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बेटी तो बेटी है…

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मैंने पिछले दिनों सिंगापुर में वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के 120 बुजुर्गों को एक सुखद न भूलने वाली सैर कराई और उन्होंने सिंगापुर और क्रूज में अद्भुत ‘हमारी संस्कृति हमारे अन्दाज’ प्रोग्राम किए क्योंकि हमारे देश की संस्कृति का कहीं मुकाबला नहीं आैर वहां से सफाई शून्य क्राइम और विकास की संस्कृति मन में लेकर उत्साह से वापस पहुंची। जैसे ही घर पहुंची क्योंकि हमारे घर में सारा दिन टीवी पर न्यूज चैनल लगे रहते हैं।

जैसे ही नजर पड़ी तो जो खबरें चल रही थीं दिल को दहला देने वाली थीं। सारी खुशी-उत्साह ठंडा पड़ गया। दिल बैठ गया कि यह हमारी संस्कृति है जिसके परचम हम अपने बुजुर्गों द्वारा कभी दुबई, कभी सिंगापुर में लहराते हैं। सबसे ज्यादा दुःख हुआ कि देश में इतनी शर्मनाक घटनाएं हुईं और सब लोग उस पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। किस धर्म, किस जाति की बेटी की बात कर रहे हैं।

अरे सदियों से सुनते आ रहे हैं-बेटियां तो सांझी होती हैं, तेरी हो या मेरी, आपकी हो या हमारी और वे भी ऐसी बेटियां जिनको शायद रेप, बलात्कार के मायने भी नहीं पता हों। मुझे तो लगता है और महसूस हो रहा है कि इससे तो वह युग अच्छा था जिसके बारे में अक्सर मेरे पिताजी बताते थे कि गली-मोहल्ले, शहर या गांव की बेटी सबकी सांझी होती थी। उसकी तरफ कोई आंख नहीं उठा सकता था। वह चाहे किसी जाति-धर्म की होती थी और उस समय जाति-धर्म पर इतना बवाल भी नहीं था। एक मोहल्ले में सभी धर्मों और जातियों के लोग रहते थे।

रेप तो रेप है, एक जघन्य अपराध है जो इन्सान नहीं राक्षस करते हैं आैर वे वह राक्षस हैं, कुत्ते हैं जो शायद समय आने पर अपनी बेटी और बहन का भी बलात्कार कर सकते हैं। जिन्दगी में कभी गालियां नहीं निकालीं परन्तु पिछले दिनों के हरियाणा, यू.पी., जम्मू के बलात्कार देखकर दर्द महसूस कर सभी मर्यादाएं लांघने को मजबूर होकर दिल करता है ऐसे वहशी दरिन्दों को चौक-चौराहे पर खड़े होकर सरेआम फांसी पर लटका दूं। जब भी किसी की बेटी के साथ ऐसा होता है तो ऐसा लगता है कि मेरी बेटी के साथ हुआ। मुझे बहुत सी महिलाओं व लोगों के व्हाट्सअप पर मैसेज आ रहे हैं। मुझे किसी वकील की मेल आई कि मैं भारतीय होने आैर वकील होने पर शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूं।

मैं यह कहना चाहूंगी कि कोई भी ऐसा इन्सान जिसके अन्दर दिल है वो ऐसा ही कुछ गन्दा महसूस कर रहा होगा परन्तु कुछ चन्द दरिन्दों के कारण हमें भारतीय होने पर शर्मिन्दा नहीं हाेना ब​िल्क यह कर दिखाना है कि हम भारतीय हैं, जिस भारत में अनेकता में एकता है। हमारा देश हमारे लिए पहले है फिर धर्म-जाति आैर पार्टी। ईश्वर, वाहेगुरु, अल्लाह ने हमें इस धरती पर इन्सान बनाकर भेजा है तो हमें इन्सानियत आैर मानवता का धर्म निभाना है आैर जाति, धर्म, पार्टियों से ऊपर उठकर हर उस काम को रोकना है जिसके लिए इन्सानियत शर्मिन्दा हो।

अभी कि हमारे प्रधानमंत्री जी ने कह दिया है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और हमारी मंत्री जी ने कानून बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है परन्तु क्या आप सोचते हैं कानून बनाने से या सरकार के बयान से या टीवी चैनल पर हॉट डिस्कशन से या कैंडल मार्च से या धरने से ये अपराध रुक जाएंगे? नहीं कदापि नहीं, अगर यह रुकने होते तो शायद निर्भया के बाद एक भी अपराध न होता जिसने देश में तो क्या विदेशों में भी लोगों को हिलाकर रख दिया। उस समय लगता था कि निर्भया अपना बलिदान देकर आने वाले अपराधों पर रोक लगा गई परन्तु नहीं, वह क्षणिक गुस्सा, प्रदर्शन, टीवी पर लम्बी-लम्बी डिस्कशन और डिफरेंट ऐंगल से लैस थी। इसके लिए हम सब देशवासियों को अलर्ट होना होगा, आगे आना होगा।

हर युवा, बुजुर्ग को एक निर्भीक सिपाही की तरह काम करना होगा। हर म​िहला को दुर्गा बनना होगा, सब छोटी बच्चियों में अपनी बेटियों को तलाशें। सिंगापुर में हमारे बस गाइड, जो चाइनीस था, मि. जैक ने एक बात बताई कि हमारे सिंगापुर में शून्य क्राइम है क्योंकि सजा बहुत कड़ी है। यहां तक कि टॉयलेट यूज करने के बाद कोई फ्लश न करे तो उसे 1000 डॉलर की सजा है जिससे बाथरूम साफ रहते हैं।

ड्रग्स रखने, यूज करने पर, रेप पर फांसी की सजा है। कानून का इतना डर है कि अकेली लड़कियां रात को घूमती हैं तो कोई डर नहीं, कोई गलत काम नहीं। क्यों नहीं ऐसे डर हमारे देश मेें डाले जाते, क्यों सिर्फ वोट की राजनीति होती है। क्यों नहीं इन्सानियत की राजनीति होती। कुछ भी हो जाए, उसे राजनीतिक या धार्मिक मुद्दा बनाकर लोगों को भड़का दिया जाता है आैर भोली-भाली जनता असली मुद्दा छोड़कर धर्म-राजनीति में फंसकर रह जाती है। टीवी की डिबेट में एक-दूसरे के धर्म और पार्टी को नीचा दिखाते नजर आते हैं, जो सुनने में ही बेकार लगते हैं क्योंकि इतनी जोर से एक-दूसरे को बोलकर काट रहे होते हैं कि समझ ही नहीं आता कि क्या शो करना चाहते हैं।

मेरे कहने का भाव है कि महिला सशक्तिकरण को लेकर जितने मर्जी विभाग खोल लें, डिबेट कर लें, कैंडल मार्च कर लें, जितनी देर गुनहगारों को सजा न मिलेगी तो देश में एक नहीं, दो नहीं, सैकड़ों-हजारों निर्भया, उन्नाव और कठुआ जैसे रेपकांड जो होते आए हैं और होते रहेंगे। ऐसी छोटी-छोटी मासूम बेटियों की शक्लें सामने रहकर दिल चीर देंगी, रात को सोने नहीं देंगी। बेटी तो बेटी है, किसी धर्म की नहीं, जाति की नहीं, पार्टी की नहीं। जब वो रोती है, तड़पती है, मारी जाती है, बलात्कार होते हैं तो ज्वालामुखी फटते हैं। जब खुश होती है तो बांझ जमीन पर भी फूल उगते हैं।

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