लुधियाना- हलवारा : ‘युद्ध और शांति’ के दौरान अभूतपूर्व योगदान देकर देश के लिए उत्कुष्ट सेवांए निभाने वाले वायु सेना प्रहरियों के 2 यूनिटों को देश के महामहिम और तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद स्वयं हलवारा एयरबेस पर 22 मार्च को आकर सर्वोच्च सम्मान से नवाजेंगे। इस दौरान वायु सेना के जाबंाज आकाश में उडक़र हवाई करतबों के साथ-साथ परेड की सलामी भी देंगे। फ्लाइंग यूनिट 51 स्क्वाड्रन को प्रेसिडेंट स्टेंडर्ड (राष्ट्रपति ध्वज) और राडार यूनिट 230 सिग्नल यूनिट प्रेसिडेंट कलर का गौरव हासिल होगा। हलवारा एयर बेस आजादी के उपरांत 16 मार्च 1950 को बनने वाला देश का पहला एयरबेस था। वर्ष 2001 में आप्रेशन पराक्रम में यह यूनिट एयर डिफेंस कंट्रोल का हब सेंटर रही यूनिट को 31 जनवरी 1981 को तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेडडी ने भी सम्मानित किया है। पडोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ हुई दोनों जंगों में यहां की भूमिका असरदार रही है।
स्मरण रहे कि सशस्त्र सेनाओं के लिए यह अवॉर्ड सर्वोच्च और अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं। इस सम्मान का चयन यूनिट की ओर से शांति और संघर्ष की परिस्थितियों में उनकी कार्यक्षमता और उपलब्धियों के आधार पर किया जाता है। महामहिम के हाथों 51 स्क्वाड्रन के कमांडिंग अफसर ग्रुप कैप्टन सतीश एस पवार और 230 सिग्नल यूनिट के ग्रुप कैप्टन एस के त्रिपाठी ग्रहण करेंगे। लुधियाना से 42 कि.मी. दूर मुल्लापुर-रायकोट सडक़ किनारे बसे हलवारा एयरबेस के प्रमुख एयर कमांडर डीवी खोटे ने बताया कि यह सम्मान किसी यूनिट को सिर्फ एक ही बार मिलता है। किंतु हलवारा बेस यूनिट का सौभागय है कि सम्मान दूसरी बार मिल रहा है। पिछली बार जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी यहां आएं थे तो उस वक्त मिग 21 के पायलट ने सलामी दी थी।
जानकारी के मुताबिक 22 मार्च की सुबह जब सुप्रीम कमांडर रामनाथ कोविंद के कदम हलवारा एयरफोर्स की धरती को छुएंगे तो उन्हें भारतीय वायुसेना के अत्याधुनिक विमान सुखोई-30 से सलामी दी जाएंगी। इस दौरान सूर्य किरण की टीम के विमान हवा में गोते लगाकर राष्ट्रपति को अपनी बहादुरी का परिचय देंगे।
51 स्क्वाड्रन यूनिट ‘सफेद सागर’ में किया तिहरा टास्क पहली बार फाइटर नाइट ऑपरेशन
1999 में कारगिल के दौरान ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ में 51 स्क्वाड्रन को श्रीनगर से अवंतिपुर के बीच फ्लाइंग कांबेट, एयर पेट्रोल्स और एस्कॉर्ट मिशन का टास्क दिया गया, जिसे स्क्वाड्रन ने जांबाजी से पूरा किया। इसमें स्क्वाड्रन को एक वायुसेना मेडल व तीन मेंशन इन डिस्पैचेज मिले। ऑपरेशन पराक्रम के दौरान स्क्वाड्रन ने कश्मीर वैली की हवाई सुरक्षा एक साल तक सफलतापूर्वक संभाली। यह स्क्वाड्रन पहली यूनिट थी, जिन्होंने 2008 में कारगिल फील्ड फायरिंग रेंज को एक्टिवेट किया। इसी ने उधमपुर एयरफील्ड में पहली बार फाइटर नाइट ऑपरेशन भी किया। यूनिट को 1989, 1994, 1997, 2008, 2013 व 2015 के लिए वेस्टर्न एयर कमांड में बेस्ट फाइटर स्क्वाड्रन का खिताब मिला। वैली की सुरक्षा व सभी ऑपरेशनल प्लान्स में स्क्वाड्रन का अहम रोल रहा। यूनिट को ‘सॉर्डआर्म्स’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1 फरवरी 1985 को विंग कमांडर वीके चावला के अंडर चंडीगढ़ में बनाया गया था। मई 1986 में स्क्वाड्रन को श्रीनगर में स्थापित कर दिया गया। जहां उन्हें ‘गार्जियंस ऑफ द वैली’ की उपाधि मिली।
230 सिग्नल यूनिट : पहली बार हवा में पाकिस्तानी जेट मार गिराया, 14 टन बम झेले
1965 की भारत-पाक जंग में यूनिट ने पाक एयरफोर्स के सेबर एयरक्राफ्ट को मार गिराया था। इंडियन एयरफोर्स द्वारा हवा से हवा में दुश्मन को धूल चटाने का यह पहला साहसिक कारनामा था। इससे पाक को लगा कि यह इंडियन एयरफोर्स की फ्रंट लाइन राडार है, इसलिए उसने लगातार अटैक किए। यूनिट ने पाकिस्तान के 14 टन बम झेले। 1971 की भारत-पाक जंग में भी यूनिट ने सुरक्षा मिशन के साथ लड़ाई को सपोर्ट करने में भी पूरा योगदान दिया। सेना के एएन-12 मिशन को पाक के मिराज एयरक्राफ्ट से खतरा था, जिसे भी इन्होंने टाल दिया। साल 2001 में ऑपरेशन पराक्रम में यह यूनिट एयर डिफेंस कंट्रोल का हब सेंटर रही। यूनिट को 31 जनवरी 1981 को तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने भी सम्मानित किया गया। इसका गठन 1962 की इंडो-चाइना और 1965 की इंडो-पाक वॉर के दौरान किया गया। शुरूआत में इन्हें अमृतसर-जम्मू सेक्टर की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई, पर पाक के साथ दो जंगों में भी असरदार भूमिका निभाई।
पाकिस्तानी फौजी इन हथियारों से आए थे हमला करने, एयरफोर्स ने हथियार किए थे जब्त
साल 1965 की भारत-पाकिस्तान जंग में इंडियन एयरफोर्स ने किस कदर बहादुरी से दुश्मनों को शिकस्त दी, इसकी कुछ निशानियां हलवारा एयरफोर्स स्टेशन में बने म्यूजियम में रखे हथियार देते हैं। यह हथियार एयरफोर्स ने जंग के दौरान हलवारा एयरबेस को टारगेट करने आए पाकिस्तानी फौजियों को पकडक़र उनसे बरामद किए थे। अब इन्हें हलवारा एयरफोर्स स्टेशन में बनाए म्यूजियम में रखा गया है।
भारत-पाक के बीच 1965 की जंग में सात सितंबर 1965 को हलवारा एयरफोर्स स्टेशन पर पाकिस्तान की पैरा यूनिट अटैक करने की फिराक में थी। इसका पता चलने पर हलवारा एयरफोर्स स्टेशन के स्टेशन सिक्योरिटी अफसर स्क्वाड्रन लीडर एसके सिंह व उनकी टीम ने हलवारा से 3 किमी दूर गांव राजोआणा में उन्हें पकड़ लिया। पक ड़े गए पाकिस्तानी फौजियों में उनकी पैरा यूनिट का लीडर कैप्टन हुसैन भी शामिल था। उनसे बड़ी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक पदार्थ, मोर्टार व वायरलैस सेट पक ड़े गए थे।
यह वही चीजें थी जो अमेरिका से सैन्य मदद के तौर पर पाकिस्तान को मिली थी। धीरे-धीरे यहां कुल 61 पाकिस्तानी फौजी पकड़े गए थे। यह संभावना जताई गई कि इनका निशाना हलवारा एयरफील्ड व उनकी इंस्टालेशंस थीं लेकिन हलवारा में तैनात एयरफोर्स ने इसे नाकाम कर दिया।
– सुनीलराय कामरेड
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