नई दिल्ली : पटना स्थित एम्स और गुड़गांव के मानेसर स्थित राष्ट्रीय मस्तिष्क शोध संस्थान (एनबीआरसी) के वैज्ञानिकों ने सात समंदर पार लंदन के पब में रखी वर्षों पुरानी खोपड़ी के भारतीय होने का दावा किया है। इनका दावा है कि यह खोपड़ी करीब 160 साल पहले हुए सैनिक विद्रोह में शामिल सैनिक आलम बेग की है। खास बात यह है कि इन डॉक्टरों ने यह दावा केवल खोपड़ी की फोटो देखकर ही किया है। यह अब अपने इस शोध को प्रकाशित कराने जा रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि इस खोपड़ी को भारत लाकर इसका ससम्मान अंतिम संस्कार किया जाए।
बता दें कि लंदन स्थित क्वीन मैरी कॉलेज में ब्रिटिश इंपीरियल हिस्टरी के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. किम वाग्नेर की हाल में आई किताब ‘द स्कल ऑफ आलम बेग : द लाइफ एंड डेथ ऑफ ए रेबेल ऑफ 1857’ के अनुसार वर्ष 1963 में उन्हें केंट में वाल्मेर नगर स्थित एक पब लॉर्ड क्लाइड पब में एक खोपड़ी मिली थी। लॉर्ड क्लाइड पब के नए मालिक को यह कपाल एक छोटे से स्टोर रूम में मिला था। जिसमें इसके बारे में लिखा था कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में शामिल एक भारतीय सैनिक का आलम बेग का है जो स्कॉटलैंड की मिशनरी के पूरे परिवार की हत्या का आरोपी था। वाग्नेर ने बताया है कि आगे की खोज में पता चला कि बेग की रेजीमेंट मूलत: कानपुर में स्थापित थी।
लेकिन उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती इलाके में रावी नदी के किनारे त्रिम्मू घाट की लड़ाई में भाग लेते समय पकड़ा गया था। उनका कहना है कि जिस समय बेग को फांसी दी गई उस समय कैप्टन एआर कास्टेलो ड्यूटी पर था, जो खोपड़ी को अपने साथ इंग्लैंड ले गया। वाग्नेर की माने तो उनका शोध और लेखन 2014 में तब शुरू हुआ, जब बेग के परिवार ने उनसे संपर्क किया जो खोपड़ी लेने वहां गया था। एम्स पटना के एनॉटमी विभाग के डॉ. आशुतोष की मानें तो खोपड़ी में मौजूद कई ज्वाइंट्स और हड्डियों का आंकलन करने के बाद निष्कर्ष निकाला है कि जिस व्यक्ति की यह खोपड़ी है उसकी आयु मृत्यु के दौरान तकरीबन 32 वर्ष रही होगी और शरीर की लंबाई तकरीबन पांच फुट साढ़े सात इंच।
स्वतंत्रता सेनानी आलम बेग से जुड़े इतिहास पर गौर करें तो वैज्ञानिकों का ये शोध काफी हद तक मिलता है। डॉ. आशुतोष ने बताया कि इसकी जानकारी मिलने के बाद उन्होंने इसका पता लगाने वाले लंदन के इतिहासकार डॉ. किम वाग्नेर से संपर्क किया। उन्होंने खोपड़ी की स्केल के साथ कुछ तस्वीरें भेजने का आग्रह किया था। तस्वीरें मिलने के बाद डॉ. आशुतोष और एनबीआरसी की टीम ने शोध शुरू किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि 160 वर्ष पुरानी खोपड़ी की पहचान करने के लिए उनके पास दो ही चिकित्सीय विकल्प थे, पहला डीएनए और दूसरा फ्यूजन टेस्ट। उन्होंने दूसरी तकनीक फ्यूजन की मदद से खोपड़ी और आलम बेग की शारीरिक बनावट का मिलान किया।
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