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सशस्त्रमेव जयते

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दुनिया का हर देश बाहरी आक्रमणों से बचने और अपने देश की सुरक्षा के लिए सैन्य संख्याओं को बढ़ाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए उन पर अरबों रुपए खर्च करने में लगा है। जहां तक भारत का सवाल है, शक्तिशाली सेनाओं में हमारा नम्बर चीन के बाद चौथे नम्बर पर है। भारतीय थलसेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है और 11 लाख 30 हजार सक्रिय सैनिक और 12 लाख आर​िक्षत सैन्य कर्मियों की सेवाएं ग्रहण करने वाली भारतीय थलसेना की स्थापना सन् 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के तुरन्त बाद हुई थी। भारत अपनी सेना पर 46 अरब डालर का खर्च करता है और समय के साथ-साथ इसके और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। भारतीय वायुसेना और नौसेना की शक्ति भी लगातार बढ़ी है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने तकनीक, रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। यह तीनों ही एक-दूसरे से न सिर्फ जुड़े हुए हैं बल्कि इनका सुरक्षा के लिहाज से काफी बड़ा योगदान है।

भारत आज विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। हम आज भी रक्षा हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सके। लगातार पाक प्रायोजित छद्म आतंकवाद का मुकाबला करने और सीमाओं पर अशांति के चलते भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों को हथियारों और गोला-बारूद की जरूरत पड़ती है। भारत ने पिछले 4 दशकों से रक्षा उपकरणों के डिजाइन आैर विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इनमें मिसाइल, परमाणु हथियार, सैटेलाइट आदि शामिल हैं किन्तु जहां तक परम्परागत हथियारों का सवाल है, इसमें प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। कटु सत्य यह है कि भारत ने एक भी प्रमुख सैन्य आविष्कार नहीं किया है जिसका डिजाइन आैर निर्माण विशुद्ध रूप से भारतीय हो। इसमें व्यक्तिगत हथियार, तोप, टैंक, जहाज आैर लड़ाकू विमान हैं। कुछ सिस्टम जरूर भारत ने पेश किए हैं, जिनमें टैंक भी शामिल हैं। राइफल से लेकर रिवाल्वर तक जैसे अन्य छोटे हथियारों तक का आयात किया जाता है। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि देश में असाल्ट राइफलों तक का निर्माण भी नहीं हो रहा।

नौसेना एकमात्र ऐसी सेना है जिसने जहाजरानी डिजाइन में निवेश किया है। इस प्रकार नौसेना ने स्वदेशी काम की प्रक्रिया में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1980 के दशक से पहले युद्धपोत गोदावरी से लेकर अब तक भारत अनेक विश्वसनीय युद्धपोत तैयार कर चुका है लेकिन इस क्षेत्र में भी बंदूकें, मिसाइलें और तारपीडो को पूरी तरह से आयात ​किया जा रहा है। पिछले वर्ष अक्तूबर में इस तरह की खबरें आई थीं कि सेना को आधुनिक पीढ़ी की 8,18,500 असाल्ट राइफलों की, 4,18,300 सीक्यूबी, 43,700 हल्की मशीनगनों और साढ़े 5 हजार से अधिक स्नाइपर राइफलों की जरूरत है। बीते एक दशक के दौरान दूसरे देशों से हथियार मंगाने से सम्बन्धित परियोजनाएं बार-बार रद्द हुई हैं। दूसरी तरफ विकल्प के रूप में विकसित किए गए स्वदेशी हथियार कसौटी पर खरे उतरने में विफल रहे हैं। सेना दिवस की पूर्व संध्या पर सेनाध्यक्ष विपिन रावत ने मीडिया को सम्बोधित करते हुए कहा था कि हमें आधुनिक हथियार और तकनीक चाहिए जिससे भविष्य के युद्ध के लिए हम तैयार हो सकें। उन्होंने यह भी कहा था कि अगला युद्ध ​स्वदेशी हथियारों से लड़े जाने का समय आ चुका है। भारत की सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ आैर जांबाज सेना मानी जाती है।

भारतीय सैनिकों की ईमानदारी और कर्त्तव्य परायणता की गाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है। यदि जवानों के पास हथियार नहीं होगा तो वे शत्रु के विरुद्ध लड़ेंगे कैसे? किसी सैनिक की असली कसौटी युद्धक्षेत्र होता है। वर्तमान में युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। युद्ध केवल मैदानों में नहीं बल्कि अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र में भी लड़ा जाएगा। राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से जो भी कदम भारत सरकार उठाती है उनका सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वागत है। 13 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 3547 करोड़ की लागत से असाल्ट राइफल आैर कार्बाइन की खरीद को मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के बाद सीमा पर तैनात जवानों को 72,000 असाल्ट राइफलें आैर 93,895 कार्बाइन उपलब्ध होगी। इस खरीद से सशस्त्र बलों के लिए छोटे हथियारों की कमी को खत्म किया जा सकेगा।

रक्षा डिजाइन और रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम को प्रोत्साहन देने के लिए रक्षा अधिग्रहण परिषद ने रक्षा खरीद प्रक्रिया की मेन-टू श्रेणी में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। भारत अमेरिका, जापान, इस्राइल आैर अन्य देशों से रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है। कई महत्वपूर्ण सौदे किए जा रहे हैं। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की धरती पर खड़े होकर कहा कि दोस्ती शक्तिशाली से ही होती है। अपनी रक्षा के लिए शक्तिशाली होना बहुत जरूरी है। इन दिनों भारत इस्राइलमय तो हो रहा है लेकिन उसे शक्तिशाली बनने के लिए इस्राइल के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना होगा। इस्राइल अपने नागरिकों को सैनिक बनाता है वहीं विज्ञान और प्रौद्योगिकी देश के सबसे विकसित क्षेत्रों में से एक है। इस्राइल के वैज्ञानिकों के पास नोबेल पुरस्कारों की झड़ी लगी हुई है। रक्षा, कृषि, शिक्षा के क्षेत्र में भी वह आगे है। जिस दिन भारत ने इस्राइली वैज्ञानिक सोच को अपना लिया उसी दिन भारत विश्व का सर्वाधिक ताकतवर देश बन जाएगा। हमें सशस्त्रमेव जयते का उद्घोष करना ही होगा।

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