इसमें कोई शक नहीं कि जहां खुशहाली है वहां समस्याएं नहीं होतीं। जितना बड़ा लोकतंत्र होता है वहां उतने ही ज्यादा वाद-विवाद हो सकते हैं। भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जहां अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हों तो शासन के तौर-तरीकों को लेकर टकराव होना स्वाभाविक ही है। अगर इस संदर्भ में जम्मू-कश्मीर की बात की जाए तो समस्या कितनी भी बड़ी और गहरी क्यों न हो, संवादहीनता की स्थिति नहीं होनी चाहिए। ऐसा है या नहीं हम नहीं जानते परंतु जम्मू-कश्मीर को लेकर अवधारणा यही बन रही है और इसे तोडऩे का काम केंद्र सरकार ने सभी पक्षों से बातचीत करने के ऐलान के माध्यम से कर दिखाया।
पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर की जमीनी समस्या को खत्म करने के लिए बातचीत का सिलसिला शुरू करने की घोषणा एक प्रेस कांफ्रैंस में की, जिसका हर किसी ने स्वागत किया। इसके लिए उन्होंने बाकायदा वार्ताकार के रूप में श्री दिनेश्वर शर्मा की नियुक्ति की घोषणा भी की ताकि हर पक्ष उन तक अपनी बात पहुंचा सके। जम्मू-कश्मीर की जड़ में न केवल आतंकवाद छिपा है, बल्कि वहां के लोगों का केंद्र के खिलाफ जो रोष है उसे तेज करने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा की गई पत्थरबाजी का मुद्दा भी शामिल है। यह बात अलग है कि पत्थरबाजी में जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और भारतीय सेना के साथ-साथ बीएसएफ को भी निशाने पर लिया जाता रहा है। पिछले दो सालों में ही हमारे अनेक जांबाज सैनिक, सिपाही और अधिकारी इसी क्रम में शहीद हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह क्रम तब तेजी से चला है जब आतंकवादियों को निशाने पर लिया गया।
हिजबुल हो या लश्कर इनके आला आतंकवादी कमांडर अब मारे जा चुके हैं, तभी तो वहां पत्थरबाजी की घटनाएं तेज हुई हैं। बौखलाहट में जम्मू-कश्मीर में बहुत कुछ किया जा रहा है और सब कुछ सोशल साइट्स के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है। ऐसे में केंद्र की कश्मीर में वार्ता की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में जिस दिन से महबूबा सीएम बनी हैं और जिस दिन से उन्हें भाजपा ने सरकार बनाने के लिए समर्थन की वैसाखियां प्रदान की हैं, अब उनकी विचारधारा भी बदली है। जहर से भरी सोच की जगह उस तौर-तरीके ने ले ली है, जिसकी मांग घाटी के कश्मीरी करते रहे हैं। वह कल तक आतंकवादी घटनाओं को, स्थानीय लोगों द्वारा सेना पर पत्थर फैंके जाने की घटनाओं को सामान्य मान रही थीं, लेकिन अब वह इसकी निंदा करने लगी हैं। इसीलिए केंद्र की कश्मीर पर वार्ता के लिए पेशकश का महबूबा द्वारा स्वागत किया जाना अच्छा लगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब वह बात भी अच्छी करेंगी, अच्छी बात का मतलब जो बात केंद्र शांति के लिए करेगा, महबूबा को यह बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार करनी चाहिए।
ऌइतना ही नहीं उन्हें यह बात आतंकवादियों के आकाओं और अलगाववादी संगठनों के मुखियाओं तक पहुंचानी चाहिए, चाहे वे हुर्रियत नेता हों या अन्य वे संगठन जो सोशल मीडिया से आतंकवादियों को हीरो बनाने का काम करते रहे हैं। हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम्मू-कश्मीर को लेकर जो पॉलिसी बनी है वह सही है, क्योंकि आतंकवादी और उनके प्रमोटर (पाकिस्तानी आका) जो कुछ करते रहे हैं सरकार उस पर निगाह रखती रही और जब उनके पत्थर खत्म हो गए, आतंकवादी खत्म हो गए, उनके नापाक इरादों पर चोट पडऩे लगी और सेना को सरकार की ओर से फ्री हैंड दिया गया तो अच्छे परिणाम आने लगे हैं। जब माहौल अच्छा बन गया तब सरकार ने कश्मीर पर वार्ता का ऐलान किया, हालांकि लोग खून-खराबा नहीं चाहते, क्योंकि घाटी में सेना और आम नागरिकों के अलावा कश्मीरियों का खून तो पहले ही बहुत बह चुका है और अब सात साल बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हो रहा है तो गड़बड़ी करने वाले अब भी शांत नहीं रहेंगे। मोदी जी की टीम में चाहे एकदम सही फीडबैक देने वाले एनएसए अजीत डोभाल हों या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हों, दुश्मन पड़ोसी पाकिस्तान के मामले में हमारे पीएम और गृहमंत्री राजनाथ कदम-कदम पर विचार-विमर्श करते रहते हैं, जिसका परिणाम कश्मीर में नजर भी आने लगा है।
पर हमारी अपेक्षा यही है कि महबूबा पर अब भी नजर रखनी होगी बावजूद इसके कि वह अब अमन की बात करने लगी हैं, तो हम इसका स्वागत करते हैं, लेकिन यह सोच अब स्थाई होनी चाहिए। कुल मिलाकर सूचना और प्रौद्योगिकी के आज के युग में राज्य सरकार के पास हर शुक्रवार को अलगाववादियों के इशारे पर सुरक्षा बलों पर पथराव की योजनाओं को लेकर फीडबैक तो होना ही चाहिए और जब ऐसा है तो इस पर उपाय भी होना चाहिए। सेना पर हमले बर्दाश्त नहीं किए जा सकते, महबूबा जी को यह बात सुनिश्चित करनी होगी। हम कभी भी पाकिस्तान नहीं बन सकते, वहां विकास नहीं है, लोकतंत्र नहीं है, वह तबाही की राह पर है और जम्मू-कश्मीर को विकास की राह पर लाकर हम पूरे देश की मुख्यधारा से जोडऩा चाहते हैं तो वहां विशेष राज्य का दर्जा और धारा 370 जैसे अनेक मुद्दे हैं, जिनको लेकर आगे विचार होना चाहिए, फिर फिलहाल घाटी में वार्ता को लेकर जो गतिरोध था उस पर जमी बर्फ अब पिघल गई है और उम्मीद की जानी चाहिए कि कश्मीर पर वार्ता से अमन की सुबह होगी। यही जम्मू-कश्मीर के लिए और राष्ट्र के प्रकाशमान होने के लिए आवश्यक भी है।