छोटे शहर हों या महानगर, सब कूूड़े के ढेर पर बैठे हैं। कचरा प्रबन्धन एक दुष्कर कार्य बन चुका है। कचरे के पहाड़ प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन को चुनौती देने लगते हैं। पर्यावरण प्रदूषित तो पहले ही हो चुका है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को साफ-सुथरा रखने के लिए गारबेज वेंडिंग मशीन लगाई है जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। इस मशीन में खाली प्लास्टिक की बोतलें, कांच की बोतलें या दूसरा बेकार सामान डाल सकते हैं। गारबेज एटीएम यानी रिवर्स वेंडिंग मशीन में आप बेकार सामान डालकर पैसे भी कमा सकते हैं। एक प्लास्टिक बोतल डालने पर एक रुपया और कांच की बोतल डालने पर दो रुपए मिलेंगे। पैसा ई-वॉलेट में आएगा। योगी आदित्यनाथ का कहना सही है कि हर कूड़े की कीमत होती है। लोग इसे समझ लें तो वातावरण स्वच्छ हो जाएगा। इस गारबेज एटीएम काे मधुरेश ने तैयार किया है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो ऐसी मशीनें पूरे राज्य में स्थापित की जाएंगी। कूड़े के निस्तारण के लिए गारबेज एटीएम एक अच्छा और क्रांतिकारी कदम है। कचरे को निपटाने के लिए आज देश को प्रौद्योगिकी की जरूरत है। कचरा बहुत काम का है। कई खाड़ी देशों और कुछ अन्य देशों में कूड़े-कचरे से बिजली पैदा की जाती है जो उद्योगों को दी जाती है। इससे सरकारों को अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। आज कई देश कूड़े के निस्तारण के लिए नई-नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं। यद्यपि कूड़े के निस्तारण का जिम्मा राज्य सरकारों आैर स्थानीय निकायों का होता है लेकिन कोई इस दिशा में सोच ही नहीं रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने चार दिन पहले कचरा प्रबन्धन के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशाें द्वारा ठोस कचरा प्रबन्धन नियम 2016 लागू करने से जुड़ी जानकारी मांगी थी। केन्द्र ने 845 पृष्ठ का भारी-भरकम हलफनामा तो पेश कर दिया जिसका अध्ययन सरकारी वकील ने भी अच्छे ढंग से नहीं किया था। सरकार ने माना कि राज्य सरकारें कचरा प्रबन्धन को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं। भारी-भरकम हलफनामे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि आप के पास जो कबाड़ है, उसे आप हमारे सामने डाल देते हैं, हम कचरा इकट्ठा करने वाले नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट इस बात से भी नाराज था कि अभी तक 2016 में तैयार किए गए नियम लागू क्यों नहीं हुए। केन्द्र की दलील थी कि भारत में संघीय प्रणाली के चलते वह राज्य सरकारों को कार्रवाई करने के लिए विवश नहीं कर सकता।
ऐसे नियम बनाने का कोई फायदा ही नहीं, अगर वह लागू नहीं हो पाते। राज्य सरकारों की बात तो छोड़िए, केन्द्रशासित प्रदेशों में इन नियमों को लागू नहीं किया गया। कचरा प्रबन्धन स्वच्छ भारत मिशन का ही एक हिस्सा है। इसके अलावा स्मार्ट सिटी परियोजना में भी कचरा प्रबन्धन पर काफी जोर दिया गया है। राजधानी दिल्ली कैसे बनेगी स्मार्ट सिटी जबकि इसकी चारों दिशाओं में कचरे के पहाड़ खड़े हो चुके हैं। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक वर्ष 2000 के दौरान दिल्ली में 400 टन कचरा पैदा होता था, आज यह मात्रा बढ़कर 10 हजार टन पर पहुंच चुकी है। बेंगलुरु शहर का उदाहरण लें तो इस दौरान वहां कचरे की मात्रा में 1,750 प्रतिशत बढ़ौतरी हुई है। अनुमान है कि 2030 तक भारत में आज से चार गुणा ज्यादा कचरा पैदा होगा। इस समय जबकि ज्यादातर नगर निकाय ठोस कचरा प्रबन्धन करने में असहाय नजर आ रहे हैं, अगले दशक में क्या हाल होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
दिल्ली में ऐसी डंपिंग साइटों पर बार-बार आग लगने की घटनाओं के चलते यहां वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर हो चुकी है। मुम्बई में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। देश के कुछ गिने-चुने शहरों-मैसूरु, अलप्पुझा और पणजी में कचरा प्रबन्धन बड़ी आसानी से किया जाता है। इन शहरों के उदाहरण बताते हैं कि कचरा प्रबन्धन मुश्किल काम नहीं है। इन शहरों में इसके लिए रिसाइकिलिंग आैर डोर-टू-डोर कलैक्शन जैसे साधारण तरीके अपनाए जाते हैं। केन्द्र सरकार को इस दिशा में असहाय न दिखकर कचरा प्रबन्धन के लिए ठोस पहल करनी चाहिए। राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय मिलकर कचरा प्रबन्धन की ठोस नीति पर काम करें। स्थानीय स्तर पर कचरा इकट्ठा करने वाले कर्मचारियों और जनता के बीच जागरूकता पैदा की जाए कि वह रिसाइकिल होने वाले कचरे, प्लास्टिक वाले कचरे आैर प्राकृतिक कचरे को अलग-अलग इकट्ठा करें। स्थानीय निकाय कचरे को निपटाने के लिए नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर उससे बिजली पैदा कर सकते हैं। बहुत से लोग कचरा प्रबन्धन में भी निवेश को तैयार हैं लेकिन कोई उनकी सुनने वाला नहीं। कचरा प्रबन्धन के सीधे-सादे सिद्धांत हैं लेकिन इन्हें अपना कोई नहीं रहा। केन्द्र सरकार को स्वच्छ भारत मिशन की तरह कचरा प्रबन्धन के लिए भी पूरे उत्साह से बढ़ना होगा। राज्य सरकारों को भी योगी सरकार की तरह नए प्रयोग करने होंगे।