मिट्टी सा छोटा सा दीपक, अंधकार से कभी न डरता, भरकर नेह हृदय में अपने, सारा जग आलोकित करता, हिम्मत, साहस और लगन से, तूफानों से जा टकराता,
जैसे-जैसे विपदा बढ़ती, दीपक अपना धैर्य बढ़ाता,
सहकर नित जलने की पीड़ा, जग में उजियारा लाता,
इसलिए भारत हमेशा देवालय में दीप जलाता।
आज दीपावली का पावन उत्सव है। आज चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा, हर घर में दीपमाला होगी। भगवान श्रीराम तो भारतवासियों के रोम-राेम में हैं। भारत में हमेशा राम राज्य की कल्पना की गई। मैं इस बात के लिए सदा उत्सुक रहा हूं कि आखिर श्रीराम के राज्य में ऐसी कौन सी भावना थी जो सारी जनता को एक सूत्र में बांधे रखती थी। आज के दौर में राम राज्य की कल्पना क्या साकार हो सकती है ? अगर हो सकती है तो कैसे? विश्व में शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां दीपक को लेकर इतनी अधिक कल्पनाएं, संवेदनाएं, साहित्य आैर दैविक परम्पराएं बुनी गई हों। सम्पूर्ण भारतीय सूर्य-अर्चन तथा उसके अंशस्वरूप दीपक के चारों आेर गुंफित है। भारतीय मानव का जीवन दीपक के समानांतर चलता है। दीपक प्रकाश, जीवन और ज्ञान का प्रतीक है। इसके बिना सब कुछ अंधकारमय है। यह सब जानते हुए भी हम अंधकार में क्यों हैं ? मैंने इस विषय पर बहुत अध्ययन किया। भगवान राम के युग में कर्तव्य क्या होते थे ? राजा सारे देश का संरक्षक होता था। धर्मानुसार न्याय देना उसका कर्त्तव्य था। प्रजा राजा को अपनी नेक कमाई का छठा भाग देती थी जिसे ‘बलिषंघ’ भाग कहा जाता था। राजा समस्त दुष्टों के नाश के लिए वचनबद्ध था तथा राजा साधुओं के संरक्षण के लिए वचनबद्ध था।
श्रीराम की दिनचर्या पर नज़र डालें। श्रीराम सुबह संगीत की मधुर ध्वनि को सुनकर जागते थे। नित्यादि कर्मों से निवृत्त होकर वस्त्राभूषण धारण कर कुल देवता, विप्रो और पितरों की पूजा करते। इसके बाद वह बाह्य कक्ष में बैठकर सार्वजनिक कार्यों को निपटाते थे। यहां वह आमात्यों, पुरोहितों, सैन्य अधिकारियों, सामंतों, राजाओं, ऋषियों तथा अन्य महत्वपूर्ण जनों से मिलते थे। श्रीराम की शासन प्रणाली अद्भुत थी। उस समय मंत्रिपरिषद दो भागों में विभक्त थी- आमात्य मंडल, पुरवः मंडल। इसे अगर इसे आप तुलनात्मक दृष्टि से देखना चाहें तो आज भी लोकसभा और राज्यसभा के रूप में देख सकते हैं। आमात्यगण ज्यादातर क्षेत्रीय होते थे और उन्हें सैन्य बल का पूरा ज्ञान होता था। आमात्य मंडल की मुख्य योग्यता थी उसका गठन। पूरे देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग उन्हें स्वयं चुनकर भेजते थे। अगर निर्धारित तिथि तक किसी क्षेत्र के लोग आमात्यों का चयन करके नहीं भेजते थे तो ऐसी स्थिति में राजा अपने गुप्तचरों की सहायता से योग्य लोगों को चयनित कर लेता था। पुरवः ‘अपर हाऊस’ था। यह एक परामर्शदात्री समिति थी। किसी विशेष प्रयोजन पर जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता था तो उन्हें प्रार्थना की जाती थी कि वह मंत्रिपरिषद की बैठक में भाग लें।
श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के मंत्रिमंडल में धृष्टि, जयंत, विजय, अर्थसाधक, अशोक मंत्रपाल और सुमंत आदि आमात्य होते थे। मैं पाठकों का ध्यान इस महत्वपूर्ण तथ्य की ओर दिलाना चाहूंगा कि कैसे रामराज्य के गवर्नेंस के पवित्र सिद्धांत का हम आज भी अवलम्बन कर रहे हैं लेकिन आज तक आते-आते बहुत गड़बड़ हो गई। आजादी के बाद श्रेष्ठ लोगों का राजनीति में पदार्पण हुआ लेकिन धीरे धीरे ऐसे लोग आते गए जिन्होंने केवल देशभक्ति का राग तो अलापा लेकिन देश की सम्पत्ति लूट कर अपने घर भर लिए। राजनीतिक दलों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को प्रवेश मिलने लगा। राजनीतिज्ञों की छवि धूमिल होने लगी। प्रख्यात शिक्षाविद्, लेखक, शायर, पत्रकार, विद्वान, दार्शनिक और समाजसेवियों की जगह दूसरे ऐसे लोगों ने ले ली जो थैली तंत्र के नाम पर सत्ता में आकर बैठ गए। धड़ल्ले से लोगों की खरीद-बिक्री होती रही। कुछ धनाढ्य लोग धारा के विपरीत चलते हुए भी माननीय हो गए। श्रीराम राज्य में सिर्फ शिक्षित होना ही काफी नहीं था बल्कि किसी विशेष विषय का माहिर भी होना जरूरी था। श्रीराम के राज्य में यह व्यवस्था थी। पुरवः के सारे के सारे सदस्य ‘आध्यात्मिक वैज्ञानिक ही थे।’ आज भी योग्य व्यक्ति हमारे पास हैं लेकिन युवा प्रतिभाएं विदेशाें में पलायन कर रही हैं।
कामकाज का बंटवारा ही सही नहीं। मंत्री तो श्रेष्ठ हैं लेकिन ब्यूरोक्रेट्स हावी हैं। निगम पार्षद से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। आम आदमी के लिए काम कराना काफी मुश्किल है। न्याय प्रणाली काफी महंगी है। श्रीराम राज्य में धर्मपालकों के साथ पुरोहित वशिष्ठ, धर्मशास्त्र में पारंगत मुनि, वृद्ध और अनुभवी ऋषिगण आदि बैठा करते थे। सरलतापूर्वक बिना पैसे खर्च किए सुलभ न्याय उपलब्ध था। आज अपराधियों की जड़ में पुलिस तंत्र है। राम राज्य की प्रणाली इतनी व्यावहारिक थी कि इसे आज लागू किया जाए तो आज भी बहुत कुछ कर सकते हैं। सत्ता के भ्रष्ट होने से लोगों की मानसिकता भी बदलती गई। आज किसी को संस्कारों, मर्यादाओं और नैतिक मूल्यों की परवाह नहीं। आसुरी शक्तियां समाज में सक्रिय हैं। बेटियों की पूजा करने वाले देश में उनको अपमानित किया जा रहा है। हत्याओं, लूटपाट की खबरों से अखबार भरे पड़े रहते हैं। मानवता कराह रही है। ऐसा क्यों हुआ ? तुलसीदास जी लिखते हैंः-
राम विमुख अस हाल तुम्हारा
रहा न कोउ कुल रोवन हारा
राम यहां आदर्श के पर्याय हैं। अतः जो आदर्शों को छोड़ देता है उसका क्या हाल होता है। अर्थात् राम से विमुख हो जाने से रावण के कुल में उसके लिए कोई रोने वाला नहीं बचा था। दीपावली तो भाईचारे का पैगाम देने वाला त्यौहार है। करोड़ों के पटाखे फोड़ने से बेहतर है कि किसी गरीब के घर में दीपक जलाएं, किसी जरूरतमंद मानव की सेवा करें। भगवान राम के आदर्शों पर चलने का संकल्प लें, दीन-दुखियों के आंसू पोंछें। प्रदूषण रहित दीवाली मनाएं और स्वस्थ रहें। पंजाब केसरी के सभी पाठकों को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। यह प्रकाश पर्व दिलों का अंधेरा मिटाए और आप सभी राष्ट्र चिन्तन करें। दीपक की भांति स्वयं जलकर औरों को आलोकित करें। कुछ रोशनी फैलाएं।