नई दिल्ली : सोशलिस्ट पार्टी ने 1857 की क्रांति के 160 साल पूरे होने के अवसर पर इसके महानायक बहादुर शाह जफर के अवशेष रंगून से वापस लाये जाने की सरकार से मांग की है। पार्टी के अध्यक्ष डॉ प्रेम सिंह ने आज यहां जारी एक बयान में यह मांग की।
भारत के जांबाज सैनिकों ने 10 मई 1857 को मेरठ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के मकसद से वे मेरठ से 10 मई को चलकर 11 मई को दिल्ली पहुंचे और बादशाह बहादुरशाह जफर से आजादी की जंग का नेतृत्व करने का निवेदन किया। बादशाह ने सैनिकों और उनके साथ जुटे नागरिकों की पेशकश का मान रखा और 82 साल की उम, में आजादी की पहली जंग का नेतृत्व स्वीकार किया था। कई कारणों से सैनिक वह जंग जीत नहीं पाए। अंग्रेजों ने बादशाह पर फौजी आदालत में मुकदमा चलाया और अक्टूबर 1858 में उन्हें कैद में दिल्ली से रंगून भेज दिया। वहां 7 नवंबर 1862 को 87 साल की उम, में उनकी मृत्यु हुई और’बदनसीब जफर’ को वहीं गुमनामी के अंधेरे में दफना दिया गया।
सोशलिस्ट पार्टी पहली जंगे आजादी के महान नेता और बेहतरीन शायर बहादुरशाह जफर के अवशेष वापस लाने की मांग भारत के राष्ट्रपति से 2013 में कर चुकी है।
पार्टी ने इस बाबत भारत के राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया था। सोशलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ सदस्य जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने राष्ट्रपति से मुलाकात करके प्रार्थना की थी कि वे बादशाह के अवशेष वापस भारत लाने के लिए सरकार से कहें।
पहली जंगे आजादी की 160वीं सालगिरह पर सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर प्रेम सिंह ने एक बार फिर राष्ट्रपति को वह ज्ञापन भेज कर अपील की है कि वे अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में त्रफ़र के अवशेष वापस लाने का जरूरी काम करें। इससे देश की आत्रादी के संघर्ष की साझी विरासत का सम्मान होगा और वह मजबूत होगी।
– वार्ता