सिद्धार्थ नगर : पड़ोसी देश नेपाल के साथ 18 साल पुराना विवाद खत्म होने के बाद उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले की नेपाल से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित महाली सागर जल संचयन परियोजना का काम फिर से शुरू कर दिया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां बताया कि प्रयोग के तौर पर सागर में जल संचयन के लिए सिंचाई विभाग को इस परियोजना के लिए 25 लाख रुपए दिए गए हैं जबकि इसके सफल होने के बाद परियोजना को पूरा करने के लिए बाकी धनराशि दी जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि इससे पहले वर्ष 2001 में दोनों देशों की सहमति से महाली सागर पर सिंचाई विभाग द्वारा जल संचयन परियोजना के लिए स्कोप के निर्माण को नेपाल सरकार ने रोक दिया था जिसके बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक और अधिकारी स्तर पर लंबी वार्ता के बाद दोबारा इसके निर्माण की सहमति बनी है। उत्तर प्रदेश नेपाल महालीसागर दो अंतिम सिद्धार्थनगर सूत्रों ने बताया कि महाली सागर का कुल क्षेत्रफल 48.3 हेक्टेयर है जिसमें 16 हेक्टेयर भारतीय और 32.3 हेक्टेयर नेपाली क्षेत्र में स्थित है। अंग्रेजों के समय में सिंचाई विभाग द्वारा बारिश के दौरान नेपाल की पहाडियों से आने वाले पानी को सागर में रोककर इसका जमीनदारी नहर प्रणाली की दो नहरों से सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता था।
सूत्रों ने बताया कि दो दशक पहले महाली सागर का जल स्तर कम होने पर सिंचाई विभाग ने इस पर स्कोप बनाकर जब सिंचाई के लिए जल संचयन करने की पहल शुरू की तो नेपाल सरकार ने जलजमाव से आबादी को होने वाले नुकसान की वजह से इसे रुकवा दिया। सूत्रों ने बताया कि अब दोनों देशों के बीच महाली सागर जल संचयन पर सहमति बन जाने के बाद प्रयोग के तौर पर 92 मीटर पर जल संचयन की अस्थाई व्यवस्था की जाएगी जिसके सफल होने के बाद इसे स्थाई बना दिया जाएगा।
सूत्रों ने बताया की महाली सागर में जल संचयन की व्यवस्था होने के बाद 8 किलोमीटर लंबी साधु और पकड़ हवा नहरों से नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र के 40 गांव में सिंचाई की व्यवस्था हो जाने से इस इलाके में काला नमक धान की खेती को भी बढ़वा मिलेगा।
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