पटना : एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव तारिक अनवर सांसद ने बिहार को ”विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग को लेकर पार्टी कार्यालय में एक विशाल धरना को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार की बदहाली के लिये वीजेपी तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सीधे तौर पर जिम्मेवार है, यही दोनों पार्टियां बिहार के असली गुनहगार हैं। कारण सन् 2000 हजार में जब बिहार का बटवारा हुआ तथा बिहार और झारखण्ड दो अलग राज्य बने उस समय केन्द्र में एनडीए की सरकार थी। जिसमें नीतीश कुमार एक वरिष्ठ मंत्री थे। विभाजन के बाद 2000 में ही बिहार विधान सभा ने एक सर्वदलीय संकल्प पारित करते हुए बिहार के लिए 1.40 लाख करोड़ रूपये छतीपूर्ति की मांग की थी। वह भी नीतीश कुमार बिहार को दिलवाने में असफल रहे।
2005 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने तथा पुन: 2006 में बिहर विधान सभा ने एक सर्वदलीय संकल्प पारित किया जिसमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की गई। उसके वाद लगातार नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा के प्रशन को अपना राजनैतिक हथियार बनाकर केन्द्र की तत्कालीन यूपीए सरकार पर दबाव बनाने का काम करते रहे। 2014 के चुनाव के वक्त उन्होंने यह बयान दिया कि केन्द्र में उनकी पार्टी उस सरकार का समर्थन करेगी जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी जी के सरकार बनने के बाद भी इस प्रष्न को लगातार उठाते रहे।
2015 में जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी उस समय भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा की मांग करते रहे। लेकिन जनादेश का अपमान कर जबसे दुवारा वीजेपी के साथ मिलकर बिहार में एनडीए की सरकार बनाने के वाद उन्होने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा की मांग को ठण्डे वस्ते में डालने का काम किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार विधान सभा के चुनाव के समय बिहार को एक लाख 65 हजार करोड़ रूपये का पैकेज देने का आष्वासन दिया था तथा बिहार के आवाम का आहवान किया था कि सूबे और केन्द्र में डब्ल इंजर की सरकार बनेगी तो बिहार का विकास होगा। आज सूबे और केन्द्र दोनों जगह एनडीए की सरकार है जिसमें वीपेजी और जदयू दोनों शामिल है। फिर क्यों बिहार की विशेष राज्य का दर्जा अबतक नहीं मिला। इस संबंध में वीजेपी एवं नीतीश कुमार दोनो ही को अपना स्टैण्ड स्पष्ट करना चाहिए।
उन्होने कहा कि हमें हर्ष है कि एनसीपी के द्वारा बिहार को ”विशेष राज्य का दर्जाÓÓ दिये जाने कि मॉग के पक्ष में आवाज उठाने के बाद आज पुन: एकवार सभी दल इस बात के लिए सहमत दिखाई पड़ते है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा केन्द्र दे। जो तकनीकी अड़चनें मार्ग में उपस्थित है उन्हें दूर करने के लिए केन्द्र सरकार अपने स्तर पर हस्तक्षेप कर उन्हें दूर करने का उपाय करे और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करे। आज यह इसलिए भी संभव है कि राज्य तथा केन्द्र में दोनो जगह एनडीए की सरकार है जिसमें वीजेपी और जदयू दोनो शामिल है।
यदि नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा के प्रति प्रतिबद्ध है तो केन्द्र पर दबाव बनाएं और बिहार को उसका हक दिलाएं या वीजेपी से नाता तोड़ बिहार के हक की लड़ाई में शामिल हों। एनसीपी के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है। यह किसी पार्टी विशेष का मामला भी नहीं है। यह बिहार के विकास और इसकी प्रगति से जुड़ा विषय है। बिहार के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा बिहार का हक है।
उन्होंने कहा कि राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने के पीछे मुख्य मकसद उनका पिछड़ापन और क्षेत्रीय असंतुलन दूर करना है। और यह केन्द्र की संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। पिछले वर्षो में विकास की उंची दर के बाबजूद बिहार नीति आयोग के सीईओ के अनुसार एक वीमारू राज्य है तथा विकास सूचकांक में नीचले पायदान पर है। रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट ने भी जिन प्रमुख 10 राज्यों के विकास सूचकांक का आकलन किया था उसमें बिहार नीचे से दूसरे नम्बर पर था।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वंय स्वीकार किया है कि बिहार की आबादी देश का 8.2 फीसद है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान महज 2.7 फीसद। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यदि बिहार 12 प्रतिशत की दर से विकास करता रहे और राष्ट्र की विकास दर 6 फीसद रहेगा तव भी बिहार को राष्ट्रीय औसत तक पहुँचने में कम से कम 25 वर्ष लेगेंगे। ऐसी स्थिति में बिना विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त किये बिहार विकास की मुख्यधारा में वापिस नहीं हो सकता है। इसीलिए बिहार जैसे गरीब राज्यों के वित्तीय प्रावधानों को बदलने के लिए विशेष राज्य का दर्जा समावेशी विकास के लिए आवश्यक है।
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