भारत और ईरान का सम्बन्ध प्रागैतिहासिक काल से ही देखा गया। ऐतिहासिक युगों में स्थल मार्ग से ईरान के शासक वर्ग और आम लोग व्यक्तिगत प्रयासों से भारत के पश्चिमोत्तर भागों में आए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है भारत-ईरानी आर्यों का अन्तर्सम्बन्ध। भारत-ईरानी आर्यों के मूल स्थान, धर्म, समाज, सांस्कृतिक क्रियाकलाप बहुत ही मिलते-जुलते हैं। ईरान में सत्ता परिवर्तन के बाद राजनीतिक उथल-पुथल के बाद आगा इमाम खुमैनी के निर्देश पर इस्लामिक सरकार ने सत्ता पर कब्जा कर लिया लेकिन कुछ समय बाद इराक की सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाली सरकार ने ईरान पर हमला कर दिया। ईरान-इराक युद्ध 1980 से 1988 तक चला लेकिन भारत-ईरान सम्बन्ध बिगड़े नहीं। संयुक्त भारत के विभाजन से पूर्व दोनों पड़ोसी मुल्क थे। ईरान में अनेक भारतीय परिवार रहते थे जो 1920 से ईरान में बसने लगे थे। ईरान सिल्क रूट का मार्ग भी है जो यूरोप तक जाता है। दोनों देशों के बीच लम्बा सिविलाइजेशन लिंक है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उनकी ईरान यात्रा के दौरान दोनों देश आगे बढ़े। दोनों देशों ने क्षेत्रीय सम्पर्क तथा बुनियादी ढांचा विकास, ऊर्जा क्षेत्र में भागीदारी, द्विपक्षीय व्यापार प्रोत्साहन, विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों की जनता के बीच परस्पर सम्पर्क बढ़ाने के लिए सहयोग को प्रोत्साहन देने और इस क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता को बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित किया। तब अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान को छोड़कर एक नया रास्ता खोजने के प्रयासों के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने चाबहार बंदरगाह के पहले चरण के विकास के लिए उसके साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान इस क्षेत्र का बड़ा शक्तिशाली देश बनना चाहता है आैर यह तभी सम्भव है जब उसके सम्बन्ध सभी देशों से अच्छे हों। यही नहीं बल्कि वह अपनी विदेश नीति के मामले में किसी दूसरे देश का प्रभाव भी नहीं देखना चाहता। वह पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों में सुधार करके रूस के प्रभाव को कम करना चाहता है आैर भारत से अपने सम्बन्ध बढ़ाकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुिलत करना चाहता है। भारत के लिए ईरान एक बहुत महत्वपूर्ण देश है, वह न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है बल्कि मध्य एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप का एक मार्ग भी है।
ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी की यात्रा भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुई। रुहानी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात से ऐतिहासिक रिश्तों की डोर मजबूत हुई। दोनों देशों के बीच 9 अहम समझौते हुए। इनमें चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का प्रबन्धन भारतीय कम्पनी इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड को सौंपना शामिल है। यह समझौता न केवल पाकिस्तान को चेतावनी है बल्कि चीन को सीधा संकेत है कि भारत अब कनैक्टिविटी को अपनी कूटनीति का न केवल अहम हिस्सा बना चुका है बल्कि वह अपनी परियोजनाओं को तेजी से लागू करने की क्षमता भी रखता है। रुहानी-मोदी की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान पर खूब निशाना साधा गया है। रुहानी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को वीटो पावर देने का समर्थन भी कर दिया है। चाबहार से पाक आैर चीन की बेचैनी बढ़ना निश्चित है। भारत को रणनीतिक बढ़त मिल चुकी है। पाक आरोप लगाता रहा है कि भारत चाबहार के जरिये उसके क्षेत्र में अस्थिरता फैलाएगा। चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिण पूर्व प्रांत सिस्तान-ब्लूचिस्तान में है जो चीन द्वारा बनाए जाने वाले ग्वादर पोर्ट के काफी नजदीक है।
यह पोर्ट रेल तथा सड़क के माध्यम से ईरान द्वारा बनाए गए अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से भी जुड़ेगा। इसके माध्यम से भारत अपना सामान मध्य एशिया तथा रूस तक पहुंचाने में सक्षम होगा। चाबहार पोर्ट का एक सामरिक महत्व भी है। भारत चाबहार पोर्ट को अफगानिस्तान से जोड़ने का काम कर रहा है। पाकिस्तान ने भारत से अफगानिस्तान जाने का मार्ग रोका हुआ है। चाबहार समझौता पाक और चीन को दिया गया एक रणनीतिक जवाब है। चीन भारत को लगातार घेरने की कवायद कर रहा है। चीन भारत के पड़ोसी देशों में बंदरगाहों के निर्माण में सहयोग देने के नाम पर काफी बड़ा निवेश कर रहा है। पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव में चीन ने काफी निवेश कर रखा है। प्रधानमंत्री मोदी को ओमान में भी रणनीतिक कामयाबी मिल चुकी है। भारतीय सेेना को आेमान के दुकम पोर्ट तक भी पहुंच हासिल हो चुकी है।
ईरान तेल आैर प्राकृतिक गैस से समृद्ध है और रुहानी भारत के विकास और समृद्धि के लिए इसे भी बांटने को तैयार हैं। ईरान से सहयोग करके भारत को निश्चित रूप से बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई है। ईरान में प्रवासी भारतीयों की पांचवीं पीढ़ी रहती है जिनमें काफी संख्या में सिख परिवार भी हैं जो नागरिकता नहीं मिलने के बावजूद ईरान के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत चाबहार-जाहेरन रेल लाइन के निर्माण का काम भी समयबद्ध तरीके से करने को तैयार है। अमेरिकी प्रतिबंध हटाए जाने के बाद से ही ईरान विकास के अवसर ढूंढ रहा है आैर भारत को एक अच्छा दोस्त मिल गया है। दोनों देशों के रिश्तों में बहार आ गई है।