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42 साल पुरानी इस कंपनी को बेच रही है केंद्र सरकार

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42 साल पुरानी मिनी रत्न कंपनी ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन की पूरी हिस्सेदारी केंद्र सरकार बेचने जा रही है। सरकार की ड्रेजिंग कॉर्प में 73.46 फीसदी हिस्सेदारी है। इससे सरकारी खजाने में लगभग 1400 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। सरकार की ड्रेजिंग कॉर्प को बेचने के लिए 1 महीने में बोली मंगाने की योजना है। यह कंपनी शिपिंग मिनिस्ट्री के अधीन है। विशाखापटनम में ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन की स्थापना 1976 में हुई थी। यह कंपनी मेंटेनेंस ड्रेजिंग, कैपिटल ड्रेजिंग, बीच नरिशमेंट, लैंड रिक्लेमेशन, शैलो वाटर ड्रेजिंग, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टैंसी और मरीन कंस्ट्रक्शन से जुड़ी हुई है। कैबिनेट कमिटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स पहले ही ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है।

ड्रेजिंग कॉर्प में पूरी सरकारी हिस्सेदारी एक साथ बेचने पर सहमति है। सरकार की ड्रेजिंग कॉर्प में 73.46 फीसदी हिस्सेदारी है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन का प्रदर्शन पिछले कई साल से निराशाजनक रहा है। वित्त वर्ष 2018 की तीसरी तिमाही में ड्रेजिंग कॉर्प को 22.5 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में ड्रेजिंग कॉर्प को 14 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। वित्त वर्ष 2018 की तीसरी तिमाही में ड्रेजिंग कॉर्प की आय 21.1 फीसदी घटकर 119.9 करोड़ रुपए रही है। वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में ड्रेजिंग कॉर्प की आय 151.9 करोड़ रुपए रही थी। ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन में करीब 500 कर्मचारी हैं।

शिपिंग मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक, कंपनी के कर्मचारियों के पास वीआर का ऑप्शन है। इसके अलावा कंपनी के मालिक ही कर्मचारियों पर फैसला लेंगे। आपको बता दें कि यह बीएसई और एनएसई पर लिस्टेड कंपनी है। यह कंपनी मेंटेनेंस ड्रेजिंग, कैपिटल ड्रेजिंग, बीच नरिशमेंट, लैंड रिक्लेमेशन, शैलो वाटर ड्रेजिंग, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टैंसी और मरीन कंस्ट्रक्शन से जुड़ी हुई है। डिसइन्वेस्टमेंट पर कैबिनेट सेक्रेटरीज की अगुआई में बना सेक्रेटरीज का कोर ग्रुप पहले ही डीसीआई की बिक्री को मंजूरी दे चुका है। सरकारी थिंकटैंक नीति आयोग भी डिसइन्वेस्टमेंट के पक्ष में है।

जानकारी के मुताबिक, कंपनी ने पिछली तिमाही में वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर डिविडेंड देने में असमर्थता जताई थी।ड्रेजिंग कॉर्प ने खराब वित्तीय हालात का हवाला देते हुए डिविडेंड देने में असमर्थता जताई थी।कंपनियों से जुड़े मंत्रालय ने कंपनी की दलील का समर्थन किया था। हालांकि, कंपनी से डिविडेंड नहीं मिलने पर सरकार के वित्तीय घाटे पर विपरीत असर पड़ता है।

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