नई दिल्ली: निजी अस्पतालों में इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में मैक्स और फोर्टिस के बाद अब दिल्ली के बीएलके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का नाम भी जुड़ने लगा है। यहां एक पांच साल की बच्ची को बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए भर्ती किया गया था। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने बच्ची की शिकायतों पर गौर नहीं किया, जिसकी वजह से बच्ची की मौत हो गई। मिली जानकारी के अनुसार पांच साल की दीवा गर्ग जन्मजात डिस्रेथ्रोपोएटिक एनीमिया से पीड़ित थी। इसके इलाज (बोन मैरो ट्रांस्प्लांट) के लिए बीते 31 अक्टूबर को बीएलके अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
डॉक्टरों ने परिवार को आश्वासन दिया कि दिवा के लिए एक मैच भी मिला है। दिवा को अस्पताल के एक अलग वार्ड में भर्ती किया गया, यहां उसके साथ केवल उसकी मां को रहने की अनुमति दी गई। उसे 25 दिन तक भर्ती रखा गया। 11 नवंबर को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सर्जरी की गई। 13 नवंबर को बच्ची को बुखार आया, लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि कोई समस्या नहीं है। परिजनों की शिकायत है कि 22 नवंबर को दिवा ने सिरदर्द की शिकायत की और उसे श्वास लेने में कठिनाई हो रही थी। डॉक्टरों ने उसे दवा दी और बताया कि कोई बड़ी बात नहीं है। अगले दिन, डॉक्टरों ने उसे एहतियाती तौर पर आईसीयू में रखने का सुझाव दिया।
अचानक से उसे वेंटिलेटर पर रखा, ताकि वो सांस ले सके। इसके बावजूद भी डॉक्टरों ने परिवार को आश्वस्त किया कि चिंता करने की कोई बात नहीं है। 25 नवंबर की दोपहर को, डॉक्टरों ने दिवा को मृत घोषित कर दिया। दिवा के पिता नीरज गर्ग ने बताया कि डॉक्टरों ने कहा उसे अचानक एक संक्रमण ने घेर लिया, जो बिना नियंत्रण के फैल गया। उन्होंने अस्पताल से पूछा है कि जब वह अलग वार्ड में थी, तो उसे संक्रमण हो गया? अस्पताल ने हमें कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। इस पर अस्पताल ने किसी तरह की लापरवाही से इंकार किया है। संक्रमण के सवाल पर उनका कहना है कि यह मरीज के पेट से ही उत्पन्न हुआ था। लेकिन मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम हो गई थी कि वह दवाओं के बाद भी संक्रमण से नहीं जीत सकी।
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