गुरुग्राम: गुरुग्राम में लापरवाही की हद का जीता जागता उदाहरण देखने को मिला हैं। गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में जहां विभाग के अधिकारियों को एक नई एंबुलेंस के पासिंग के दौरान पता लगा कि उनकी एंबुलेंस का 13 साल पहले देहरादून में चालान हुआ है। विभाग को यह नई एंबुलेंस पावर ग्रिड कॉरपोरेशन की ओर से 2014 में डोनेट की गई थी। डॉ बीके राजौरा, सिविल सर्जन का कहना है कि गुरुग्राम में 2014 में पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ने गुरुग्राम स्वास्थ्य विभाग को मारुति सुजुकी की ईको एंबुलेंस डोनेट की थी। ये नई एंबुलेंस थी जिसका स्वास्थ्य विभाग ने रजिस्ट्रेशन करवाया था।
साल 2015 से इस एंबुलेंस को लोगों की सेवा में शुरू कर दिया गया था। इन एंबुलेंस को इंटर डिस्ट्रिक्ट चलने की परमिशन है। इसके साथ ही एंबुलेंस को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल तक जाने के लिए विशेष परमिट है, जिसका दायरा 50 किलोमीटर से भी कम हैं। 24 मई 2017 को स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस एचआर 55 टी 6916 के परमिट की अंतिम तारीख थी, जिसके चलते विभाग ने समय से दो दिन पहले ही इसके परमिट को रिन्यू करवाने के लिए आरटीए सेक्रेट्री गुरुग्राम को आवेदन किया। इस दौरान पता लगा कि 2004 में इस गाड़ी का देहरादून में नियमों का उल्लंघन करने पर चालान किया हुआ है।
एंबुलेंस का देहरादून में चालान होने की जानकारी मिलने के बाद अधिकारी उलझन में हैं। अधिकारी यह जानने की कोशिश में हैं कि जिस एंबुलेंस की मैनुफैक्चरिंग 2014 में हुई है तो उस एंबुलेंस का 2004 में चालान कैसे हो सकता है। इसके अलावा इन गाडिय़ों को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से आगे जाने की परमिशन ही नहीं है। जब यह गाडिय़ां 50 किलोमीटर से अधिक दूरी पर नहीं जा सकती तो गुरुग्राम से करीब 285 किलोमीटर दूर देहरादून में इसका चालान कैसे हो सकता हैं? डॉ बीके राजौरा, सिविल सर्जन की माने तो स्वास्थ्यविभाग को डोनेट की गई उक्त एंबुलेंस के खड़े हो जाने से मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। वर्तमान में विभाग में 16 एंबुलेंस हैं।
इसमें से 3 एडंवास लाइफ सपोर्ट हैं, जबकि 13 बेसिक लाइफ सपोर्ट है। बेसिक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंसों को विभाग पीएचसी, सीएचसी, सब डिविजन अस्पताल सिविल अस्पताल में तैनात किया हुआ है। ऐसे में एक एंबुलेंस के कम होने से दूसरे सेंटर पर इसका असर पड़ रहा हैं। बता दें कि कंट्रोल रूम में एंबुलेंस के लिए रोजाना करीब 70 कॉल आती हैं।
– अजय तोमर