नेपाल के रास्ते कश्मीर घाटी लौटने के बाद अपना जीवन नये सिरे से शुरू करने की चाहत रखने वाले पूर्व आतंकवादियों के करीब 450 परिवार एक उचित पुनर्वास नीति के अभाव में निरंतर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
इन पूर्व आतंकवादियों के समक्ष मौजूद मुश्किल स्थिति से यह खतरा भी बढ़ गया है कि उनमें से कुछ फिर से आतंकवाद की तरफ लौट सकते हैं। इन परिवारों के संबंध में आत्महत्या की घटनाओं , अवसाद से ग्रस्त होने और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर लौटने के उनके प्रयासों की जानकारी नियमित तौर पर सामने आ रही हैं। इस क्रम में न तो जम्मू कश्मीर सरकार और न ही केंद्र सरकार के पास इसको लेकर कोई स्पष्ट नीति है कि इन्हें किस तरह से देश की मुख्यधारा में लाना है।
सुरक्षा एजेंसियां उनके जल्द से जल्द पुनर्वास का मुद्दा लगातार उठाती रही हैं। उन्हें लेकर सुरक्षा एजेंसियों को कहना है कि वे ‘‘ सक्रिय टाइम बम की तरह हैं ’’ जो कभी भी फट सकते हैं।
सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि नेपाल के रास्ते लौटने वाले पूर्व आतंकवादियों के लिए कुछ व्यावहारिक समाधान निकाला जाना चाहिए।
राज्य सरकार के अधिकारी इसको लेकर केंद्र को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि नेपाल से लौटे युवाओं के लिए एक नीति तैयार की जाए लेकिन वे अपने इस प्रयास में अभी सफल नहीं हुए हैं।
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा , ‘‘ ये सब पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने केंद्र की सहमति से शुरू किया था। हम भी प्रयास कर रहे हैं। ’’
पूर्व आतंकवादियों के लिए वापसी का नेपाल का रास्ता जम्मू कश्मीर की पूर्ववर्ती उमर अब्दुल्ला सरकार ने खोला था। इसके तहत जघन्य अपराधों में शामिल नहीं रहे कश्मीर के निवासियों को नेपाल के रास्ते भारत लौटने की इजाजत दी गई थी। इस योजना के तहत कश्मीर निवासी जिसने 1990 के दशक के शुरूआत में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में प्रवेश किया था वह वापस लौट सकता है , यदि उसके परिवार का कोई व्यक्ति एक आवेदन दे।
नेपाल के रास्ते वापस लौटे पूर्व आतंकवादी राज्य सरकार की आलोचना कर रहे हैं और उन्होंने ‘ नेपाल रिटर्नी फोरम ’ नाम का एक संगठन बनाया है। इसके सदस्यों का दावा है कि वे यह रेखांकित करना चाहते हैं कि शांति का कोई विकल्प नहीं है ‘‘ बशर्ते हमारे जीवन को थोड़ा स्थिर बनाया जाए। ’’
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