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पर्यावरण एवं वन मंत्रालय पर दो लाख जुर्माना

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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उद्योगों में पेट कोक और फर्नेस तेल के इस्तेमाल से होने वाले प्रदूषण उत्सर्जन के मानकों को अंतिम रूप नहीं दिये जाने के कारण आज पर्यावरण मंत्रालय को आड़े हाथ लिया और उस पर दो लाख रूपए का जुर्माना लगाया। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इसे पूरी तरह निराशाजनक स्थिति बताते हुये मंत्रालय से सवाल किया कि इस साल 30 जून तक इसे करने के बारे में शीर्ष अदालत के निर्देशों के बावजूद अभी तक इन मानकों को अंतिम रूप क्यों नहीं दिया गया।

पीठ ने कहा, आप (पर्यावरण मंत्रालय) हमें बताये कि आप तीन चार महीने से क्या कर रहे थे? आप एक हलफनामा दाखिल करके कहिए कि हमें प्रदूषण की परवाह नहीं है। उद्योगों का कहना है कि वे जो भी मानक निर्धारित होंगे, उनका पालन करेंगे। उद्योग तो यह कह रहे हैं लेकिन मंत्रालय इस पर बैठा हुआ है। हमे नहीं पता कि आखिर हो क्या रहा है। मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिन्दर सिंह ने कहा कि इस संबंध में अधिसूचना का मसौदा कल जारी किया गया है और इन पर 60 दिन के भीतर आपथियां मंगायी गयी हैं।

उन्होंने पीठ से यह भी कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उद्योगों की 34 श्रेणियां हैं जो पेट कोक और फर्नेस आयल का इस्तेमाल करती हैं और अनेक श्रेणी के उद्योगों के लिये पहले मानक निर्धारित किये गये थे। पीठ ने अचरज और अप्रसन्नता व्यक्त करते हुये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय पर दो लाख रूपए का जुर्माना लगाया। इस मामले में सुनवाई के दौरान पीठ को सूचित किया गया कि उसके दो मई के आदेश के बावजूद पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इस संबंध में अभी तक अधिसूचना जारी नहीं की है।

न्यायालय ने दो मई को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया था कि इन उद्योगों के सीमित संख्या मे अधिकृत प्रतिनिधियों को अपना पक्ष रखने का अवसर देने के बाद पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुये इन इकाईयों के लिये सल्फर आक्साइड्स और नाइट्रोजन आक्साइड्स के उत्सर्जन के मानक निर्धारित किये जायें। न्यायालय ने आज जब इस बारे में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जानना चाहा तो उसके वकील ने कहा कि उन्होंने जून महीने में ही मंत्रालय को उत्सर्जन मानकों के बारे में राय दे दी थी। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि चार महीने बीत जाने के बावजूद मंत्रालय अभी तक उत्सर्जन मानक निर्धारित नहीं कर सका है। न्यायालय पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाया गया था।

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