जगदलपुर : प्रकृति के बीच रहने वाले आदिवासियों को प्राकृतिक साधनों से आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेक्सिको के एक भारतवंशी प्रोफेसर ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक मुहिम शुरू की है। भारतीय मूल के प्रोफेसर वरुण दाइटम स्थानीय इंजीनियरों को कम खर्च में ईको फ्रेंडली मकान और अन्य निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं। मेक्सिको की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले प्रो वरुण पिछले तीन दिन से लाइवलीहुड कॉलेज में जिला पंचायत के इंजीनियरों और अन्य लोगों को मिट्टी और रेत से दीवार और छत की ढलाई के गुर सीखा रहे हैं। इस निर्माण को स्पैनिश वॉल्ट भी कहा जाता है।
वे जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी रितेश अग्रवाल की सोशल मीडिया पर डली एक पोस्ट पढ़कर बस्तर आ पहुंचे। प्रो वरुण ने बताया कि वे मूल तौर पर बंगलूर के रहने वाले हैं। हाल ही में वे जब भारत आए तो उन्होंने सीईओ श्री अग्रवाल की पोस्ट पढ़ी। श्री अग्रवाल ने लिखा था कि यदि कोई बस्तर आकर यहां के लोगों को नया कुछ सिखाना चाहता है तो उनका स्वागत है।
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद उन्होंने गूगल पर तलाश की तो बस्तर में नक्सलियों से संबंधित जानकारी ही उन्हें ज्यादा मिली। इसके बाद भी वे बस्तर आए और यहां नि:शुल्क प्रशिक्षण सत्र चलाया। इस सत्र के पहले चरण में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं। वे गांव-गांव जाकर महिला समूहों और अन्य लोगों को इन निर्माणों की जानकारी देंगे। स्पैनिश वॉल्ट के तहत सभी निर्माण मिट्टी की जुड़ई से किए जाते हैं।
इसके लिए गीली मिट्टी और रेत का मिश्रण तैयार किया जाता है। छत की ढलाई और बेस के लिए ईंट भी ऐसे ही बनाई जाती है। मिट्टी और रेत इसे मजबूती देते हैं। इसके बाद मिट्टी और रेत के मिश्रण से दीवार खड़ की जाती है। ये मकान ईको फ्रेंडली होने के साथ मौसम के अनुकूल भी रहते हैं। इनके निर्माण में 40 प्रतिशत खर्च कम होता है। बस्तर में बड़ संख्या में ग्रामीण मिट्टी के मकान में रहते हैं।
ऐसे में यहां स्पैनिश वॉल्ट के सफल होने की ज्यादा संभावनाएं हैं। इसके बाद सीईओ श्री अग्रवाल ने प्रो। वरुण के ट्रेनिंग देने की जानकारी सोशल मीडिया में दी, जिसे पढ़कर स्कॉटलैंड की ‘इंडिया’ नाम की एक महिला भी जगदलपुर पहुंच गईं। इंडिया ने बताया कि बस्तर जैसे इलाके में ऐसे ट्रेनिंग सेशन की जानकारी के बाद वे खुद को नहीं रोक पाईं। उन्होंने कहा कि बस्तर को जैसा दिखाया जाता है, यह ठीक उलट है। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता अक्सर भारत आते थे और इसीलिए उन्होंने उनका नाम ही इंडिया रख दिया।
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