पश्चिम बंगाल पहले से ही साम्प्रदायिक ताकतों का केन्द्र रहा है। आजादी के समय जब जस्टिस सुहरावर्दी मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कोलकाता में डायरैक्ट एक्शन के जरिये हिंसा करवाई थी तब 16 अगस्त, 1946 को बंगाल के कई वामपंथी उस समय उनके साथ खड़े थे और उन्होंने नारा दिया था कि पहले पाकिस्तान देना पड़ेगा, उसके बाद भारत को आजाद करना है। भारत आजाद तो हो गया लेकिन आज तक मुस्लिमों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 28 प्रतिशत से अधिक होने जा रही है। पश्चिम बंगाल में हिन्दू सिमट रहा है, उसकी आबादी 54 फीसदी से भी कम रह गई है।
पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने मुस्लिम कट्टरता को जो बढ़ावा दिया, ममता शासन में जो दंगे हुए, वह उसी का ज्वलंत उदाहरण है।पश्चिम बंगाल की वर्तमान ममता बनर्जी सरकार भी मुस्लिम तुष्टीकरण के आगे बिछ चुकी है। पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं जो संगठित होकर मतदान करता है जैसे उन्होंने सीपीएम के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया था। इसलिए तृणमूल भी मुस्लिमों को खुश करने के लिए हरसम्भव प्रयास कर रही है। भाजपा के अलावा वहां और भी कई दल हैं। हिन्दू वोट बंट जाता है इसीलिए पश्चिम बंगाल में हिन्दू पिस रहा है, मर रहा है। इस समय तृणमूल कांग्रेस भी मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभा रही है। एक तरफ राजनीतिक हत्याओं का दौर जारी है तो दूसरी तरफ साम्प्रदायिक हिंसा का दौर जारी है।
ममता बनर्जी सरकार में कट्टरपंथी मुसलमानों का आतंक भी बढ़ता जा रहा है। बशीर हाट इलाके में हिन्दुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। कोलकाता से महज 60 किलोमीटर दूर इस इलाके में 2000 मुसलमानों की भीड़ ने हिन्दुओं की दुकानों और मकानों को जला डाला। एक नाबालिग हिन्दू लड़की की पोस्ट को लेकर इतना हंगामा मचा कि दंगाइयों ने कई जगह पर बम भी फैंके थे लेकिन ममता सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। दंगाइयों को 8 घण्टे तक खुली छूट दे दी गई थी। हावड़ा के धूलागढ़ में भी हिंसा हुई। धूलागढ़ की हिंसा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं लेकिन ममता सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही।
पश्चिम बंगाल में दंगाइयों का दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि वह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को रुकवा कर उसे तहस-नहस कर देते हैं। पश्चिम बंगाल के कई इलाके बंगलादेश की सीमा से सटे हुए हैं।बंगलादेश के बॉर्डर से लगा इलाका होने के कारण यहां बड़े पैमाने पर घुसपैठ होती रही है। इस पूरी हिंसा के पीछे बंगलादेशियों का भी हाथ बताया जा रहा है। वोट बैंक की खातिर ममता बनर्जी सरकार ने इन्हें खुले तौर पर शह दे रखी है। यहां तक कि हिंसा के बाद लाउडस्पीकरों पर हिन्दू इलाकों में चेतावनी दी जा रही है कि लोग घरों में रहें। अगर उन्होंने हिंसा करने की कोशिश की तो सख्ती बरती जाएगी।
बंगाल पुलिस का यही रवैया है जिसके कारण बंगलादेशी और कट्टरपंथी मुसलमानों को बढ़ावा मिल रहा है। बिल्कुल इसी तरीके से पिछले साल बंगाल में कालियाचक में भी इसी तरह हिन्दू परिवारों को निशाना बनाया गया था। सैकड़ों मकान और दुकानें जला दी गई थीं। हाल ही में पश्चिम बंगाल का उत्तर चौबीस परगना जिला साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया। कई इलाकों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। जब केन्द्र ने इस पर सवाल उठाए तो ममता टकराव के मूड में आ गईं। ममता के राज में सोनार बांग्ला बर्बाद बांग्ला बन रहा है। 80 और 90 के दशक में बंगाल में माकपा का शासन था तो वह हाथ नहीं हथोड़ों से काम करती थी। जब मन हुआ हड़ताल कर दी, जब मन हुआ बन्द करवा दिया। अगर उनकी तानाशाही स्वीकार नहीं की तो उनकी हिंसा का शिकार होना पड़ता था।
ममता सरकार इस वादे के साथ सत्ता में आई थी कि माकपा की तानाशाही बन्द होगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।तृणमूल के कार्यकर्ता लगातार गुंडागर्दी कर रहे हैं। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं। जनता की उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। मई महीने में कोलकाता में कश्मीर जैसा आलम देखने को मिला। कुछ वामपंथियों ने कश्मीर के पत्थरबाजों की तरह पुलिस वालों पर पत्थर बरसाए। एक पुलिस अफसर की इतनी जबर्दस्त पिटाई की कि उसकी हड्डियां टूट गईं। वामपंथियों और ममता के आपसी संघर्ष के बीच जनता पिस रही है तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी का हिन्दू विरोधी चेहरा सामने आया। तृणमूल सरकार ने तुष्टीकरण की सभी हदें पार कर दी हैं। अक्सर हिन्दुओं को धार्मिक आयोजनों की अनुमति नहीं दी जाती जबकि अन्य लोगों पर कोई रोक-टोक नहीं। (क्रमश:)