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एनेलिटिका का एनेलिसिस!

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आज 23 मार्च है, शहीदे आजम भग​त सिंह का बलिदान दिवस। उनके साथ राजगुरु और सुखदेव को भी इसी दिन फांसी पर लटकाया गया था। देश की आजादी के इन परवानों ने जिस स्वतन्त्र भारत की कल्पना की थी उसकी हालत आज किसी बदहवास मुल्क की मानिन्द इस तरह हो गई है जिसमें सियासत ने इसकी इज्जत-आबरू को तार–तार करने की ठान रखी है। संसद का मिजाज इस तरह बदला है कि पता ही नहीं लग रहा है कि कौन सी पार्टी हुकूमत में है और कौन सी मुखालफत में बैठी हुई है।

सभी कसम खाकर बैठ गये हैं कि जनता के वोट से बनी इस महापंचायत की कार्यवाही नहीं चलेगी और जो भी हिसाब-किताब है वह संसद से बाहर तय होगा और इस तरह होगा कि हुकूमत में बैठने वाले लोग विपक्षी पार्टी पर तोहमत लगाएंगे और इस हकीकत के बावजूद लगाएंगे कि इन तोहमतों की सच्चाई की तह में जाने के सारे हुकूक इसी मुल्क की जनता ने उन्हें अता किए हुए हैं। सवाल न कांग्रेस का है और न भाजपा का बल्कि बुनियादी सवाल उस व्यवस्था का है जो इस देश के लोगों ने सत्तर साल पहले अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने के बाद अपनाई थी।

भारत पर जान न्यौछावर करने वाले अमर हुतात्माओं की रूह आसमान से पूछ रही है कि देखो यह वही मुल्क है जिसमें कभी अंग्रेजों की कलम से लिखे दस्तावेजों को सरेआम चौराहों पर जला दिया जाता था, आज वहां अंग्रेजों को ही हिन्दोस्तानियों के दिमाग को जानने की बिसात बिछायी जाती है। ‘केम्ब्रिज एनेलिटिका’ नाम की कम्पनी की मदद से भारत में राज्यों और केन्द्र के चुनाव जीतने के सन्दर्भ में जो आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं उनका निष्कर्ष एक ही निकलता है कि भारत के सियासतदानों को अपने ही मुल्क के लोगों का दिमाग पढ़ने की तहजीब नहीं है।

हम जिस तरह चरित्र हत्या की राजनीति को राष्ट्रीय एजेंडा बना रहे हैं उसका परिणाम केवल राजनीतिक दलों में आम जनता का विश्वास खत्म हो जाना ही हो सकता है। ध्यान रखा जाना चाहिए कि हम उस भारत के लोग हैं जिसकी आजादी की लड़ाई ने पूरे एशिया को रोशनी देने का काम किया है। हमारे ही देश के राजनीतिज्ञों ने वे मिसालें कायम की हैं जिन पर दुनिया के दो-तिहाई मुल्कों ने अमल करके खुद को विकास की राह पर डाला।

यह सब हमने उन लोगों के बूते पर किया जिन्हें अंग्रेजों ने पूरी तरह मुफलिस और अनपढ़ बना कर 1947 में हमारे हाथ में सौंपा था। यह भारत की मिट्टी की ही ताकत थी कि हमने आज दुनिया के दस अगली पंक्ति के देशों में अपना स्थान बनाने में कामयाबी हासिल की। हमने यह सफलता चीन की तरह एक ही पार्टी के निरंकुश शासन के तले लोगों को मशीन बनाकर हासिल नहीं की बल्कि हर व्यक्ति के आत्म सम्मान की रक्षा की संवैधानिक गारंटी देते हुए प्राप्त की। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है जिस पर दुनिया का अमीर से अमीर मुल्क भी रश्क करता है।

हमी वह मुल्क हैं जो विदेशों में अपने विपक्षी नेताओं के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजकर भी आश्वस्त रहता है कि संसद में सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ाने वाला विपक्ष का नेता जब दूसरे देश की धरती पर होगा तो वह केवल भारत की बात करेगा, किसी राजनीतिक दल की नहीं। हमारी इन महान परंपराओं को देखकर दुनिया दांतों तले अंगुली दबाती है कि गांधी ने वह कौन सा मन्त्र भारतवासियों को दिया है कि ये अलग–अलग होते हुए भी एक हैं। हमारी राजनीति वैमनस्य की नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा की रही है। हमने कभी खेल के नियम बदल कर प्रतियोगिता जीतने में विश्वास नहीं किया।

वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और विपक्ष की कांग्रेस पार्टी इस देश की दो महत्वपूर्ण विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। पहली का नेतृत्व प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी करते हैं और दूसरी का नेतृत्व श्री राहुल गांधी के हाथ में है। यह व्यक्तित्वों की टकराहट बिल्कुल नहीं है क्योंकि राज्यों के संघ भारत में प्रत्येक राज्य की अपनी विशिष्ट भौगोलिक व सांस्कृतिक पहचान है जिसका प्रभाव वहां की राजनीति पर पड़े बिना नहीं रह सकता।

अतः यह बेवजह नहीं था कि साठ के दशक में उत्तर प्रदेश के लौह पुरुष कहे जाने वाले मुख्यमन्त्री स्व. चन्द्रभानु गुप्ता ने दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि ‘पंडित जी उत्तर प्रदेश का शासन तीन मूर्ति (नेहरू जी का निवास) से नहीं चलेगा बल्कि दारुल शिफा (उस समय लखनऊ में मुख्यमन्त्री निवास) से चलेगा।’ यही भारत की विविधता में एकता की ताकत का नमूना था मगर यह सब हमने बिना किन्हीं सर्वेक्षणों की मदद या डाटा खंगाल कर लोगों का मन जानने के, आत्म विश्वास के साथ ही किया।

भारत तो वह देश है जहां पुराने वैद्य और हकीम हाथ की नब्ज देख कर पूरी बीमारी का तसकरा मरीज को सुना देते थे और जरूरी दवा की पुड़िया थमा कर उसे चंगा कर देते थे मगर आज की राजनीति भी आधुनिक कहे जाने वाले उन डाक्टरों की तरह हो गई है जो बीमारी जानने के लिए पहले मरीज के बीसियों टैस्ट कराते हैं और उसके बाद भी इलाज में गफलत कर जाते हैं।

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