राजस्थान में दो लोकसभा तथा एक विधानसभा उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है तथा आम चुनाव से पहले इसे सेमीफाइनल मानकर कोई राजनीतिक दल जीत की कसर नहीं छोड़ना चाहता।
संसदीय सीट अजमेर में सांवरलाल जाट, अलवर में चांदनाथ तथा मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर कीर्ति कुमारी के निधन के कारण होने वाले उपचुनाव को लेकर प्रमुख दल कांग्रेस एवं भाजपा ने तैयारियां शुरु कर दी है। हालांकि चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है लेकिन यह माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के साथ ये उपचुनाव भी कराये जायेंगे।
भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा इन उपचुनाव में लगी हुई है जबकि कांग्रेस में राहुल गांधी के नजदीक माने जाने वाले पूर्व मंत्री जितेन्द्र सिंह तथा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की साख दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस और भाजपा में काफी दरारें है तथा नेतृत्व को झुकाने के लिए दोनों ही दलों में दांव पेंच चल सकते है।
कांग्रेस में अलवर से जितेन्द सिंह तथा अजमेर से सचिन पायलट को उम्मीदवार बनाने की चर्चाएं है। इन दोनों को मैदान में उतारने पर एक तरफ ऐसे कार्यकर्ता है जो भाजपा सरकार की नाराजगी से कांग्रेस की जीत पक्की मान रहे है जबकि कुछ कार्यकर्ता मानते है कि कांग्रेस की हार हुई तो केन्द्रीय नेतृत्व पर प्रदेश में बदलाव करने का मुद्दा अपने आप मिल जायेगा।
कांग्रेेस के गढ़ रहे अलवर में भाजपा को पहली बार कांग्रेस नेता जितेन्द सिंह की मां महेन्द कुमारी ने ही जीत दिलाई थी जो बाद में भाजपा से अलग हो गई। इस क्षेत्र से दस बार जीत कांग्रेस को ही मिली लेकिन पिछली बार कांग्रेस के जितेन्द्र सिंह को भाजपा के चांदनाथ से हारना पड़ा। यादव बाहुल्य इस क्षेत्र में भाजपा किसी यादव को ही उम्मीदवार बना सकती है जबकि कांग्रेस ने जितेन्द, ङ्क्षसह को नहीं उतारा तो यादव पर ही दांव चलाया जा सकता है।
अजमेर में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट यह कह चुके है कि आलाकमान ने आदेश दिया तो वह जरुर उपचुनाव मैदान में उतरेंगे। अपने प्रदेशाध्यक्ष को दांव पर पार्टी शायद ही लगाये लेकिन उन पर चुनाव में खड़े होने का चौतरफा दबाव बना हुआ है।
भाजपा ने अपने मंत्रियों को प्रभारी बनाकर विधानसभावार निगरानी के निर्देश देते हुए बूथों तक पहुंचने की कोशिश तेज कर दी है वहीं कांग्रेस ने भी प्रभारियों की नियुक्ति कर बैठकें लेना प्रारंभ कर दिया है। कांग्रेस जहां भाजपा की जनविरोधी नीतियों के साथ साथ सचिन पायलट के पांच वर्ष के कार्यालय की उपलब्धियों को भुनाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है वहीं सत्तारूढ़ भाजपा अपनी फ्लैगशिप योजनाओं, जनकल्याणकारी योजनाओं, पार्टी की रीति नीतियों तथा दिवंगत सांसद सांवरलाल जाट के नाम पर सहानुभूति के वोट हासिल करने के लिए प्रयासरत है। चुनाव आचार संहिता लगने से पहले अनेक शिलान्यास, उद्घाटन व घोषणाओं का दौर चल रहा है।
अजमेर संसदीय सीट से 13वीं लोकसभा के लिए कद्दावर सचिन पायलट ने कांग्रेस से विजय हासिल की और केंद्रीय मंत्री रहते जिले में विकास और उपलब्धियों का आंकड़ा तेज रखा। लेकिन 14वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में पायलट, भाजपा के प्रो. सांवरलाल जाट के हाथों 171000 से ज्यादा वोटों से पराजित हुए। जिले में आज भी पायलट के हाथों ज्यादा विकास कार्य गिनाने के उदाहरण मौजूद है। दो दिन पहले ही अजमेर में पायलट उपचुनाव लडऩे के संकेत देते हुए यह कह चुके है कि मेरे पांच साल के कार्यकाल की तुलना भाजपा सांसद के कार्यकाल से की जाए तो सामने आएगा कि भाजपा ने जानबूझकर अजमेर जिले का विकास अवरुद्ध किया है। वर्तमान में दोनों ही पार्टियों की ओर से प्रत्याशी तय नहीं है लेकिन दोनों दलों में सरगर्मियां तेज है।
लोकसभा उपचुनावों के साथ मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव भी कराया जा सकता है। मांडलगढ़ विधानसभा के नवम्बर में संभावित उप चुनाव के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने कीर्ति कुमारी की मृत्यु के कारण रिक्त सीट पर किसी राजपूत प्रत्याशी को ही पार्टी उम्मीदवार बनाने की संभावना जतायी है। पार्टी यहाँ राजपूत कार्यकर्ता को टिकट देकर कीर्ति की स्वाइन फ्लू से हुयी असामयिक मृत्यु के बाद सहानुभूति की लहर के त्ररिए चुनावी वेतरणी पार करना चाहती है।