लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

हिमाचल और गुजरात के चुनाव

NULL

इस वर्ष के अन्त तक होने वाले दो राज्यों हिमाचल प्रदेश व गुजरात के चुनाव किसी भी सूरत में अपनी राज्य सीमा तक सीमित रहने वाले नहीं हैं क्योंकि इन चुनावों के परिणामों से राष्ट्रीय राजनीति का भीतर तक प्रभावित होना निश्चित है। दोनों ही राज्यों में देश की दो सबसे प्रमुख पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधी टक्कर होनी भी निश्चित है इसलिए इनके जो भी परिणाम निकलेंगे वे इन दोनों पार्टियों के राजनीतिक भविष्य पर निर्णयात्मक असर डालेंगे, मगर इतना भी निश्चित है कि ये चुनाव किसी भी हालत में राज्यों के मुद्दों पर न लड़े जाकर राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़े जायेंगे। बेशक प्रदेश की परिस्थितियां अपनी भूमिका निभायेंगी मगर ये दूसरे पायदान पर ही रहेंगी। इसकी प्रमुख वजह यह है कि केन्द्र की भाजपा सरकार की हाल-फिलहाल में लागू आर्थिक नीतियों ने देश के हर वर्ग के व्यक्ति को प्रभावित किया है। एक मायने में यह इन नीतियों पर भी इन राज्यों की जनता का फैसला उसी प्रकार होगा जिस प्रकार बड़े नोटों को बन्द करने के फैसले पर उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों की जनता का फैसला आया था और इनमें भाजपा की शानदार विजय हुई थी।

इसके बाद जीएसटी लागू होने पर इन दोनों राज्यों में चुनाव होंगे और उन राजनीतिक विश्लेषकों और राजनी​ितज्ञाें को स्वीकार करना पड़ेगा कि इन चुनावों के परिणाम मोदी सरकार के कामकाज पर सीमित जनादेश के रूप में आएंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों पर उनकी राय नोटबन्दी के कदम को लेकर एेसी ही थी। खासतौर पर भाजपा के प्रवक्ताओं ने अपने इस तर्क से राजनीति में धुआं उड़ा दिया था। एेसा नहीं है कि इस तथ्य को कांग्रेस व भाजपा नहीं समझ रही हैं। उनकी समझ में सब आ रहा है और यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में दोनों ही पार्टियों ने अपनी पूरी जान लड़ाने की ठान ली है परन्तु हर मायने में दोनों राज्यों के चुनाव विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए अपना अस्तित्व पुनर्स्थापित करने की लड़ाई होगी और भाजपा के लिए अपनी सत्ता की प्रतिष्ठापना की। अतः कहा जा सकता है कि दोनों के लिए ही जीवन-मरण का प्रश्न है क्योंकि भाजपा के परास्त होने से केन्द्र की सरकार का इकबाल थरथरा जायेगा और कांग्रेस के परास्त होने से उसके पुनरुत्थान की संभावनाएं क्षीण हो जायेंगी मगर यह भी तय है कि गुजरात में पिछले 15 वर्षों से सत्तारूढ़ भाजपा और हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी के क्षेत्रीय नेतृत्व की भूमिका केन्द्र में नहीं रहेगी क्योंकि भाजपा की कमान स्वयं प्रधानमन्त्री ने संभाली हुई है और कांग्रेस की कमान इसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संभाली हुई है।

इन दोनों के नेतृत्व के बीच यह एेसा दिलचस्प मुकाबला होगा जिसके प्रभाव से राष्ट्रीय राजनीति में जगमग और अंधकार का नया दौर शुरू होगा। हिमाचल के मुख्यमन्त्री श्री वीरभद्र सिंह (कांग्रेस) व गुजरात के मुख्यमन्त्री श्री विजय रूपानी (भाजपा) का पिछला प्रशासनिक हिसाब-किताब इन चुनावों की बहुआयामी दुंदुभि में कहीं खो सकता है क्योंकि प्रश्न इनके नेतृत्व का न होकर राष्ट्रीय नेतृत्व का रहेगा। गुजरात में श्री रूपानी तो वैसे भी बिना मजबूत पहचान के नेता माने जाते हैं जबकि वीरभद्र सिंह आय से अधिक सम्पत्ति रखने के मामले में सीबीआई जांच में फंसे हुए हैं मगर हिमाचल में भाजपा के पास प्रेम कुमार धूमल जैसा ही धुंधला चेहरा है जो पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में गोते लगाता रहा है, जबकि गुजरात में कांग्रेस के पास क्षेत्रीय नेतृत्व के नाम पर कोई कद्दावर जननेता नहीं है लेकिन इस पार्टी से दल बदलुओं के आधुनिक शहंशाह माने जाने वाले शंकर सिंह वाघेला के अलग हो जाने पर राज्य की राजनीति पर क्या असर पड़ सकता है, इस बारे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अन्तिम समय तक भ्रम में रहेंगी क्योंकि वाघेला मूलतः संघ के रहे हैं अतः उनकी भूमिका भाजपा के दिग्गज रहे बगावती केशू भाई पटेल की तरह ही अन्त में भाजपा को लाभ तो नहीं पहुंचायेगी, इसे लेकर कांग्रेस ही नहीं भाजपा के दिग्गज भी पसोपेश में ही पड़े रहेंगे क्योंकि वह दुधारी तलवार की मानिन्द छुटपुट रूप से दोनों ही पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं मगर वह कभी भी किंग मेकर की भूमिका में नहीं आ सकते क्योंकि राज्य की जनता की निगाहों में वाघेला अवसरवादी नेता के रूप में प्रतिष्ठापित हो चुके हैं। एेसा उन्होंने राज्य से हुए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी श्री अहमद पटेल को हराने के लिए सारी तिकड़में भिड़ाने के बावजूद असफल होकर सिद्ध किया, परन्तु प्रधानमन्त्री का गृह राज्य होने की वजह से भाजपा के लिए यहां के चुनाव हिमाचल प्रदेश की अपेक्षा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं और कांग्रेस के लिए भी कम वजनदार नहीं हैं क्योंकि वह इसी राज्य से अपने वजूद को काबिज कर सकती है। वैसे यह राज्य देश की अद्भुत प्रयोगशाला भी कहा जा सकता है क्योंकि इसी राज्य ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की सत्ता स्थापित करने का रास्ता तैयार किया और इसी ने कभी 1975 में विपक्ष की सत्ता को राष्ट्रीय आकार देने का काम इसी वर्ष 25 जून को इमरजेंसी लगने से कुछ दिन पहले से तब शुरू किया था जब 12 जून को यहां हुए चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस विरोधी जनमोर्चा विजयी हुआ था और 18 जून को इसके नेता बाबू भाई पटेल ने मुख्यमन्त्री की शपथ ली थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty − 4 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।