भारत प्राचीन काल से दुनिया में अपने आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म निरपेक्षता, वेशभूषा, बोलियाँ और साथ ही साथ ऐतिहासिक और अनोखी व अनसुनी विशेषताओं के लिए मशहूर है। इस देश में आपको कई ऐसे किस्से मिल जायेंगे जो शायद दुनिया में और कही देखने को न मिले पर बहुत सारी ऐसी कमियां है जो इस देश को आज भी विकसित देशों की सूची तक नहीं पहुंचा पायी।
आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है जिसने देश को लगभग 50 आईएएस / आईपीएस अफसर दिए है। ये गाँव है उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले का माधोपट्टी गाँव और आपको जानकार हैरानी होगी की इस गांव में महज़ 75 परिवार रहते है। माधोपट्टी गाँव को पुरे जौनपुर जिले में अफसरों का गांव कहा जाता है जहाँ पर बच्चे अफसर बनने के लिए ही पैदा होते है।
माधोपट्टी गाँव, यू.पी. की राजधानी लखनऊ से लगभग 240 किमी. दूर है और जौनपुर जिले के सिरकोनी विकास खंड में स्थित है। गाँव के प्रधान वासुदेव यादव के अनुसार ढाई हज़ार की जनसंख्या वाले इस गांव को पुरे जौनपुर जिले में एक आदर्श और प्रेरणा स्त्रोत के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है इस गाँव के युवाओं में आज़ादी के पहले से ही सरकारी अफसर चुने जाने का जूनून सवार था।
वर्ष 1914 में मुस्तफा हुसैन अंग्रेज़ शासनकाल में पहले युवा थे जिनका पीसीएस में चयन हुआ और वो उस समय कमिश्नर बन माधोपट्टी के युवाओं के लिए प्रेरणा पुरुष बन गए।आईएएस व आईपीएस के अतिरिक्त पीसीएस, भाभा इंस्टिट्यूट, इसरो, मनीला और वर्ल्ड बैंक आदि में इस गांव के बाशिंदे अपनी सेवाएं दे चुके।
1952 में इन्दू प्रकाश सिंह माधोपट्टी से सर्वप्रथम आईएएस के रूप में चयनित हुए, उन्होंने इसके लिए आयोजित परीक्षा में भारत वर्ष में 13वीं रैंक प्राप्त की और इसके बाद इस गांव के युवाओं में राजकीय सेवाओं में जाने के लिए प्रतिस्पर्धा की होड़ लग गई। इन्दू प्रकाश के बाद 1955 में उनके भाई और फिर 1984 में उनके बेटा और बहु भी आईएएस बने।
इस अकेले परिवार में 4 आईएएस बने है जो पुरे भारत में एक रिकॉर्ड है। लेकिन समय की विडम्बना है या लापरवाही का आलम की देश को इतने अफसर देने के बाद भी ये गाँव आज बदहाल स्थिति में है क्योंकि जो अफसर बन गए वो इस गांव में वापस लौटकर नहीं आये और प्रशासन ने कभी सुध लेने के बारे में सोचा ही नहीं।