सिक्कों का इतिहास बहुत पुराना है। सिक्कों में अपने समय का सामाजिक, सांस्कृतिक आैर आर्थिक इतिहास छिपा रहता है। सिक्कों के इतिहास के जरिये विभिन्न कालखंडों और राजवंशों के इतिहास के सम्बन्ध में प्रामाणिक तथ्य सामने आते रहे हैं। सिक्कों के महत्व पर अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित होती रहती हैं। भारत में सिक्कों को सबसे पहले 6वीं शताब्दी में ईसा पूर्व के आसपास शुरू किया गया था। सिक्कों ने एक शानदार सफर तय किया और आजादी के पहले और बाद में विभिन्न शासकों के शासन में कई बड़े बदलाव देखे।
सिक्के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। सिक्कों की कमी हो जाए तो हाहाकार मच जाता है, बाजार में सिक्के बहुत ज्यादा हो जाएं तो परेशानी होती है। मुझे एक दिलचस्प किस्सा याद आ रहा है। जब देश का बंटवारा हुआ तो इसके बाद विवाद पैदा हो गया गवर्नर जनरल बॉडी गार्ड्स के बंटवारे का। बंटवारा 2ः1 के अनुपात से शांति से हो गया। फिर विवाद हुआ इस रेजिमेंट की बग्घी का, जिसका उपयोग उस समय तक वायसराय और गवर्नर जनरल किया करते थे। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के लिए प्रतिष्ठा और शान का प्रतीक बन गई थी बग्घी। कोई इसे छोड़ने को तैयार नहीं था। तब भी फैसला सिक्का उछाल कर किया गया।
भारत टॉस जीत गया। शायद ही कभी होता है कि सेना और सरकार से जुड़ा कोई फैसला इस तरह सिक्का उछाल कर किया गया हो मगर इतिहास के कुछ फैसले और मौके बने रहते हैं जिनके किस्से पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाए जा सकें। कभी-कभी तो स्थानीय निकाय चुनावों में दो प्रत्याशियों को बराबर वोट मिलने पर जीत-हार का फैसला सिक्का उछाल कर भी किया जाता रहा है लेकिन ऐसा कभी-कभार ही होता है। छोटे-मोटे घरेलू स्तर पर फैसले भी सिक्का उछाल कर किए जाते हैं। 1975 में धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन और अमजद खान की फिल्म आई थी शोले। इस फिल्म में जय की भूमिका निभाने वाले अमिताभ बच्चन अपने दोस्त वीरू (धर्मेन्द्र) के साथ हर फैसला सिक्का उछाल कर करते थे। फिल्म जबर्दस्त हिट रही। यही तरीका पंजाब के तकनीकी शिक्षा मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एक पॉलिटैक्निक कॉलेज में होने वाली लेक्चरार की पोस्टिंग के लिए अपनाया।
मंत्री महोदय ने कॉलेज में पोस्टिंग के लिए 37 मैकेनिकल लेक्चरार को ज्वाइनिंग लैटर के साथ पहली पोस्टिंग के लिए अपने कार्यालय में बुलाया था। बाकी सब जगह ठीक रहा लेकिन दो लेक्चरार मनचाही पोस्टिंग के लिए अड़ गए। एक अपने अनुभव का हवाला दे रहा था तो दूसरा खुद को ज्यादा शिक्षित बता रहा था। फिर क्या था मंत्री जी ने अपनी जेब से सिक्का निकाला और टॉस जीतने वाले को उसकी पसन्द के कॉलेज में पोस्टिंग देने का फरमान सुना डाला। मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने खूब हंसी-ठिठोली की जिसका वीडियो वायरल हो गया है। वैसे कैप्टन अमरिन्द्र सिंह सरकार में चरणजीत सिंह चन्नी का सिक्का चलता है। वह अपने टोटकों के लिए अक्सर चर्चा में रहते हैं। चर्चा है कि एक बार एक ज्योतिषी की सलाह पर वह हाथी पर सवार हो गए थे। कहा जाता है कि ज्योतिषी ने उन्हें सलाह दी थी कि ऐसा करने से मंत्रिमंडल में फेरबदल में उन्हें बड़ा विभाग मिल जाएगा।
मंत्री बनते ही उन्होंने सरकारी आवास के सामने पार्क के बीच सड़क निकलवा दी थी। यह भी उनका कोई टोना-टोटका ही था। अब सवाल यह है कि क्या मंत्री महोदय द्वारा सिक्का उछाल कर किसी भी पोस्टिंग का फैसला करना चाहिए? सरकारें तो नियुक्तियां मैरिट देखकर नहीं करतीं बल्कि योग्यता के आधार पर करती हैं। विपक्ष हो-हल्ला कर रहा है कि एक मंत्री को शिष्टाचार को बनाए रखना चाहिए लेकिन चन्नी ऐसा करने में नाकाम रहे हैं। सरकारी मसलों का फैसला सिक्का उछाल कर नहीं किया जाता। विपक्ष का कहना है कि उन्होंने सरकार को शर्मिंदा किया है इसलिए उन्हें पद से हटा देना चाहिए। विपक्ष का आरोप यह भी है कि सिक्का उछालना यह दिखाता है कि अमरेन्द्र सरकार के मंत्री गवर्नेंस को लेकर जरा भी गम्भीर नहीं। ऐसा लगता है कि मंत्री केवल टाइमपास कर रहे हैं आैर मंत्री पद का लुत्फ उठा रहे हैं। दूसरी तरफ मंत्री महोदय का कहना है कि दोनों कैंडिडेट्स की मैरिट एक जैसी थी।
उन्होंने सिक्का उछाल कर मामला सुलझाने की बात कही। कुछ भी गलत नहीं हुआ। कैंडिडेट्स को पसन्द के आधार पर नियुक्ति दी गई। उनका तर्क है कि सब कुछ पारदर्शी ढंग से आैर योग्यता के आधार पर हुआ। पहले की शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार के दौरान पोस्टिंग और तबादलों में सौदेबाजी होती थी आैर भ्रष्टाचार होता था। उन्होंने इस सांठगांठ को खत्म किया है। मंत्री महोदय की यह बात हैः चलो सिक्का उछाल कर लेते हैं फैसला आज,चित्त आए तो तुम मेरे और पट आए तो हम तेरे। विपक्ष कहता है : सब फैसले होते नहीं सिक्का उछाल कर,यह नौकरी का मामला है, जरा देखभाल के।भले ही मंत्री महोदय पर विवाद खड़ा हो गया है लेकिन उन्होंने इतिहास तो बना ही दिया और दिखा दिया कि पंजाब सरकार में उनका सिक्का चलता है।