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चिदम्बरम और सियासत

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पूर्व वित्तमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम के विरुद्ध आयकर विभाग ने उनके कथित अवैध विदेशी निवेश व सम्पत्ति के बारे में जो मामले दर्ज किये हैं उन पर देश की रक्षामंत्री सुश्री निर्मला सीतारमन द्वारा प्रेस कान्फ्रेंस किया जाना बताता है कि राजनीति अपने वे बन्धन तोड़ रही है जिनके लिए भारत का लोकतंत्र दुनिया में सबसे ऊंचे स्थान पर रखकर देखा जाता है। श्री चिदम्बरम का सबसे बड़ा अपराध यह रहा कि सत्ता में रहते हुए उन्होंने अपने दुश्मन ज्यादा बनाये और दोस्त कम जबकि राजनीति को ‘मित्र बनाने की कला’ कहा जाता है। उनकी सबसे बड़ी कमी यह मानी जाती रही कि वह अपनी ‘बौद्धिक अकड़’ के अक्खड़पन से मित्रों को भी दुश्मन बनाते रहे।

सर्वोच्च न्यायालय के कुशाग्र वकील माने जाने वाले चिदम्बरम का वित्तीय संसार कानूनों की पेचीदगियों को न समझे हुए चल सकता है, यह स्वयं में विस्मयकारी है क्योंकि वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ऊंची डिग्री लिये हुए हैं। इसके बावजूद आयकर विभाग ने अगर उनकी विदेशों की सम्पत्ति और कारोबार के बारे में चार चार्जशीट दायर की हैं तो उनका कोई न कोई आधार तो होना ही चाहिए और इनका जवाब श्री चिदम्बरम को देना ही होगा व कानूनी प्रक्रिया के तहत स्वयं को पाक-साफ साबित करना होगा। उनके एकमात्र पुत्र कार्ति चिदम्बरम पहले से ही वित्तीय अनियिमतताओं के लिए कानूनी प्रक्रिया के चक्र में हैं।

आश्चर्य इस बात पर है कि रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन किस प्रकार भारत के अन्दरूनी राजनीतिक मामले को ‘नवाज शरीफ मूमेंट या क्षण’ कह सकती हैं जबकि ‘पनामा पेपर्स’ जांच के मामले में सत्ताधारी दल ने कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया है और देश की सभी जांच एजेंसियां सोई पड़ी हैं। इन पेपर्स में सत्ताधारी दल के भी कई नेताओं के नाम हैं। चिदम्बरम के मामले को ‘नवाज शरीफ मूमेंट’ का नाम देकर रक्षामंत्री ने इस देश की राजनीति की तुलना नाजायज और नामुराद मुल्क पाकिस्तान की राजनीति से करने की गलती कर डाली है जहां सियासतदां एक-दूसरे को भ्रष्टाचारी सिद्ध करने की प्रतियोगिता में लगे रहते हैं और उन पर अपने मुल्क के सरमाये को विदेशों में जमा करने के इल्जाम खुलकर लगते रहते हैं।

माफ कीजिये हम न तो पाकिस्तान हैं और न हमारे सियासतदानों की फितरत पाकिस्तानियों की तरह है। सीतारमन ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर कि पनामा पेपर्स के मामले में उसने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया और चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी, भारत की विश्व प्रतिष्ठित न्यायपालिका की हैसियत को भी छोटा करके देखने की गलती कर डाली है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की न्यायप्रणाली वहां की सेना और आईएसआई के हाथ की कठपुतली है और वहां मौज मना रहे आतंकवादी संगठनों के मुखियाओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उसके पसीने छूटते हैं।

हम अपने देश की राजनीति में किसी भी कीमत पर पाकिस्तान मूमेंट नहीं ला सकते क्योंकि एेसा होते ही हमारी हैसियत कानून से चलने वाले मुल्क की न रहकर डंडे से चलने वाले एेसे मुल्क की हो जाएगी जिसमें इंसाफ को भी डंडे से इजाजत लेनी पड़ेगी। अतः पाकिस्तान की नजीरें देकर हम खुद के बेनंग-ओ-नाम की सनदें नहीं बांट सकते। पाकिस्तान के सियासतदानों को तो अपनी मुखालिफ पार्टी के निजाम में मुल्क से ही दर-बदर कर दिया जाता है। एेसे कमजर्फ मुल्क के सियासती रवायतों के चश्मे से भारत को देखना खुद को तोहमतों के दरिया में धकलने से कम नहीं है।

हमारे देश में राजनीतिक विरोधी दुश्मन नहीं होता बल्कि प्रतिस्पर्धी होता है और उसके भी वे ही कानूनी हक होते हैं जो हुकूमत में बैठे लोगों के होते हैं। यहां की अदालतों को कोई भी बड़े से बड़ा हुक्मरान अपने रुआब में नहीं ला सकता। हमने देखा है कि किस तरह 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ​खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था और बाद में नब्बे के दशक में प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव को झारखंड रिश्वत मामले में अदालत ने सजा सुनाई थी। हमारे सामने 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाला भी है जिसे लेकर संसद से सड़क तक हंगामा बरपा था मगर अदालत से उसका नतीजा जो निकला उसने राजनीतिक दलों की असलियत का पर्दाफाश कर डाला।

हमारे सामने बोफोर्स का मामला भी है जिसने 80 के दशक में तूफान खड़ा कर दिया था मगर हकीकत में यह हवा में गांठ बांधने के मानिन्द ही निकला। हमारे देश की न्यायपालिका ने राजनीति को कभी भी बदले की भावना से काम करने नहीं दिया और दूध का दूध व पानी का पानी साबित करने में कभी कोताही नहीं की। इसमें सभी दल आते हैं। क्योंकि न्यायपालिका को इससे मतलब नहीं रहता कि किस पार्टी की हुकूमत है, उसे केवल इससे मतलब रहता है कि कानून की कसौटी पर कौन खरा है और कौन खोटा। सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल करने में कोई भी सरकार सीमा पार कर जाती है इसीलिए तो मनमोहन सरकार के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था।

अतः जाहिर है कि कानून की तराजू पर तुलने के बाद ही सच सामने आता है। पी. चिदम्बरम को तो आयकर विभाग अपने हिसाब से कानून के सामने खड़ा करने की कार्रवाई करेगा और तब उन्हें पूरे देश को बताना होगा कि एक उद्योगपति परिवार से सम्बन्ध रखने वाले चिदम्बरम (चेट्टियार) का सत्य क्या है मगर यह भी सत्य है कि श्री चिदम्बरम एेसे राजनीतिज्ञ हैं जिन पर वित्तीय घपलों की छाया रही है। चाहे वह फेयरफैक्स का मामला हो या वेदान्ता का हो। जहां तक कांग्रेस पार्टी के भीतर उनकी हैसियत का सवाल है तो वह इस पार्टी की आर्थिक नीतियों के व्याख्याकार और रणनीतिकार अब भी हैं। इसके बावजूद उनके आर्थिक व वित्तीय कारोबार पर संशय के बादल रहे हैं।

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