कोई भी देश घाटे की कम्पनियों और सार्वजनिक उपक्रमों के सहारे नहीं चल सकता। देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी है कि या तो बीमार कम्पनियों को पुनर्जीवित किया जाए या फिर उनका विनिवेश किया जाए। देश का महाराजा यानी एयर इंडिया इस समय घाटे में है और इसे 50 हजार करोड़ का घाटा है और इस पर 52 हजार करोड़ का कर्ज है। भारत के भीतर से जितनी कमाई होती है उसमें से 14 फीसद कमाई एयर इंडिया करती है जबकि 75 फीसद उड़ान विदेश के लिए होती हैं। 85 वर्ष पहले 1932 में जेआरडी टाटा ने इसे शुरू किया था। इसकी पहली उड़ान कराची से मुम्बई तक थी। 1948 में सरकार ने इसका 19 फीसद हिस्सा खरीद लिया था। 1953 में सरकार ने इसे पूरी तरह टाटा ग्रुप से खरीद लिया था और एयर इंडिया एयर लाइंस बन गई थी। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने एयर इंडिया के लिए लगभग 24 हजार करोड़ का 10 वर्षीय पुनरुद्धार पैकेज दिया था, इसके बावजूद इसकी हालत में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। इसकी हालत में केवल इतना ही सुधार हुआ था कि एयर इंडिया परिचालन हालत में आ गई।
हालांकि 2015-16 में एयर इंडिया को 105 करोड़ का लाभ हुआ था। इसका कारण एटीएफ मूल्य में कमी माना जाता है। एयर इंडिया सेवाओं के मामले में आम निजी विमानन कम्पनियों की सेवाओं के मुकाबले गुणवत्ता के स्तर में काफी नीचे है और 75 फीसदी यात्री निजी विमानन कम्पनियों के विमानों में यात्रा करना पसन्द करते हैं। इससे निश्चित रूप से कम्पनी को घाटा हो रहा है। सरकार एयर इंडिया को घाटे से उबारने के लिए या तो हजारों करोड़ रुपए इसे दे या फिर इसका विनिवेश करे। केन्द्र सरकार ने अंतत: एयर इंडिया के विनिवेश का सैद्धांतिक फैसला ले लिया है। विनिवेश का फैसला गहन विचार-विमर्श के बाद लिया गया है। इसे कार्यान्वित करने के लिए समय भी लगेगा। इसके लिए वित्तमंत्री अरुण जेतली की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है जो एयर इंडिया की परिसम्पत्तियों, होटलों के कर्ज आदि अनेक पहलुओं पर विचार करेगी। विनिवेश के तरीकों को तय करने के लिए मंत्रियों का समूह गठित किया गया है। केन्द्र ने एयर इंडिया के विनिवेश का ऐलान तो कर दिया लेकिन भाजपा और संघ परिवार से जुड़े संगठन ही इसके विरोध में खड़े हैं। भारतीय मजदूर संघ ने कहा है कि इससे यहां के हजारों कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा, वह बेरोजगार हो जाएंगे, सरकार अपना फैसला वापस ले अन्यथा नवम्बर माह में 5 लाख मजदूर संसद का घेराव करेंगे।
एयर इंडिया के कर्मचारियों का कहना है कि इसको निजी हाथों में सौंपने की बजाय इसका पूरा कर्जा माफ कर देना चाहिए। यदि एयर इंडिया को बेचा जाता है तो इससे पहले कर्मचारियों के सभी बकायों का भुगतान किया जाना चाहिए। यद्यपि श्रममंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने आश्वासन दिया है कि एयर इंडिया के विनिवेश के बाद सभी कर्मचारियों को एब्जर्ब किया जाएगा। उनको सही जगह एडजस्ट किया जाएगा और उनके हितों की रक्षा की जाएगी लेकिन मजदूर संगठन मानने को तैयार नहीं। लैफ्ट समर्थित सीटू पहले ही इस फैसले पर विरोध जता चुकी है। संघ परिवार के भीतर एयर इंडिया के विनिवेश को लेकर एक राय नहीं। वित्तमंत्री अरुण जेतली मानते हैं कि यदि यात्रियों की पसन्द निजी विमानन कम्पनियां हैं तो फिर एयर इंडिया में हजारों करोड़ लगाने से कोई फायदा नहीं होगा। यदि एयर इंडिया के विमान खराब एसी के बावजूद उड़ान भरेंगे और एयर इंडिया कर्मचारियों की लापरवाही से यात्रियों की हालत खराब होगी तो फिर इसके विमानों में कौन सवार होना चाहेगा।
वित्तमंत्री कहते हैं कि हजारों करोड़ से नए एम्स खुल सकते हैं, नए शिक्षा संस्थान, स्कूल-कॉलेज खुल सकते हैं, बुनियादी ढांचे पर यह धन खर्च किया जा सकता है तो फिर घाटे वाली कम्पनी में पूंजी डालने का क्या फायदा। वित्तमंत्री का मानना सही है। एयर इंडिया का विनिवेश सार्वजनिक क्षेत्र की घाटे में चलने वाली अन्य कम्पनियों के लिए सख्त संदेश है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की स्थापना के पीछे जो उद्देश्य निहित है उसकी पूर्ति निजी कम्पनियों से संभव हो सकती है। सार्वजनिक उद्यम का प्रबंधन कुशल हाथों में होना चाहिए तभी यह उद्यम लाभ कमाएंगे। सेवाओं की गुणवत्ता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर सरकार के सामने विनिवेश ही सही रास्ता है। हो सकता है कि सरकार एयर इंडिया का स्वामित्व अपने पास रखे, कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही होगा।