कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से कहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को किसी व्यक्ति को हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश पर तब तक रोक नहीं लगा देनी चाहिए जब तक वह केवल एक संक्षिप्त जांच में नहीं, बल्कि एक निष्पक्ष जांच में यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी नहीं हो जाए।
न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका में टकराव के बीच रविशंकर प्रसाद ने न्यायमूर्ति मिश्रा को पत्र लिखकर कहा कि कर्नाटक में एक जिला अदालत के उस न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत को विशाखा मामले में शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं निपटाया गया, जिनकी हाई कोर्ट में पदोन्नति की सिफारिश की गयी है।
प्रसाद के इस पत्र से कुछ दिन पहले ही शीर्ष अदालत के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सरकार ने पी के भट्ट की पदोन्नति को रोक दिया है जबकि कर्नाटक हाई कोर्ट की एक जांच में उन्हें यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर दिया गया जो उनके खिलाफ एक जूनियर महिला न्यायिक अधिकारी ने लगाये थे।
पिछले सप्ताह लिखे गये प्रसाद के तीन पन्नों के खत में कहा गया कि रिकार्ड इस ओर इशारा नहीं करते कि फरियादी को उनका मामला रखने का कोई मौका दिया गया और क्या कर्नाटक हाई कोर्ट की एक महिला न्यायाधीश ने या एक वरिष्ठ महिला न्यायिक अधिकारी ने विशाखा मामले के फैसले के अनुसार जांच कराई।
कानून मंत्री ने अपने खत में लिखा , “किसी अधीनस्थ न्यायिक अधिकारी द्वारा अपने वरिष्ठ पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की शिकायत में इस तरह की संक्षिप्त जांच बहुत गंभीर सवाल खड़े करती है।” प्रसाद ने कहा कि जब किसी महिला न्यायाधीश द्वारा निष्पक्ष और न्यायसंगत जांच लंबित है जिससे अधिकारी (भट्ट) की बेगुनाही साबित हो सकती है तो क्या सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को उच्च संवैधानिक पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश रोक नहीं देनी चाहिए।
नियुक्ति में न्यायपालिका की सिफारिशों को कार्यपालिका द्वारा रोकने के न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के आरोपों को खारिज करते हुए सरकार के सूत्रों ने पहले कहा था कि सरकार भट्ट की पदोन्नति की कॉलेजियम की सिफारिश पर फैसला लेने में किसी जल्दी में नहीं है।
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