डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद एच-ढ्ढ बी वीजा पर कड़ा रुख अपनाया था, जिससे प्रवासी लोगों को काफी फर्क पड़ा था। भारत के आईटी प्रोफैशनल्स में हड़कम्प मच गया था। एच-ढ्ढ बी वीजा ऐसे पेशेवरों के लिए जारी किया जाता है, जो खास कामों के लिए स्किल्ड होते हैं। अमेरिकी सिटीजनशिप और इमिग्रेशन सर्विसेज के मुताबिक इन खास कामों में वैज्ञानिक, इंजीनियर और कम्प्यूटर प्रोग्रामर शामिल हैं। हर वर्ष करीब 65 हजार लोगों को लॉटरी सिस्टम से ऐसे वीजा जारी किए जाते हैं। आईटी कम्पनियां इन प्रोफैशनर पर ज्यादा निर्भर करती हैं। फिलहाल 2017-18 के लिए एच-ढ्ढ बी वीजा जारी करने के लिए बिना किसी बदलाव के लॉटरी सिस्टम शुरू हो चुका है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा एच-ढ्ढ बी वीजा सुधारों पर जारी कवायद के बीच अमेरिकी प्रतिनिधि सभा और सीनेट में कम से कम आधा दर्जन विधेयक पेश किए गए थे। इन विधेयकों में दलील दी गई थी कि भारतीय आईटी कम्पनियों के बीच लोकप्रिय एच-ढ्ढ बी कार्यक्रम अमेरिकियों की नौकरियां खा रहा है। इन विधेयकों को डैमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों के नेताओं ने रखा था। अनेक रिसर्च स्कालरों, अर्थशास्त्रियों और सिलकॉन वैली के अधिकारियों ने विधेयक निर्माताओं के तर्कों को विवादित बताया था जब अमेरिकी संसद में पेश विधेयक इसी तर्क पर आधारित थे कि भारतीय टैक्नालोजी कम्पनियां अमेरिकी लोगों को बेरोजगार कर रही हैं। विधेयक में एच-ढ्ढ बी वीजा धारकों के लिए न्यूनतम वेतन 1 लाख 30 हजार डॉलर रखने का प्रस्ताव था। एच-ढ्ढ बी सुधार विधेयक में लॉटरी व्यवस्था खत्म करने और अमेरिका में शिक्षा हासिल करने वाले विदेशी छात्रों को प्राथमिकता देने का प्रस्ताव दिया गया था।
ट्रंप सरकार की वीजा नीतियों से भारत सरकार भी चिन्तित रही और सरकार ने ट्रंप शासन से बातचीत भी की। ट्रंप का रुख कई मुद्दों पर भारत विरोधी रहा तो कई मुद्दों पर भारत समर्थक। इमीग्रेट्स की संख्या पर लगाम कसने के लिए अमेरिका ने अब नई इमिग्रेशन नीति तैयार की है। इस नीति के तहत लीगल इमिग्रेट्स को अब मैरिट के आधार पर वीजा दिया जाएगा। इस नीति के लागू होने के बाद इमिग्रेट्स की संख्या आधी हो जाएगी लेकिन भारतीय आईटी प्रोफैशनल्स को इससे फायदा ही होगा। अब लीगल इमिग्रेट्स को लॉटरी सिस्टम के जरिये नहीं बल्कि मैरिट के आधार पर चुना जाएगा। रिफार्मिंग अमेरिकन इमिग्रेशन फॉर स्ट्रांग एम्पलायमेंट एक्ट में प्वाइंट्स बेस्ड सिस्टम लागू होगा। इस सिस्टम में अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले, अच्छी शिक्षा हासिल करने वाले दक्ष लोगों को चुना जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस मापदण्ड में भारतीय पूरी तरह फिट बैठते हैं और उन्हें इससे फायदा ही होगा। अब भारतीयों की योग्यता और कौशल ही उन्हें ग्रीन कार्ड दिलवाएगा। इस बिल की वजह से कम स्किल्ड की जगह केवल बेहतर लोगों को ही ग्रीन कार्ड हासिल होगा।
प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो कौशल और निखर कर सामने आएगा। कोई भी अमेरिका जाकर फौरन फायदा उठाकर वापस नहीं जा सकेगा और यह अमेरिका को प्रतिस्पर्धा के दौर में ले जाएगा। वैश्विक स्तर पर भारतीय प्रोफैशनल्स ने पहले ही धूम मचा रखी है। भारतीय आईटी प्रोफैशनल्स, डॉक्टर, इंजीनियर और कम्प्यूटर प्रोग्रामरों ने विदेशों में अपनी मेहनत से ऊंची जगह बनाई है। भारतीय मूल के लोगों ने विश्व की कई प्रमुख कम्पनियों के सीईओ का पद सम्भाल कर अपनी काबलियत और क्षमता को साबित किया है। अमेरिका में भी करीब 70 फीसदी एच-ढ्ढ बी वीजा भारतीयों के पास हैं। एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका की ओर से जारी किए जाने वाले करीब 30 फीसद एल-ढ्ढ वीजा भी भारतीयों के पास है। फिलहाल सेमी स्किल्ड लोगों को परेशानी होगी मगर धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो जाएंगी। ट्रंप की नीतियों का उद्देश्य अपने देश के हितों की रक्षा करना है लेकिन उन्हें भारतीय हितों का भी ध्यान रखना होगा। अगर ट्रंप सरकार मैरिट के आधार पर वीजा देना तय करती है तो भारत को इस पर आपत्ति क्यों होगी। उम्मीद है कि इससे भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।