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एके का नया दांव केएच

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इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीति में कब कुछ नया घट जाए, जिससे सारा नक्शा ही बदल जाए। भारतीय लोकतंत्र में राजनीति ने अक्सर करवटे ली हैं और उसके परिणाम सबसे ज्यादा अगर किसी ने देखे हैं तो वो दिल्ली है। पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण राजनीति में कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है कि जिसका लोग भी कई बार इंतजार करते हैं। इसका नाम परिवर्तन हो सकता है लेकिन यह परिवर्तन तब होता है जब कोई सुगबुगाहट होने लगती है। दिल्ली के राजनीतिक धरातल पर सबसे बड़ा बदलाव आम आदमी पार्टी का पावर में आना है। कुल 70 में से 67 सीटें जीत जाना यह कोई तीर-तुक्का नहीं था। कोई न कोई समीकरण इस बदलाव के पीछे था, जिसने न केवल दिल्ली से 15 साल पुरानी कांग्रेस सरकार को खदेड़ दिया बल्कि भाजपा को भी जमीन सुंघा दी। खैर, अब एक ऐसी ही राजनीतिक करवट केजरीवाल के नए पग के रूप में देखी जा सकती है।

चार-पांच दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक ने दक्षिण भारत के एक महान अभिनेता कमल हासन से मुलाकात की तो राजनीतिक पंडित अलग तरह के कयास लगाने लगे हैं। क्या केजरीवाल की पार्टी दिल्ली में जो सफलता की कहानी लिख चुकी थी, अब उसे आम आदमी पार्टी कहां दोहरा सकती है इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक काम-काज में लग गए हैं। कांग्रेस और भाजपा ने भी केजरीवाल के इस पग पर आंखें गड़ा ली हैं। केजरीवाल का चेन्नई जाना और देश के ऐसे स्टार से मिलना, जिसकी आवाज में आज भी कशिश है और लोग जिसके पीछे दीवाने हैं, अगर कमल हासन केजरीवाल से राजनीतिक रूप से गठजोड़ कर लेते हैं तो फिर कहीं भी विशेष रूप से दक्षिण में बहुत कुछ हो सकता है। अगर दक्षिण में केजरीवाल और कमल हासन का नया गठजोड़ बनता है तो फिर भाजपा के लिए यह एक झटका हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक ऐसा ही मान रहे हैं लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि भाजपा दक्षिण में अपनी जड़ें जमा चुकी है लिहाजा उन्हें इस गठजोड़ का फर्क नहीं पड़ेगा।

सच बात तो यह है कि राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष आज सत्तारूढ़ पार्टी का विकल्प नहीं बन सका। यह भाजपा, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी जाती है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बड़े रणनीतिकार अमित शाह की भी बड़ी जीत है कि विपक्ष आज बिखर रहा है। बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश की जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। उनके साथ एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि वह कांग्रेस वर्करों की इच्छा पर भी नहीं खरे उतर रहे हैं। लिहाजा कांग्रेस बैकपुट पर है लेकिन हम बात फिर से उस आम आदमी पार्टी की करते हैं जिसने पिछले तीन-चार महीनों में अब उतार देखने शुरू कर दिए हैं। कल तक यह पार्टी चढ़ाई पर थी लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिस प्रकार दिल्ली के एमसीडी चुनावों में पार्टी का वह एजेंडा जनता के सामने नहीं ला पाए जो विधानसभा चुनावों में रखा गया था। इसीलिए जनता ने उन्हें नकार दिया।

भाजपा धड़ल्ले से एमसीडी में चुनाव जीत गई। कांग्रेस फिर फिसड्डी रही। पंजाब में आम आदमी पार्टी जो सत्ता पाने के बड़े-बड़े दावे कर रही थी को शिकस्त झेलनी पड़ी। गोवा में भी आम आदमी पार्टी की हवा निकल गई। गुजरात से आम आदमी पार्टी ने किनारा कर लिया है। ऐसे में एक कमल हासन जैसे स्टार के साथ अगर केजरीवाल कोई गठजोड़ बनाते हैं तो इससे यह समीकरण बनता है कि केजरीवाल पूर्व में की हुई गलतियों से सबक लेने की ताकत रखते हैं। दिल्ली के बवाना उप चुनाव में जीतना यह केजरीवाल की और आम आदमी पार्टी की एक बड़ी ताकत है। केजरीवाल अपनी सक्रियता अब एक अलग ढंग से करना चाहते हैं। राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक नया गठजोड़ अगर बनता है तो उसका प्रभाव काफी हद तक राजनीति को प्रभावित कर सकता है। इतना ही नहीं दक्षिण में रजनीकांत अभी कोई संकेत नहीं दे रहे हैं कि उनका राजनीति में आने का इरादा है या नहीं लेकिन केजरीवाल ने जिस तरह से अपनी सक्रियता बढ़ाई है वह सचमुच किसी को भी झटका देने के लिए काफी है।

इस कड़ी में हम कहना चाहते हैं कि उतार-चढ़ावों के दौर से गुजर रही केजरीवाल की पार्टी जनता के बीच में अपना प्रभाव और वजूद आज भी बरकरार रखे हुए है। कल क्या होगा कहा नहीं जा सकता लेकिन केजरीवाल ने सफलता और सत्ता दोनों ही भोग लिए हैं और अब राष्ट्रीय परिदृश्य पर जिस तरह से राजनीति के नए गठजोड़ की आहट आ रही है वह किसी भी बड़े और छोटे दल को हैरान कर देने के लिए काफी है। दिल्ली में भी जब विधानसभा चुनाव होंगे तो आज की तारीख में फौरी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तय है कि 2019 के लिए भाजपा लोकसभा के लिए अपना मिशन तय कर चुकी है तो स्थिति और भी दिलचस्प हो जाएगी। कौन सा समीकरण जनता को जंच जाए और जनता किसे नजरअंदाज कर दे राजनीति में इसकी पहले से भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। हां दांव जरूर चले जाते हैं तो केजरीवाल ने अपना पांसा फैंक दिया है। अब इसका परिणाम क्या होगा फिलहाल अटकलें चल रही हैं लेकिन राजनीतिक पार्टियां अलर्ट हो गई हैं। हमारा मानना है कि आने वाले दिनों में न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि दक्षिण और दिल्ली में भी राजनीतिक गतिविधियां उफान पर आ सकती हैं। इसका इंतजार जहां राजनीतिक दलों को है तो वहीं लोकतंत्र में भी एक नया फलसफा देखने को मिल सकता है।

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