लुधियाना-अमृतसर : 90 के दशक में चोरी के आरोपों का दंश झेल रही चार महिलाएं जो आपस में एक-दूसरे की नजदीकी रिश्तेदार है। आज वे और उनके परिवार के सदस्य बहुत खुश है। उनके मुताबिक उनपर लगे कलंक को लगाने वाले जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने जेल की सखीचो के पीछे पहुंचा दिया किंतु उन्हें दर्द भी है कि उनका बीता वक्त वापिस नहीं मिल सकता हालांकि वह तहदिल कानून का सम्मान करते नही थकती किंतु खाकी वर्दीधारियों को देखकर वह आज भी सहम जाती है। आज से 24 साल पहले पंजाब पुलिस द्वारा चोरी के एक मामले में अमृतसर स्थित श्री दरबार साहिब में माथा टेकने गई उक्त चारों महिलाओं को तत्कालीन जिम्मेदार अधिकारियों ने दबोचकर उनके माथे पर मशीन से जेबकतरी गुदवाने के बहुचर्चित मामले में आज पूर्व पुलिस अधिकारी सुखदेव सिंह छीना समेत अन्य खाकी वर्दीधारियों को सीबीआई की विशेष अदालत से कोई राहत नहीं मिली, जिसके परिणाम स्वरूप पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। छीना को अमृतसर जेल में शिफट कर दिया गया है।
पूर्व एसएसपी सुखदेव सिंह छीना समेत तत्कालीन सब इंस्पेक्टर नरेंद्र सिंह मल्ली और एएसआई कंवलजीत सिंह ने पिछले दिनों पटियाला की सीबीआई अदालत के जज बलजिंद्र सिंह ने 8 अक्तूबर 2016 को आरोपियों के खिलाफ 3-3 साल की कैद के साथ-साथ 5-5 हजार रूपए के जुर्माने की जो सजा सुनाई गई थी, इसके बाद मोहाली में सीबीआई की स्पैशल कोर्ट में अपील दायर हुई थी। उसे सीबीआई की विशेष उच्च अदालत के जज हरप्रीत सिंह की अदालत ने बरकरार रखते हुए अपना फैसला सुना दिया। जज हरदीप सिंह ने पंजाब पुलिस के उन अधिकारियों की निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी और आखिर जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को जेल जाना ही पड़ा।
उल्लेखनीय है कि 1993 में घटित इस घटना ने अखबारों की काफी सुर्खियां बटोरी थी। इस उपरांत इस मामले को मानव अधिकार कमीशन द्वारा भी दखलअंदाजी के कारण काफी चर्चा में रही थी। इस मामले में पीडि़त महिला गुरदेव कौर, परमेश्वरी देवी, महिंद्र कौर और जसविंद्र कौर थी, जिन्होंने बताया कि 8 दिसंबर 1993 को वे श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शनों के लिए आई थी, जब वह सच्चखंड दरबार साहिब में माथा टेकने उपरांत घर जाने के लिए बस स्टैंड के नजदीक पहुंंची तो वहां पर मौजूद पंजाब पुलिस ने उन्हें काबू कर लिया। जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों ने उनपर चोरी के आरोप लगाते हुए माथे पर जेब कतरी उकेर दिया था। पुलिस द्वारा उन्हें जब अदालत में पेश किया गया तो उनके माथे पर लगे कलंक को छुपाने के लिए दुपटटे से ढक दिया गया जबकि मीडिया द्वारा यह मामला उभारे जाने के कारण चर्चा में आ गया। नैशनल हयूमन राइटस कमीशन ने कड़ा संज्ञान लिया और हाईकोर्ट में रिट दायर की गई। हाईकोर्ट ने पीडि़त महिलाओं को मुआवजा दिलवाया और प्लास्टिक सर्जरी के जरिए जेबकतरी शब्द हटवा दिया।
किंतु संबंधित महिलाएं आज भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र मालेरकोटला के आसपास नजदीकी गांव में अपने परिवार के साथ रह रही है। उनमें से एक गुरदेव कौर के मुताबिक उन दिनों आतंकवाद होने के कारण खाकी वर्दी का काफी डर था, इसलिए वह और उनका परिवार चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया। परंतु आज उन्हें वाहे गुरू के दरबार से आस बंदी है कि भले ही इंसाफ देर से मिला लेकिन दरूस्त मिला, आज भी वे महिलाएं अपने संगे-संबंधियों और जान-पहचान वालों में उस दंश की पीड़ा को झेल रही है।
– सुनीलराय कामरेड