हाल ही में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग ने चीन जाकर वहां के तानाशाह बन चुके राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। 2011 में सत्ता में आने के बाद किम जोंग का यह पहला विदेश दौरा था। किम जोंग की यात्रा को इतना गोपनीय रखा गया कि उनके उत्तर कोरिया लौटने के बाद ही चीन ने मीडिया के लिए प्रैस नोट आैर तस्वीरें जारी कीं। आणविक हथियारों की दौड़ में काफी आगे निकल चुके किम जोंग ने चीन की धरती पर खड़े होकर परमाणु प्रसार को रोकने का संकल्प लिया।
इसे एक तानाशाह का हृदय परिवर्तन करार दिया जाए या महज ढकोसला या फिर चीन का दबाव। यह तय करना मुश्किल है लेकिन निश्चित ही ऐसा किम जोंग पर चीन का दबाव रहा होगा। चीन उत्तर कोरिया का जबर्दस्त समर्थक है। किम जोंग की अमेरिका जाने से पहले चीन यात्रा मई में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से होने वाली मुलाकात और दक्षिण कोरिया से अगले माह होने वाली मुलाकात की तैयारियों के रूप मेें देखा जा रहा है।
पिछले कुछ समय से ऐसा लग रहा था कि उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग का अड़ियल रवैया कहीं आणविक युद्ध तक न पहुंच जाए। पूरी दुनिया परमाणु युद्ध के खतरे से कांप उठी थी। किम जोंगऔर डोनाल्ड ट्रंप के बीच तीखे बयानों का दौर चला। दुनिया भर में घातक परमाणु अस्त्रों के प्रसार पर प्रतिबंध की बात की जा रही है।
वैश्विक मुल्कों में इसे अप्रसार पर सहमति दिखती है लेकिन कोरिया सरकार और उसका सनकी तानाशाह अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों की चेतावनी को ठेंगा दिखाते हुए एक के बाद एक परीक्षण करता रहा। अमेरिका ने भी किसी स्थिति से निपटने के लिए अपने युद्धक पोत कार्ल विंसन को जापानी समुद्री सीमा में उतार दिया था। परमाणु विध्वंस की मार झेल चुका जापान दोबारा इस खतरे से नहीं गुजरना चाहता, वह भी खुलकर सामने आ गया था और अमेरिकी पोत को सुरक्षा कवर देने के लिए तैयार हो गया था। उधर रूस और चीन ने भी अपनी सीमा में चौकसी बढ़ा दी थी।
पूरी दुनिया सोचने को विवश थी कि अगर युद्ध हुआ तो परमाणु अस्त्र का प्रयोग उत्तर कोरिया ही करेगा क्योंकि वैश्विक मित्र संगठनों और उनकी सैन्य शक्ति के आगे उसके पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं बचेगा। चीन की लाख कोशिशों के बाद भी उत्तर कोरिया ने बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर डाला था। किम जोंग की सनक ने दुनिया भर के शांति समर्थक देशों में खलबली मचा दी थी।
हमेशा महिलाओं से घिरा रहने वाले शासक किम जोंग की सनक के बारे में बहुत सी कहानियां सामने आईं। अपने सामने झपकी लेने वाले एक वरिष्ठ नेता की हत्या की कहानी से तो उसकी छवि एक क्रूर शासक की बन गई थी। हो सकता है कि किम जोंग यह साबित करने में जुटा था कि वह सबसे सुपर पावर है। यह सवाल भी उठ रहा था कि उसे अपने देश के आम नागरिकों के हितों की चिन्ता क्यों नहीं? जब उसने अमेरिका को हमले की धमकी दी तो अमेरिका हमलावर ड्रोन की तैनाती की प्रक्रिया की शुरुआत भी कर चुका था। ट्रंप और किम ने एक-दूसरे के खिलाफ ऐसी-ऐसी बातें कहीं जिससे तनाव तो बढ़ा ही, साथ ही दोनों की जग-हंसाई भी हुई। इसी बीच नाटकीय घटनाक्रम हुआ।
शीतकालीन ओलिम्पिक खेलों से करीब आए उत्तर कोरिया आैर दक्षिण कोरिया ने शिखर वार्ता की तारीख तय कर दी। दोनों देशों में 4 अप्रैल को बैठक होगी। इससे पूर्व किम जोंग उन ने अमेरिका से बातचीत करने की इच्छा भी व्यक्त कर दी थी जिसे डोनाल्ड ट्रंप ने स्वीकार भी कर लिया। इस वर्ष फरवरी में दक्षिण कोरिया में हुए शीतकालीन ओलिम्पिक में उत्तर कोरिया ने हिस्सा लिया था। इस दौरान किम जोंग उन की बहन भी दक्षिण कोरिया गई थी, जिसने सम्बन्धों को सामान्य बनाने की शुरुआत की थी।
किम जोंग उन की तरफ से दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन को वार्ता का आमंत्रण भी दिया था। परमाणु परीक्षण के चलते उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों के चलते दोनों देशों के सम्बन्ध काफी तनावपूर्ण हो गए थे। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। इससे पीढ़ियां बर्बाद हो जाती हैं। यह अच्छी बात है कि अब किम जोंग दक्षिण कोरिया और अमेरिका से बातचीत करेंगे। बातचीत शुरू होगी तो बर्फ पिघलेगी, नए रास्तों की तलाश शुरू होगी। परमाणु युद्ध का खतरा तो वार्ता की सहमति बनने से ही टल चुका है। उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया आैर अमेरिका आपस में हाथ मिलाएंगे तो तनाव कम होगा। अब जाकर उम्मीद जागी है कि मानवता की रक्षा के लिए किम जोंग अपना सनकी रवैया छोड़गा आैर पूरा विश्व राहत की सांस लेगा।