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मध्य प्रदेश में ‘अ’ लोकतंत्र

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लोकतन्त्र में विपक्ष का यह धर्म और कर्तव्य होता है कि वह सत्ताधारी दल का विरोध करे, उसे बेनकाब करे और यदि मुमकिन हो तो उसे हुकूमत से बेदखल करे मगर यह सब कानून के दायरे में संवैधानिक तरीके से जनता की ताकत को साथ लेकर किया जाना चाहिए। सत्तापक्ष की जिन नीतियों को विपक्षी दल जन विरोधी समझता है उनके खिलाफ जनमत तैयार करने का उसे पूरा अधिकार भारत का लोकतन्त्र देता है। संसदीय प्रणाली में विपक्ष के इस पवित्र लोकतान्त्रिक अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे सकता। अत: मध्य प्रदेश के किसानों के आन्दोलन में शिरकत करने की कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी की कोशिश को अवसर का लाभ उठाने का प्रयास किसी भी तौर पर नहीं माना जा सकता है। उनके साथ राज्य के नीमच व मन्दसौर इलाके में गये वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह व सचिन पायलट आदि के अलावा जद (यू) नेता शरद यादव की भूमिका को भी किसानों के साथ एकता दिखाने के अलावा किसी अन्य दृष्टि से देखा जाना मूर्खता होगी। राज्य की भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार यदि किसान आन्दोलन को हिंसक होने से रोकने में असमर्थ रही है तो यह उसकी असफलता की ऐसी जीती-जागती मिसाल है जिसमें किसानों की जायज समस्याओं को लगातार अनदेखा करने का सच छुपा हुआ है।

किसान न तो कांग्रेस का मोहताज हो सकता है और न भाजपा का मगर शिवराज सिंह की सरकार ने इस आन्दोलन में शिरकत करने गये राहुल गांधी व सचिन पायलट को गिरफ्तार करके राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर डाली है। ऐसा करके उन्होंने किसानों के आन्दोलन को परोक्ष रूप से देश के दूसरे भागों में भी फैलने का रास्ता खोल डाला है। सवाल यह नहीं है कि किसान राज्य की भाजपा की चुनी हुई सरकार के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे हैं बल्कि मूल सवाल यह है कि किसान वर्तमान बाजार मूलक आर्थिक नीतियों के चलते कृषि क्षेत्र की बदहाली के खिलाफ आन्दोलनरत हैं। इसी मध्य प्रदेश में 1998 में भी कांग्रेस के मुख्यमन्त्री दिग्विजय सिंह के शासन में रहते किसानों पर गोलियां चली थीं। उस समय विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा ने अपनी भूमिका निभाई थी। इसके बाद राजस्थान में जब पिछली बार वसुन्धरा राजे की भाजपा की सरकार थी तो पानी की मांग करने वाले किसानों पर गोलियां चली थीं। तब विपक्षी कांग्रेस ने किसानों के समर्थन में आन्दोलन किया था। इस सबका नतीजा एक ही निकल सकता है कि हमें किसानों की समस्याओं का सुविचारित हल ढूंढने में दिक्कत आ रही है। इस सम्बन्ध में स्वतन्त्र भारत में कई बार पहल भी हुई मगर वे सभी रद्दी खाते में चली गईं। सबसे महत्वपूर्ण सुझाव पिछली मनमोहन सरकार के कार्यकाल में कृषि पर गठित राष्ट्रीय कृषि आयोग ने दिये जिसके अध्यक्ष एस. स्वामीनाथन थे।

उन्होंने मुख्य सुझाव यह दिया कि किसानों की फसल का भुगतान उसकी लागत मूल्य का डेढ़ गुना दिया जाना चाहिए। इससे कृषि क्षेत्र को लाभप्रद बनाने में मदद मिलेगी और इसमें निवेश में भी वृद्धि होगी मगर हकीकत यह है कि सभी सत्ताधारी दल किसान को मजबूत बनाने की जगह मोहताज बनाये रखना चाहते हैं जिससे वे उसके वोटों को हड़प सकें। बेशक कर्ज माफी कोई स्थायी हल नहीं है मगर कुदरत की मुसीबत का मारा किसान आखिर जाये तो जाये कहां? आत्महत्या इसका इलाज नहीं हो सकता। उसे दुनिया का सामना करना ही होगा मगर मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री को सोचना होगा कि वह किस कदर कमजोर हो चुके हैं जो किसानों के आन्दोलन को दबाने के लिए विपक्ष के जायज लोकतान्त्रिक अधिकार का दमन कर देना चाहते हैं। आन्दोलनकारी किसानों से मिलने से राहुल गांधी को रोककर उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि उनकी हुकूमत का इतना रुतबा भी नहीं बचा है जो किसानों के मृत शवों पर विपक्षी नेताओं को आंसू बहाने तक की इजाजत दे सके।

श्री चौहान को नहीं भूलना चाहिए कि मध्य प्रदेश उन महान समाजवादी नेता स्व. एम.वी. कामथ का राज्य है जिन्होंने हौशंगाबाद से सांसद रहते न जाने कितने किसान आन्दोलन भोपाल में बैठे मुख्यमन्त्रियों की आंख में आंख में डालकर चलाये थे और हर बार जनता ने उन्हें सिर पर बिठाया था। चौहान को तो अभी उन 46 लोगों की मृत्यु का जवाब भी देना है जिन्होंने व्यापमं घोटाले के चलते अपनी जान गंवाई है मगर जिस राज्य में किसानों की जमीन से लेकर नदियों का पानी और मंडियों से लेकर पर्यटक स्थलों तक को कार्पोरेट कम्पनियों के हवाले कर दिया गया हो वहां खेत में खड़ी फसल की क्या कीमत हो सकती है? जिस मुख्यमन्त्री की सरकार आन्दोलन के हिंसक हो जाने पर उसका जिम्मा विपक्ष पर डालने के लिए बेजान तर्कों को खोजने लगे तो समझ लिया जाना चाहिए कि उसका यकीन जनता की ताकत से उठ चुका है क्योंकि यह जनता ही होती है जो विपक्ष व सत्ता पक्ष को ताकत देती है। विपक्ष के साथ जनता की ताकत जुडऩे के डर से वह विपक्ष के नेताओं को जनता के साथ सीधे संवाद करने से रोकने के लिए दमनकारी तरीके अपनाने लगती है। श्री चौहान भूल गये कि पिछले सत्तर वर्षों में भाजपा के नेताओं ने सैकड़ों आन्दोलन चलाकर ही जनता की सही मांगों के लिए सत्ता को झुकने के लिए मजबूर किया।

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