दरभंगा : देश के प्रतिष्ठित संस्कृत विश्वविद्यालयों में शामिल कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सर्वनारायण झा ने नारी शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि नारी शिक्षा में मिथिला का स्वर्णिम इतिहास रहा है। श्री झा ने आज यहां कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में मिथिला की पहचान शुरू से ही विशिष्ट रही है। इतिहास गवाह है कि यहां के विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ परम्परा आदिकाल से ही चर्चित रही है।
मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के साथ शंकराचार्य के बीच हुये शास्त्रार्थ को दुनिया जानती है। मध्य काल से लेकर आजतक अपरिहार्य कारणों से शास्त्रार्थ परम्परा यहां लगभग विलुप्त सी हो गयी है। कुलपति ने कहा कि नारी शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा आज जो भी प्रयास किए जा रहे हैं वे सराहनीय है लेकिन मिथिला के आदिकाल को यदि अवलोकित किया जाये तो सभी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि मण्डन मिश्र की विदुषी पत्नी भारती से शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित होना पड़ था। कोशिश है कि मिथिला की इस अछ्वुत परम्परा को फिर से शुरू की जाये।
श्री झा ने एक ऐतिहासिक वाकया सुनाते हुए कहा कि जब शंकराचार्य शास्त्रार्थ के लिए मिथिला में मण्डन मिश्र का निवास स्थान का पता पूछे रहे थे तो गांव में पानी भर रही महिलाओं ने संस्कृत में ही श्लोक के माध्यम से उन्हें श्री मिश्र के घर का पता बताया था। इसी से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे यहां नारी शिक्षा की स्थिति कितनी सबल एवं सशक्त थी।
कुलपति ने कहा कि वर्तमान समय में विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं है।इसलिए मीडियाकर्मियों, समाजसेवियों, शिक्षकों, पदाधिकारियों, कर्मचारियों, छात्रों एवं समस्त मिथिलावासियों से अनुरोध हैं कि विलुप्त हो चुकी शास्त्रार्थ परम्परा को फिर से जीवित करने में हमारा सहयोग करें।
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