मैट्रो रेल आधुनिक जन परिवहन प्रणाली है जिसमें दिल्ली जैसे महानगर में ट्रैफिक जाम की समस्या, बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या और सड़क दुर्घटनाओं के लगातार बढ़ते आंकड़ों को कम करने में मदद जरूर मिली है लेकिन महानगर की हर वर्ष बढ़ती जनसंख्या के कारण उतने सकारात्मक परिणाम नहीं मिले हैं, जितने की अपेक्षा की गई थी। राजधानी में लगभग 35 लाख वाहन हैं जो हर वर्ष दस प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहे हैं। कुल वाहनों में 90 प्रतिशत निजी हैं। निजी वाहनों का प्रयोग यहां के लोगों की मजबूरी रही है क्योंकि सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं पर्याप्त नहीं पड़तीं। जापान, सिंगापुर, हांगकांग, कोरिया और जर्मनी की तर्ज पर इस परियोजना को दिल्ली में शुरू किया गया था। मैट्रो रूटों का लगातार विस्तार किया गया और अब तो मैट्रो का विस्तार गुडग़ांव, फरीदाबाद तक हो चुका है और अन्य प्रोजैक्टों पर काम चल रहा है।
मैट्रो परियोजना की सफलता को देखते हुए लखनऊ, बेंगलुरु, मुम्बई ने भी इसे अपनाया और अन्य शहरों में भी परियोजनाएं तैयार की जा रही हैं। मैट्रो की व्यवस्था अत्याधुनिक तकनीक से संचालित है। कोरिया से आयातित मैट्रो ट्रेनों का संचालन प्रशिक्षित कर्मचारी करते हैं। लोगों के समय की बचत हो रही है और मैट्रो में सफर करने वालों को ट्रैफिक जाम से भी मुक्ति मिली है। यह ठीक है कि कुछ स्टेशनों पर काफी भीड़ होती है और मैट्रो में सवार होने और उतरने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है। मैट्रो ट्रेन को लोगों ने अपनाया इसलिए क्योंकि इसमें उन्हें सुविधा रहती है और किराया भी वाजिब था। कम किराए में एयरकंडीशंड का मजा मिल रहा था लेकिन अब मैट्रो रेल के किराए में बढ़ौतरी कर दी गई है। अब न्यूनतम किराया दस रुपए और अधिकतम किराया 50 रुपए होगा। एक अक्तूबर से अधिकतम किराया 60 रुपए होगा। कुछ कम भीड़भाड़ वाले समय में स्मार्ट कार्डधारकों को किराए में दस फीसदी की छूट दी जाएगी। इससे पहले 2009 में मैट्रो ट्रेन के किराए बढ़ाए गए थे। किराए बढ़ाने की चर्चा काफी अर्से से चल रही थी। दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी किराए बढ़ाने का विरोध कर रही थी। दैनिक यात्रियों द्वारा भी किराए में बढ़ौतरी का विरोध किया जा रहा है। अब महज दो किलोमीटर के लिए उन्हें दस रुपए और अधिकतम सफर के लिए 30 रुपए की बजाय उन्हें 50 रुपए देने पड़ेंगे। फरीदाबाद से करीब दो लाख 31 हजार यात्री हर रोज मैट्रो में सफर करते हैं। नए स्लैब में उनकी जेब पर हर माह 1200 रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसी तरह दिल्ली और गुडग़ांव के बीच मैट्रो में लाखों लोग सफर करते हैं उन पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
एक अक्तूबर से जब दूसरा स्लैब लागू हो जाएगा तो फरीदाबाद से दिल्ली आकर नौकरी करने वालों पर ज्यादा बोझ बढ़ेगा। रेट थोड़े बढ़ते तो सही था लेकिन किराया वृद्धि दोगुनी कर दी गई है। महंगाई की मार से परेशान आम जनता के बजट पर दिल्ली मैट्रो ने दोहरा वार किया है। निश्चित रूप से इस फैसले से लोग प्रभावित होंगे। दिल्ली में वैसे भी परिवहन के दूसरे साधन नाकाफी साबित हो रहे हैं।
अब सवाल यह भी है कि मैट्रो का घाटा 708 करोड़ रुपए सालाना हो चुका है, पिछले 8 साल से किराए में कोई बढ़ौतरी नहीं की गई लेकिन मैट्रो का संचालन अनुपात लगातार बढऱहा है। बिजली की दरें भी महंगी हुई हैं। यद्यपि मैट्रो रेल की वित्तीय स्थिति मजबूत है और उसे दैनिक संचालन के लिए ऋण की जरूरत नहीं लेकिन जापान से लिया गया ऋण चुकाने में उसे दिक्कत आ सकती थी।
मैट्रो के लगातार विस्तार के लिए भी धन की जरूरत पड़ेगी। खर्च बढ़ता गया लेकिन आमदनी नहीं बढ़ी। अगर किराए नहीं बढ़ाए जाते तो इसकी हालत डीटीसी की तरह खस्ता हो सकती थी। यात्रियों का कहना है कि जब यात्रियों की संख्या अधिक हो तो किराया कम होना चाहिए, दूसरी तरफ तर्क यह है कि विकास परियोजनाओं के लिए किराया बढ़ाना जरूरी था। कोई भी निगम लोगों को खैरात बांट-बांट कर अपनी परियोजनाओं को लम्बे समय तक नहीं चला सकता।
सुविधाएं और सुहाना सफर लोगों को तभी अच्छा लगता है जब किराए कम हों। अगर मैट्रो की यात्रा आपकी बचत पर ही डाका डाल दे तो क्या होगा? कोई नहीं चाहता कि मैट्रो जैसे विश्वसनीय सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट घाटे में चलें लेकिन खतरा इस बात का है कि यदि आम जनता ने मैट्रो सेवाओं से दूरी बना ली तो फिर मैट्रो का क्या होगा। लोग फिर बसों और निजी वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए आकर्षित हो सकते हैं। जो लोग व्यस्ततम स्टेशनों से मैट्रो में सवार होने के लिए धक्के खाकर चढ़ते हैं, उनके लिए धक्के खाना भी महंगा होगा तो वे मैट्रो में क्यों जाएंगे लेकिन सवाल यह है कि लोगों के पास विकल्प सीमित हैं, मजबूरी में उन्हें मैट्रो पर सवार होना ही होगा। देखना है कि मैट्रो का स्वास्थ्य कितना अच्छा होता है। सुहाना सफर महंगा हो चुका है।