पश्चिमी दिल्ली: शिक्षा विभाग के अधिकारियों से दुश्मनी मोल लेना एक सरकारी स्कूल के शिक्षक को भारी पड़ रहा है। पीडि़त का आरोप है कि उसे अधिकारियों ने झूठे आरोपों में फंसा कर उलझा दिया है। न्याय पाने के लिए पीडि़त कैट (सेंट्रल एडमिनिस्टे्रटिव ट्रिब्यूनल) से लेकर हाईकोर्ट तक गया है, लेकिन अधिकारी उन्हें बीते सालों में किसी न किसी झूठे मामलों का हवाला देकर फंसाते रहे हैं। इस मामले में पीडि़त के पास आरटीआई से प्राप्त सूचना भी है, जिसमें उन्हें जिला पुलिस तक ने क्लीनचिट दी हुई है, इसके बावजूद पीडि़त को न्याय नहीं मिल पाया है। विभाग के आरोपों का दंश झेल रहा यह शिक्षक फिलहाल टीजीटी है और एक बार स्टेट अवार्ड भी जीत चुका है।
प्रेमचंद बाहरी जिला के बुध विहार इलाके में परिवार के साथ रहते हैं। वह वर्ष 1989 में शिक्षा विभाग में बतौर टीजीटी भर्ती हुए थे। नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी कि तभी किसी बात को लेकर अधिकारियों से उनकी ठन गई। पीडि़त प्रेमचंद के मुताबिक 2006 में अचानक उन्हें विभाग ने यह कहते हुए आरोपी बना दिया कि उन्होंने उस वक्त की वाइस प्रिंसीपल (सर्वोदय विधालय सैक्टर-2) की झूठी शिकायत की है। इस मामले में पीडि़त को विभाग की ओर से मॉयनर पैनेल्टी करते हुए उनका इंक्रीमेंट रोक दिया गया और उनका ट्रांसफर कर दिया गया। झूठे आरोपों का सिलसिला यहीं पर नहीं थमा, 2008 में (पूसा स्थित सरकारी स्कूल में तैनाती के दौरान)एक बार फिर विभाग ने उनपर यह कहते हुए मामला बना दिया कि उन्होंने 8 वीं कक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के अंकों में छेड़छाड़ की है।
विभाग द्वारा आरोप लगाने का सिलसिला यहीं पर नहीं थमा, 2009 में विभाग ने एक बार फिर पीडि़त पर कई एफआईआर दर्ज होने और कई घंटों तक हवालात में बंद रहने का आरोप लगा दिया। पीडि़त का कहना है कि विभाग के इन आरोपों के खिलाफ वह पहले कैट में गए थे, जहां कैट ने उनके पक्ष में फैसला दिया। कैट ने उन्हें क्लीनचिट देते हुए अधिकारियों को नसीहत दी और रुका हुआ इंक्रीमेंट रिलीज करने के आदेश दिए। विभाग ने उनका रुका हुआ इंक्रीमेंट तो रिलीज कर दिया, लेकिन विभाग ने 28 नवंबर 2012 को हाईकोर्ट में अपील लगा दी। क्योंकि इस मामले में विभाग के एक डायरेक्टर कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के मामले में फंस सकते थे। इतना ही नहीं इस बार 26 अप्रैल 2017 को विभाग की ओर से उन पर आरोप लगाया गया कि आप पर सुल्तानपुरी थाने में 3 एफआईआर दर्ज हैं और आप 6 दिन तक हवालात में रहे हैं, जिसकी सूचना आपने विभाग से छिपाई है।
पीडि़त का कहना है कि इन आरोपों के बाद उन्होंने डीसीपी आउटर के यहां आरटीआई लगाकर अपने ऊपर दर्ज एफआईआर का ब्यौरा मांगा। डीसीपी कार्यालय द्वारा दिए गए जवाब में स्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि नो क्रिमिनल केस रजिस्टर्ड अगेेंस्ट प्रेमचंद्र आरओ-ई-44 राजीव नगर, बुध विहार। इसके अलावा शिक्षा विभाग के डीडी साउथ वेस्ट और डीडी नार्थ वेस्ट ने भी आरोपी को क्लीनचिट दे दी। लेकिन विभाग के अन्य अधिकारी इस शिक्षक को बख्सने के मूड में दिखाई नहीं दे रहे हैं। पूरे मामले पर आरोपी शिक्षक का कहना है कि 24 जून 2004 को पड़ोसी से उनका किसी बात को लेकर मामूली झगड़ा हो गया था।
जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर नंबर 689/04 पर धारा 323/341/34 दर्ज हुई थी। इसमें सभी धाराएं बेलेबल थीं, लिहाजा उन्हें थाने से ही जमानत पर छोड़ दिया गया था, बाद में इस मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता भी हो गया था। हैरान कर देने वाली बात यह भी है कि आरोप लगाने वाले अधिकारियों ने रोजनामचे में दर्ज की गईं डीडी एंट्री व 107/151 के कलंदरे को भी एफआईआर बता दिया है। जबकि यह दो पड़ोसियों के बीच होने वाले मामूली झगड़े की मात्र शिकायतें ही थीं। हैरान कर देने वाली बात यह भी है कि आरोपी शिक्षक ने अपने के सभी सबूत अधिकारियों को दिए हैं, इसके बावजूद उन पर लगाए गए दाग धुलने का नाम नहीं ले रहे हैं।
बहरहाल जो भी हो यह पीडि़त शिक्षक बीते 10 सालों से न्याय के लिए भटक रहा है, लेकिन ऊपर बैठे अधिकारी उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इन मनगढ़ंत आरोपों की वजह से वह मानसिक रूप से बीमार भी हो चुके हैं। उधर जब हमने इस मामले पर विभाग डीडीइ (एनडब्ल्यू-बी) पीतमपुरा शशिबाला सैनी से बात की तो उनका कहना था कि यह मामला संज्ञान में है। यह काफी पुराना मामला है और मुझे इसकी अधिक जानकारी नहीं है।
– कुमार गजेन्द्र