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Paradise Paper: जयंत सिन्हा का नाम आने से मची खलबली, खुद सफाई देने सामने आए

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नई दिल्ली :  पनामा पेपर लीक के बाद इस बार पैराडाइज पेपर्स ने देश की सियासत में हलचल मचा दी है। जिस तरह से सिविल एविशन मिलिस्टर जयंत सिन्हा का नाम आया है उसने सनसनी मचा दी है। इंडियन एक्सप्रेस के खुलासे के अनुसार जयंत सिन्हा केंद्र में मंत्री बनने से पहले ओमिद्यार नेटवर्क के साथ काम करते थे और वह यहां मैनेजिंग एडिटर के पद पर थे। ओमिद्यार नेटवर्क ने अमेरिकी कंपनी डी लाइट डिजाइन में निवेश किया था, जोकि केमैन आइसलैंड की सहयोगी है।

Paradise_Papers

विदेशी लीगल फर्म एपेलबी के अनुसार जयंत सिन्हा डी लाइट डिजाइन कंपनी के डायरेक्टर थे और इस बारे में उन्होंने चुनाव के दौरान अपने हलफनामा में जिक्र नहीं किया है। सिन्हा ने इस बात की जानकारी ना तो लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को दी और ना ही प्रधानंत्री कार्यालय बल्कि उन्होंने इस बारे में लोकसभा के सचिवालय को भी सूचित नहीं किया। आपको बता दें कि पैराडाइज पेपर्स को को अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों की संस्थान आईसीजे ने दुनिया के सामने रखा है।

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कंपनी के डायरेक्टर थे जयंत इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार डी लाइट डिजाइन कंपनी का निर्माण 2006 में हुआ था, इसे सैन फ्रैंसिस्को, कैलिफोर्निया में शुरु किया गया, जिसकी एक शाखा केमैन आईसलैंड पर भी है। जयंत सिन्हा इस कंपनी का हिस्सा सितंबर 2009 में बने, जब ओमिद्यार नेटवर्क ने डी लाइट डिजाइन में निवेश किया। ओमिद्यार नेटवर्क ने केमैन आईसलैंड से 3 मिलियन यूएस डॉलर का लोन लिया था। दस्तावेज के अनुसार लोन अग्रीमेंट जिसे 31 दिसंबर 2012 में किया गया था उस वक्त सिन्हा कंपनी के डायरेक्टर थे।

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वहीं इस पूरे खुलासे पर जयंत सिन्हा का कहना है कि मैंने इंडियन एक्सप्रेस को इस बाबत पूरी जानकारी दी है कि सभी लेनदेन कानूनी थे। जिस वक्त मैं कंपनी में कार्यरत था उस वक्त इस इस ट्रांजैक्शन को जानी मानी और विश्व की प्रतिष्ठित संस्था के साथ किया गया था। इन सभी ट्रांजैक्शन की जानकारी इससे संबंधित विभागों को दी गई थी साथ ही सभी जरूरी नियमों का भी पालन किया गया था। जब मैंने ओमिद्यार नेटवर्क को छोड़ा तो मुझसे डी लाइट बोर्ड के स्वतंत्र निदेशक के तौर पर काम करने के लिए कहा गया था। लेकिन केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बाद मैंने डी लाइड के बोर्ड और तमाम जिम्मेदारियों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि यहां इस बात को गौर किया जाना चाहिए कि डी लाइट के साथ ओमिद्यार की ओर से जो निवेश किया गया वह व्यक्तिगत तौर पर नहीं किया गया था बल्कि यह कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर मैंने किया था।

क्या है पैराडाइज पेपर्स?
बताया जा रहा है कि जर्मन अखबार स्यूडेडेश्स्क ज़ितुंग ने बरमूडा की कंपनी एप्पलबी, सिंगापुर की कंपनी एसियासिटी ट्रस्ट और कर चोरों के स्वर्ग समझे जाने वाले 19 देशों में कराई गई कार्पोरेट रजिस्ट्रियों से जुड़े करीब एक करोड़ 34 लाख दस्तावेज लीक करके हासिल किए थे।
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इस लीक का केंद्र ऐपलबी नामक एक लॉ फर्म है जो बरमूडा, ब्रिटेन के वर्जिन आईलैंड, केमैन आईलैंड, आइल ऑफ मैन, जर्सी में स्थित है।अखबार ने ये करोड़ों दस्तावेज आईसीआईजे के साथ साझा किए। आईसीआईजे में दुनियाभर की 96 मीडिया कंपनियां शामिल हैं. इन सभी ने 10 महीने तक सभी दस्तावेजों की पड़ताल की। वहीं भारतीय अंग्रेजी अखबार इंडियान एक्सप्रेस ने भारत से जुड़े हुए सभी दस्तावेजों की पड़ताल की जोकि आईसीआईजे का सदस्य है।
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 बता दें कि इससे पहले 2016 में ब्रिटेन में पनामा की लॉ फर्म के 1.15 करोड़ टैक्स डॉक्युमेंट्स लीक हुए थे। उन दस्तावेजों के अनुसार व्लादिमीर पुतिन, नवाज शरीफ, शी जिनपिंग और फुटबॉलर मैसी ने अपनी बड़ी दौलत टैक्स हैवन वाले देशों में जमा की थी। दुनियाभर के 140 नेताओं और सैकड़ों सेलिब्रिटीज ने टैक्स हैवन कंट्रीज में पैसा इन्वेस्ट किया था। पनामा पेपर्स में जिस मोसैक फॉसेंका फर्म का नाम था, उससे अलग यह फर्म खुद को विदेशों में पैसा जमा करने के मामले में नंबर वन करार देती है।

 

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