ने कहा कि हम आदिवासी हैं, लेकिन हम विकास विरोधी नहीं है। भू-अर्जन कानून की व्यवस्था पहले से की गई है। ऐसे में संशोधित कानून की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा साफ है कि आदिवासियों की जमीन लेकर बड़े उद्योगपतियों को दे दिया जाए। संशोधित कानून में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि जमीन का उपयोग स्कूल बनाने, अस्पताल बनाने में किया जाएगा।

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