धार्मिक नेता दलाई लामा का कहना है कि वह अपनी मातृभूमी के लिए स्वायत्ता चाहते हैं न कि चीन से संपूर्ण स्वतंत्रता। साथ ही दलाई लामा ने तिब्बत वापस जाने की इच्छा भी प्रकट की और कहा कि मैं हमेशा यूरोपियन यूनियन की सराहना करता हूं। भारत में 1959 से निर्वासित जीवन बिता रहे दलाई लामा ने तिब्बत लौटने की इच्छा भी जताई है।
यह बात दलाई लामा ने ‘इंटरनैशमल कैंपेन ऑफ तिब्बत’ में विडियो मैसेज के जरिए कही। वाशिंगटन डीसी स्थित एक ग्रुप की 30वीं सालगिराह के मौके पर बृहस्पतिवार को इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ था।
82 वर्षीय दलाई लामा ने इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत की 30वीं वर्षगांठ के मौके पर गुरुवार को एक वीडियो संदेश में कहा, ‘मैं यूरोपीय यूनियन की भावना की सदैव प्रशंसा करता हूं। किसी एक के राष्ट्रीय हित की अपेक्षा साझा हित ज्यादा महत्वूपर्ण हैं। इस तरह की अवधारणा के साथ मैं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ रहने के लिए बेहद ख्वाहिशमंद हूं।’ इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत तिब्बतियों की आजादी की पैरवी करने वाला संगठन है। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है।
बता दें कि चीन का कहना है कि तिब्बत सदियों से उसका अभिन्न हिस्सा है। चीन का यह भी कहना है कि तिब्बत पर उसके शासन से दासप्रथा खत्म हुई और इस पिछड़े इलाके में समृद्धि आई। चीन के मुताबिक वह तिब्बती लोगों के अधिकारों का सम्मान करता है।
पेइचिंग इस बात पर भी जोर देता आया है कि दलाई लामा साधु के वेष में एक विभाजनकारी हैं। चीन हमेशा से विदेशी नेताओं के दलाई लामा से मिलने को लेकर आपत्ति दर्ज करता रहा है।
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