रायपुर : छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता संग्रहण दर और विक्रय की राशि को लेकर रमन सरकार झंझावतों में घिरती नजर आ रही है। विपक्ष ने संग्राहकों के हक की राशि हड़पने और चुनावी साल में फंड जुटाने वनवासियों के हिस्से की राशि में घोटाले के आरोप लगाए हैं।
हालांकि सरकार का दावा है कि विपक्ष के आरोप पूरी तरह राजनीतिक और वनवासियों को भ्रम में डालने वाला है। राज्य लघु वनोपज संघ का दावा है कि छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता संग्राहकों को सबसे अधिक दर मिल रही है। कांग्रेस के आरोप हैं कि तेंदूपत्ता बिक्री से होने वाली आमदनी का संग्राहकों को सौ फीसदी राशि नहीं मिल पा रही है।
जबकि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के दौरान बने वन अधिकार मान्यता अधिनियम की धाराओं के तहत संग्राहकों का वनोपज पर पूरा अधिकार है। वहीं इस राशि को सरकार रोक नहीं सकती। विपक्ष ने दस्तावेजों के साथ आरोप लगाए हैं कि तेंदूपत्ता बिक्री से आय और वनवासियों को भुगतान की राशि में ही हजारों करोड़ का अंतर नजर आ रहा है। राज्य सरकार ने सीजन 2018 में ही संग्राहकों के कानूनी हक के 569 करोड़ राशि हड़प ली है। वहीं चुनावी साल में चुनावी फंड जुटाने जानबूझकर कम बोली लगाई जाती है।
आंकड़ों को सार्वजनिक कर दावे किए कि वर्ष 2007 से लेकर अब तक चुनावी साल में तेंदूपत्ता की नीलामी की दर अचानक घट जाती है। इस पर सवाल खड़े किए कि राज्य का तेंदूपत्ता देश में सबसे अधिक बेहतर और मानक स्तर का माना जाता है। इसके बावजूद हर चुनावी साल में बोली कम क्यों लगती है।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार ठेकेदारों से गिरोहबंदी कर कम बोली में बिक्री कर आधी राशि हड़प लेती है। वहीं बीते सीजन के भी 1060 करोड़ बैंकों में जमा कर दिए। इधर सरकार ने आरोपों को खारिज कर दावे किए कि तेंदूपत्ता संग्राहकों को पारिश्रमिक के अलावा प्रोत्साहन राशि और बोनस भी दिया जा रहा है। वहीं छत्तीसगढ़ में प्रति मानक बोरा की दर पूरे देश में सबसे अधिक है।
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