नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक स्व. अशोक सिंहल की जीवनी पर आधारित पुस्तक का लोकार्पण किया। यह पुस्तक अशोक सिंहल फाउंडेशन के ट्रस्टी और सामाजिक कार्यकर्ता महेश भागचंदका द्वारा लिखी गई है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी, विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री चंपत राय और भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी महाराज भी मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा दीप प्रज्ज्वलन और भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
इस मौके पर अशोक सिंहल के जीवन पर आधारित लघु फिल्म भी दिखाई गई जिसमें उनके बाल्यकाल से लेकर पूरे जीवनकाल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडऩे और जीवनभर विभिन्न दायित्वों के निर्वाह करने को समाहित किया गया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि अशोक सिंहल पर आधारित पुस्तक ‘अशोक सिंहल: स्टॉन्च एंड पर्सविरेंट एक्सपोनेंट ऑफ हिन्दुत्व’ के लोकार्पण पर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है। उनका जीवन अनुशासित और लक्ष्य को पूरा करने के लिए समर्पित रहा। उन्होंने जो योगदान दिया उससे समाज और देश की भावी पीढ़ी को निश्चित ही लाभ मिलेगा।
इस अवसर पर आरएसएस के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि अशोक सिंहल महापुरुष थे और यही वजह है कि जीवनभर वे अपने पथ पर अग्रसर रहे। गो, गंगा, हिन्दू और राम मंदिर का विषय उनका लक्ष्य रहा। सरकार्यवाह ने अशोक सिंहल के साथ अपना एक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि एक बार अस्वस्थ होने पर भी उन्होंने विदेश जाकर अपने कार्यों को गति देने की इच्छा जाहिर की और अनुरोध करने पर भी वे विदेश होकर आए। वहां से लौटने पर मालूम हुआ कि स्वास्थ्य बिगड़ा होने के बावजूद भी उन्होंने 20 दिनों तक हर दिन दो से तीन बैठकों में हिस्सा लिया। वे चाहते थे कि देश की तस्वीर बदलनी है और वे उसमें सफल भी हुए।
विहिप के महामंत्री चंपत राय ने कहा कि अशोक सिंहल के नाम से आज सभी परिचित हैं जिनका ध्येय हिन्दू धर्म और संस्कृतिक को बढ़ाना था। उन्होंने सरसंघचालक गुरुजी के सान्निध्य में आरएसएस के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया। इसके बाद वर्ष 1982 से वे विहिप से जुड़े गए और शेष जीवन को वहीं समर्पित कर दिया। उन्होंने साधु-संतों को अपने साथ एक मंच पर लेकर आए। सरसंघचालक रज्जू भैया के सान्निध्य में अशोक सिंहल 25 वर्षों तक प्रचारक रहे। इसके बाद स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी महाराज ने कहा कि अशोक सिंहल ने पूरा जीवन जिया और एक मिसाल पेश की।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी पूरा जीवन उन्होंने समाज के प्रति समर्पित कर दिया, जबकि परिवार के लोगों ने उन्हें चेतावनी भी दी, लेकिन वे अपने पथ से डिगे नहीं। श्रीराम जन्म भूमि को लेकर चलाए गए आंदोलन से जुड़े लोग शायद ही कभी अशोक सिंहल को भूल पाएंगे। महेश भागचंदका ने कहा कि वह चाहते थे कि हिन्दू हृदय सम्राट अशोक सिंहल के जीवन से जुड़े संस्मरण पुस्तक के माध्यम से प्रकाशित कर देश-विदेश में पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि अशोक सिंहल सफेद वस्त्र पहनने वाले संत थे जिनके कण-कण में हिन्दू विद्यमान था। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में वह सब दर्ज है जिसके लिए वे जाने जाते थे। आरएसएस और विहिप में उनका जीवन, सोच, हिन्दुत्व की शिक्षा, सुधार के कार्यों का पुस्तक में वर्णन है।
उपराष्ट्रपति ने दी मातृभाषा बोलने की प्रेरणा
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि मेरा तर्क है कि अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं अंग्रेजी के विरुद्ध नहीं हूं, अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं का ज्ञान भी होना अच्छी बात है, लेकिन अपनी मातृभाषा को विशेष महत्व देना चाहिए। वर्तमान में विदेशी प्रतिनिधियों के भारत दौरे को लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे लोग यहां आकर भी अपनी मातृभाषा में बात करते हैं, जो कि हम सभी के लिए एक नसीहत है।
उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति के अलग मायने हैं, जो प्रसन्नता नमस्कार बोलने में है वह गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग या गुड नाइट बोलने में नहीं है। जैसे मां, अम्मी या अम्मा बोलने में है, वह मम्मी बोलने में नहीं है। उन्होंने कहा, आज लोग वंदे मातरम बोलने का विरोध करते हैं, मैं कहता हूं कि वंदे मातरम बोलने में हर्ज क्या है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोग बातों के गलत मायने निकाल लेते हैं। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषा, जन्मभूमि और मातृभूमि का सदैव स्मरण रखना चाहिए।
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