नई दिल्ली: राजधानी में यूं तो वर्ष 2017 में सड़क हादसों में 1505 लोगों ने अपनी जान गंवा दी, लेकिन 27 मरीज ऐसे भी रहे जिनकी जान बचाकर ट्रैफिक पुलिस ने इंसानियत का परिचय दिया। ये सभी मरीज ग्रीन कॉरिडोर के तहत बचाए गए। इससे उन लोगों को भी सबक लेना चाहिए, जो कि रोड पर जाने या अंजाने में एम्बुलेंस को साइड देने में लापरवाही बरतते हैं। दिल्ली में ट्रैफिक के बढ़ते प्रेशर और जाम से दूसरे राज्यों के लोग भी भलीभांति परिचित हैं।
यूं भी दिल्ली में वाहनों और जनता की तादात कई गुना की बढ़ोतरी होती जा रही है। ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 1971 में जहां 43 लाख जनसंख्या थी, वह बढ़कर वर्ष 2017 में दो करोड़ पांच लाख हो चुकी है। इसी तरह वर्ष 1971 में दो लाख 17 हजार वाहनों की संख्या बढ़कर वर्ष 2017 में एक करोड़ आठ लाख तक पहुंच गई। ऐसी परिस्थिति में अंदाजा लगाया जा सकता है कि असुंलित वाहन और जनसंख्या के दबाव में ट्रैफिक पुलिस के लिए यातायात को नियंत्रित करना कितना चुनौती भरा होता है।
इन हालात में यातायात पुलिस ने वर्ष 2017 में तमाम चुनौतियों के बावजूद 27 मरीजों के लिए पीक और नॉन पीक आवर्स में ग्रीन कोरिडोर तैयार कर मानवता का परिचय दिया। जिन लोगों को ग्रीन कॉरिडोर उपलब्ध कराकर उनकी जिंदगी बचाई गई, यह बात शायद वे लोग ताउम्र न भूल पाएंगे। देखने वाली बात यह है कि अकसर पुलिस की ऐसी छवि को हम लोग भूलकर उनकी कमियों को गिनाने का शोर ज्यादा मचाते हैं।
क्या है ग्रीन कॉरिडोर… आपातकाल की स्थिति में किसी मरीज को जब जरूरी उपचार की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति अकसर अंग प्रत्यारोपण वरना दिल या लीवर के गंभीर मरीज या उसका अंग जिसका प्रत्यारोपण किया जाने पर होती है। मरीज या उसके अंग को उसे एक से दूसरे स्थान पर निर्धारित समय में लेकर जाना जरूरी होता है। इसके लिए अस्पताल के डॉक्टर और ट्रैफिक पुलिस के बीच आपसी सहयोग से अस्थायी रूट तैयार किया जाता है। इसमें कुछ समय के लिए ट्रैफिक पुलिस के सहयोग से तय रूट पर ट्रैफिक रोक दिया जाता है या उसे डायवर्ट कर दिया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मरीज या उसके अंग को लेकर जाने वाली एम्बुलेंस को एक से दूसरे स्थान पर जाते समय रूट खुला मिले।
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– राहुल शर्मा