नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट में मंगलवार को केंद्र सरकार के सभी राज्यों को जिन गाड़ियों पर क्रैश गार्ड और बुल बैरियर लगे हुए हैं उनके खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश को चुनौती दी गयी। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट में क्रैश गार्ड निर्माता की एक कंपनी के मालिक मोहम्मद आरिफ ने सरकार के इस फैसले को चुनौती दी है। मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायामूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे मिनिस्ट्री से जवाब मांगा है। गौरतलब है कि मंत्रालय का कहना था कि जिंदगी किसी भी बुल बैरियर से ज्यादा जरूरी है।
मंत्रालय का तर्क है कि बुल बैरियर या क्रैश गार्ड लगा होने से गाड़ी में एयर बैग नहीं खुल पाते और हादसा और ज्यादा घातक हो जाता है। इसलिए कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ियों में लगने वाले बम्पर क्रैश गार्ड को अवैध करार दिया था। जिसके बाद दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने ऐसी गाडि़यों के चालान करने शुरू कर दिए थे। जिससे क्रैश गार्ड की बिक्री में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई। सरकार का तर्क था कि इस क्रैश गार्ड के चलते हादसे और ज्यादा गंभीर रूप ले लेते हैं। इसकी चपेट में आकर व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं।
जबकि सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देने वालों का तर्क है कि सरकार ने बिना किसी प्रॉपर रिसर्च के ये फैसला किया है। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। इस मामले में पहले से ही एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में पेंडिंग है। उस जनहित याचिका में भी इन क्रैश गार्ड को पैदल यात्री और गाड़ी चलाने वाले दोनों के लिए खतरनाक बताया गया है। मोहम्मद आरिफ का कहना है कि केंद्र का ये आदेश वैध नहीं है क्योंकि गाड़ियों की एक्सेसरीज को लेकर कोई नियम कायदे नहीं है। इस मामले पर हाईकोर्ट की अगली सुनवाई 6 फरवरी को होगी।
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