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अफगानिस्तान : भारत की मदद मांगता अमेरिका

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यह कैसा विरोधाभास था कि सदियों के इतिहास में वह कुछ अमेरिका में नहीं घटा था, जो 11 सितम्बर 2001 के दिन घटा और साथ ही जो विश्व का सबसे बड़ा आतंकवादी देश है, उसे अमेरिका ने अपनी गोद में बैठा लिया। एक पुरानी कहावत है जब नाश मनुष्य पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। उन दिनों जॉर्ज डब्ल्यू बुश जूनियर पर युद्ध का जुनून छाया हुआ था उसके बाद आए बराक ओबामा। ओबामा भी पिता-पुत्र बुश राष्ट्रपतियों द्वारा प्राचीन मैसोपोटामिया (इराक), फारस (ईरान) और भारत की गंगा-जमुनी सभ्यताओं में बोए गए बीजों की फसल ही काटते रहे। ओबामा सरकार यह उम्मीद कर रही थी कि ओसामा बिन लादेन को खत्म कर दिया जाए और उसके अलकायदा को धूल में मिला दिया जाए तो अमेरिका शान्ति से रह सकेगा।

अनेक फनों वाले यूनाइटेड जिहाद कौंसिल नामक सांप का सिर कुचलना चाहता था अमेरिका और इस काम के लिए ओबामा पाकिस्तान की आर्मी को जिम्मेदारी सौंपना चाहते थे। ओसामा बिन लादेन को मारना तो क्या था, पाकिस्तान ने उसे ऐबटाबाद में शरण दे रखी थी जिसे अमेरिकियों ने ढूंढकर मार डाला था। अफगानिस्तान में अमेरिका और मित्र देशों को पराजय का मुंह देखना पड़ा तो उसका सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना था। पाकिस्तान सेना तो जिहादी रंग में रंगी है। पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक के सऊदी अरब की वहाबी धाम के इस्लामी कट्टरपंथ को 1978 में सशस्त्र सेनाओं ने प्रश्रय दिया था। मतलब यह है कि पाक का हर सैनिक चाहे वह अफसर के दर्जे से नीचे हो या अफसर, या कैडर का हो, वह वर्दी के भीतर जिहादी है। पाक सेना, आईएसआई और पाक समर्थित आतंकवादी संगठनों ने अफगानिस्तान में अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं के पांव जमने ही नहीं दिए।

ओबामा ने घोषणा की थी कि तालिबान की बढ़त को खत्म करके अफगानियों के लिए बेहतर सुरक्षा उपलब्ध कराना चाहते हैं और अफगानिस्तान में एक प्रभावी सरकार बनाने के बाद वे जुलाई 2011 में अपनी सेनाओं को हटाना चाहते हैं। अफगानिस्तान युद्ध पर अमेरिका लगभग 300 अरब डॉलर खर्च कर चुका था। ओबामा भी पाकिस्तान को वित्तीय मदद देते रहे और पाकिस्तान इस धन से अफगानिस्तान में आतंकवाद को सींचता रहा। उसका कारण यह भी है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी नहीं चाहता। भारत अफगानिस्तान के नवनिर्माण में काफी योगदान दे रहा है। अफगानिस्तान की संसद भी भारत ने बनाकर दी है। भारत ने वहां के रेल प्रोजैक्ट और सड़क परियोजनाएं अपने हाथ में ले रखी हैं। भारत उदारता से एक अरब डॉलर की आर्थिक मदद भी अफगानिस्तान को दे रहा है जबकि पाकिस्तान चाहता है कि अमेरिकी सैनिकों के पूरी तरह लौटने के बाद वहां उसकी कठपुतली सरकार बने और वह अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका निभाए। इसीलिए वह वहां हक्कानी नेटवर्क की मदद करता है।

तालिबान जिसे अमेरिका दुश्मन मानता है, उसे पाकिस्तान के भीतर काम करने में कोई मुश्किल नहीं होती। वह आतंकवाद के नाम पर अमेरिका से अरबों डॉलर की मदद लेता रहा लेकिन हमेशा उसने अपनी ही की। पाक के खेल को न बुश समझ सके और न ही ओबामा। ओबामा अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से निकालने में जुटे रहे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान की असलियत से परिचित है। उन्होंने अफगानिस्तान पर अमेरिकी रणनीति घोषित करते हुए पाकिस्तान को आतंकियों के लिए जन्नत बताया और कहा कि अब अमेरिका पाक को लेकर चुप नहीं रहेगा। साथ ही उन्होंने भारत के साथ सामरिक भागीदारी करने की बात कही। उन्होंने भारत की आतंकवाद के खिलाफ जारी लड़ाई के साथ-साथ भविष्य में दक्षिण एशिया में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की बात भी कही है। अफगानिस्तान में भारत की बड़ी मदद भी मांगी है। ट्रंप ने अफगानिस्तान में 4 हजार और सैनिक भेजने की भी जानकारी दी है। कभी आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान को अपना साथी बताने वाला अमेरिका अब भारत की मदद मांग रहा है।

निश्चित रूप से स्थितियां बदली हैं। भारत ने भी ट्रंप की नीतियों का स्वागत किया है। अमेरिका ने हाल ही में हिज्बुल को आतंकवादी समूह घोषित किया। इससे पहले उसने अजहर मसूद को आतंकी घोषित किया था। चीन पाक के समर्थन में खड़ा है। उसने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कुर्बानियां दी हैं। पाक ने कौन सी कुर्बानियां दी हैं, यह तो चीन ही जाने। अमेरिका अगर पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कदम उठाता है तो पाकिस्तान के पास चीन और रूस के साथ अपना सहयोग बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान में अपने पूर्व के नेताओं द्वारा इराक को लेकर की गई गलती दोहराना नहीं चाहते। वह जानते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिका के निकल जाने पर एक वैक्यूम बनेगा जिसे आईएस, अलकायदा, तालिबान तेजी से भरेंगे और हालात खराब हो जाएंगे।

सवाल यह है कि क्या ट्रंप चाहते हैं कि भारत अफगानिस्तान में सामरिक भूमिका निभाए। भारत को सोच-समझ कर आगे बढऩा होगा लेकिन यह संतोष की बात है कि अमेरिका ने अब पाक की असलियत को समझना। बहुत ज्यादा अमेरिकी दबाव पाक को अस्थिर कर सकता है। देखना होगा पाक पर अमेरिकी दबाव का कितना असर होता है। अफगानिस्तान का 40 फीसदी हिस्सा आज तालिबान के कब्जे में है जिसकी मदद पाकिस्तान कर रहा है। अगर तालिबान वहां मजबूत होता है तो भारत के हितों को नुक्सान होगा। अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया में अमेरिकी रणनीति में नाटकीय परिवर्तन आया है। देखना है कि हालात क्या करवट लेते हैं।

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