रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पद छोड़ने के एक साल बाद नोटबंदी पर अपनी चुप्पी तोड़ी है। राजन ने अपनी बुक में साफ किया है कि उन्होंने नोटबंदी का समर्थन नहीं किया था। उनका मानना था कि इस फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि में इससे होने वाले फायदों पर भारी पड़ेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर हाल में एतिहासिक फैसला करना चाहते थे लेकिन रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के कारण वो ऐसा नहीं कर पाए। राजन ने उन्हे नोटबंदी के विकल्प भी सुझाए थे जिससे कालाधन सिस्टम में भी आ जाता और आम जनता को परेशानी भी नहीं उठानी पड़ती परंतु मोदी नहीं माने। उन्होंने केवल राजन का मन जानने की कोशिश की और अपना फैसला टाल दिया। राजन का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद उन्होंने मनमाफिक नियुक्ति की और नोटबंदी का वह फैसला कर डाला जिसकी प्लानिंग वो काफी पहले से कर चुके थे।
बता दें कि रघुराम राजन “I do what I do” शीर्षक से किताब लिख रहे हैं। अपनी इस किताब में राजन ने उल्लेख किया है कि उनके कार्यकाल के दौरान कभी भी आरबीआई ने नोटबंदी पर फैसला नहीं लिया था। राजन के इस बयान से उन अटकलों पर भी विराम लग गया, जिनमें नोटबंदी की प्लानिंग कई महीने से होनी बतायी गई थी।
राजन का कार्यकाल 5 सितंबर 2016 को पूरा हो गया था जबकि नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर 2016 को की गई। तब प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बंद करने का ऐलान किया था। इसी सप्ताह आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि पुराने बंद किए गए 500 और 1000 रुपये के 99 प्रतिशत नोट बैंकों में जमा हो गए।
सरकार ने नोटबंदी के फैसले का यह कहते हुए बचाव किया कि इससे टैक्स बेस बढ़ने से लेकर डिजिटल ट्रांजैक्शन में इजाफे तक कई दूसरे फायदे हुए हैं। राजन ने माना कि नोटबंदी के पीछे इरादा काफी अच्छा था लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से अब तो कोई किसी सूरत में नहीं कह सकता है कि यह आर्थिक रूप से सफल रहा है।