”मन आहत है, आंखें नम
कितना पिया जाए गम
नहीं देखा जाता बिछी हुई लाशों का ढेर
नहीं सहन होती मां की चीख
नहीं देखा जाता छनछनाती चूडिय़ों का टूटना
नहीं देखा जाता बच्चों के सर से उठता मां-बाप का साया
न जाने कब थमेगा यह मृत्यु का नर्तन
यह भयंकर विनाशकारी तांडव
पीछे वालों की जिन्दगी में अंधेरा
मजबूर कर देगा जिंदा लाश बनकर।”
मुम्बई के घटनाक्रम पर सीमा सचदेव की कविता बार-बार आहत करती है।
24 साल पहले 12 मार्च, 1993 के दिन केवल 2 घंटे 12 मिनट में मायानगरी मुम्बई ने 13 धमाके झेले। इनमें 257 लोगों की मौत हो गई थी और 700 के करीब लोग घायल हुए थे। भारत की धरा पर यह पहला बड़ा आतंकी हमला था जिसमें बम धमाकों में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। बम्बई स्टाक एक्सचेंज की इमारत के बेसमेंट में कार बम धमाके के बाद धमाके होते गए। माहिम, जावेरी बाजार, प्लाजा सिनेमा, होटल सी रॉक और अन्य जगह शृंखलाबद्ध बम धमाकों से मुम्बई कांप उठी थी। चारों तरफ निर्दोषों की चीखोपुकार, सायरन बजाती गाडिय़ां, अस्पतालों के भीतर और बाहर लोगों की भीड़। इस हमले के बाद अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी की गोद में जा बैठा था।
इस मामले में 123 अभियुक्त थे जिनमें से 12 को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। इस मामले में 20 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी जबकि 23 लोगों को निर्दोष माना गया था। 21 मार्च, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसला सुनाया था, जिसमें अभिनेता संजय दत्त के अलावा दाऊद इब्राहिम और याकूब मेमन को दोषी करार दिया गया था। संजय दत्त अपनी सजा भुगत कर नया जीवन शुरू कर चुके हैं। तब से लोगों को न्याय का इंतजार था क्योंकि न्याय अधूरा था। अंडरवल्र्ड सरगना दाऊद और उनके परिवार के कुछ सदस्य पाकिस्तान के कराची शहर में बैठकर आईएसआई और सैन्य सुरक्षा के बीच आज भी भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहे है। मुम्बई धमाकों के मकसद के बारे में कहा गया था कि यह उन मुसलमानों की मौत का बदला लेने के लिए किया गया था जो बाबरी विध्वंस के बाद हुए दंगों में मारे गए थे।
24 साल बाद टाडा अदालत ने आज अहम फैसला सुनाते हुए अबू सलेम समेत 6 अभियुक्तों को दोषी करार दिया है। 2006 में आए फैसले में याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनाई गई थी, याकूब 1993 बम धमाकों में वांटेड टाइगर मेमन का भाई था। उसे 2015 में फांसी दे दी गई थी लेकिन 7 अभियुक्तों का फैसला तब नहीं हो पाया था। दरअसल इन 7 अभियुक्तों को 2002 के बाद विदेश से प्रत्यर्पित किया गया था जबकि केस की सुनवाई 1995 में चल रही थी।
90 का दौर वह दौर था जब मुम्बई में अंडरवल्र्ड का सिक्का चलता था। अंडरवल्र्ड की दुनिया में कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने जुर्म को एक नई परिभाषा दे दी। जरायम पेशे की अंधेरी गलियों में निकल कर अपराध की दुनिया में कुख्यात हो गये। इन्होंने अपने कारनामों से आम जनता ही नहीं बल्कि पुलिस विभाग के लिए तमाम दुश्वारियां खड़ी कीं। ऐसा ही एक नाम है अबू सलेम का जिसके नाम से कभी बालीवुड कांप जाता था। एक वकील का बेटा अबू सलेम मुम्बई में कार ड्राइवर से डी कम्पनी का एक अहम सदस्य बन गया। जुर्म की दुनिया में पहला कदम रखने के बाद अपने तेजतर्रार दिमाग की वजह से वह जल्द ही गैंग में आगे बढ़ गया। उसे मुम्बई के फिल्म उद्योग और बिल्डरों से पैसा वसूली का काम सौंपा गया था। मुम्बई बम कांड में अबू ने ही भरूच (गुजरात) से हथियारों की खेप और विस्फोटक सामग्री मुम्बई पहुंचाई थी। मुम्बई बम कांड के बाद से दाऊद गैंग ने दुबई में पनाह ली थी।
गुलशन हत्याकांड में उसका नाम आया था। बालीवुड निर्माता-निर्देशक राजीव राय और राकेश रोशन को मारने की नाकाम कोशिश की। मनीषा कोइराला के सचिव समेत 50 लोगों की हत्या के मामले में भी उसका नाम शामिल था। अब सवाल यह है कि क्या हत्यारे अबू सलेम को फांसी की सजा दी जाएगी? क्योंकि जब पुर्तगाल से अबू सलेम को उसकी प्रेमिका मोनिका बेदी के साथ भारत प्रत्यर्पित किया गया था तो पुर्तगाल ने तीन शर्तें रखी थीं। पहली, उसे फांसी नहीं दी जाएगी, उसे 25 वर्ष से ज्यादा की सजा नहीं दी जाएगी और उसे किसी तीसरे देश को प्रत्यर्पित नहीं किया जाएगा। सबसे अहम सवाल यह है कि अगर उसे उम्रकैद की सजा भी दी गई तो वह जेल में तो पहले ही सजा भुगत रहा है। सवाल यह है कि क्या आतंकवाद के पीडि़तों के साथ इंसाफ हुआ है। बम कांड का षड्यंत्रकारी दाऊद अभी भी पाकिस्तान में बैठकर अपना साम्राज्य चला रहा है। देखना यह है कि अदालत दोषियों को क्या सजा देती है।