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सामाजिक न्याय की रणभूमि में अगड़ी समुदाय की मजबूत वापसी

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पटना  : बिहार में राज्यसभा के खाली छह सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा, कांग्रेस को छोड़ जदयू एवं राजद ने सवर्ण जाति के सदस्यों को भेजकर बदलते राजनीतिक समीकरण का संकेत दे दिया है। सामाजिक न्याय की रणभूमि में अगड़ी समुदाय की मजबूत पुन: वापसी से पिछड़ों व दलितोंकी राजनीति करने वालें दलों ने राज्यसभा के छह सीटों पर सवर्णों को भेजकर नयी पारी की शुरूआत कर दी है।

लेकिन सवर्ण मतदाताओं, सामाजिक न्याय के नेताओं के ताना-बाना पर चुप्पी साध ली है। राजनीतिक समीक्षक परमेश्वर सिंह के अनुसार बिहार में अगड़ी जातियों के मतदाताओं को पक्ष में करने की होड़ ने भाजपा कांग्रेस को छोड़ पिछड़ों, दलितों के राजनीतिक करने वाले लालू प्रसाद एवं नीतीश कुमार ने सामाजिक न्याय की मजबूत धारा को धत्ता बताते हुए राज्यसभा के सभी सीटों पर भेजना मुश्किल खड़ा कर दी है।

भाजपा हमेशा बिहार में राज्यसभा के सीटों पर सवर्ण जाति को लोगों को भेजते रहा है। वहीं 27 वर्षों के बाद पहली कांग्रेस के खाते में गये एक सीट पर अगड़ी जाति के डा.अखिलेश सिंह को भेजा है। छह सीटों में दो भूमिहार, एक राजपूत, एक ब्राह्मण, एक कायस्थ एक अगड़ी जाति के मुस्लिम समुदाय से भेजा गया है। राजद से अगड़ी जाति के मनोज झा, डा. अशफाक करीम, कांग्रेस से डा.अखिलेश सिंह,भाजपा से रवि शंकर प्रसाद, जदयू से वशिष्ठ नारायण सिंह, एवं महेन्द्र किंग को भेजकर राजनीतिक हलकों में सोंचने पर मजबूर कर दिया है।

क्योंकि बिहार में सामाजिक न्याय के पुरौधा लालू प्रसाद ने सवर्णों के खिलाफ लड़ाई लड़कर समस्त पिछड़ों दलितों एवं अल्पसंख्यकों को एक सूत्र में बांधकर सवर्ण मानसिकता से निजात दिलाया था। उन्होंने बताया कि लालू प्रसाद के आधार वोट बैंक में सेंधमारी कर अतिपिछड़ों महादलित एवं पासमांदा समुदाय में बांटकर राजनीतिक कर 15 वर्षों से सत्ता पर काकबिज है। इन दोनों नेताओं ने पिछड़ों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों के हितैषी होते हुए सामाजिक न्याय की मजबूत धारा को कुंध करने में जुट गये हैं।

राजद अपनी सियासी हस्त को बचाने के लिए अगड़ी जाति के नेताओं को जरूर भेजा है। लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वैसे महागठबंधन के घटक दल कांग्रेस के चार विधान पार्षद जदयू की सदस्यता ग्रहण कर दिया। अब राजद को अगले विधान परिषद के चुनाव में ईमानदार,पार्टी के प्रति समर्पित, जुझारू एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं को परिषद में जगह देकर विपक्ष की कुर्सी की मान्यता बचाये रखने के लिए एक सीट पर ध्यान देना होगा जो 2024 तक स्थायी रूप से बचा रखें।

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