शिवसेना ने आज तंज किया कि देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की आवश्यकता संबंधी राष्ट्रीय स्ंवयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान के लिए क्या उन पर “देश विरोधी” अथवा “हिंदू विरोधी” होने का ठप्पा लगेगा। पार्टी ने कहा कि सरसंघचालक ने उसी मुद्दे पर स्पष्ट राय रखी है जिसे शिवसेना उठाती रही है और देश के हालात को देखते हुए यह आशा की किरण साबित हो सकती है।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा, “आरएसएस सर संघचालक ने इशारा किया है कि प्रशासन कमजोर हुआ है और देशभर में भ्रष्टाचार व्याप्त है। चूंकि उन्होंने( देश में) भ्रष्टाचार की बात को स्वीकार किया है, क्या उन पर देश विरोधी अथवा हिंदू विरेाधी होने का ठप्पा लगेगा?’
इसमें कहा गया है कि भ्रष्टचार पर आवाज उठाने वाली शिवसेना पहली पार्टी थी और अब मोहन भागवत ने भी वहीं मुद्दे उठाएं हैं। भागवत ने मराठा शासक शिवाजी के शासन का आह्वान किया था और कहा था कि जहां महिला की सुरक्षा की गारंटी नहीं है ऐसे बदलते हुए वक्त का दोषारोपण किस पर किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भारत को भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की जरूरत है।
वह 17 वीं शताब्दी के मराठा शासक की पुण्यतिथि पर पिछले सप्ताह आयोजित एक कार्यक्रम पर लोगों को संबोधित कर रहे थे। शिवसेना ने कहा, “देश ने शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे तथा राष्ट्रीय स्वंयसेवकसंघ प्रमुख के रूख को हमेशा गंभीरता से लिया है। इन दो कद्दावर नेताओं ने कभी चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उन्होंने जनता की आवाज उठाने वाले दक्षिणपंथी संगठनों को मजबूत करऩे का काम किया है।”
संपादकीय में कहा गया, “हालांकि केन्द्र में भाजपा नीत सरकार है वास्तविक नियंत्रण नागपुर में है। और अब आरएसएस प्रमुख ने खुद ही यह मुद्दा उठा दिया है।” इसमें कहा गया है कि शिवसेना जातियों और उनके तनाव को दरकिनार करने की भागवत की अपील का स्वागत करती है। संपादकीय में पश्चिम बंगाल में हिंसा तथा शिक्षा तंत्र से जु्डे मुद्दे पर भी विचार रखे गए।
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