अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान के फरेब का पर्दाफाश करते हुए अन्तरिम आदेश दे दिया है कि उसके मुकदमे का अंतिम फैसला होने तक वह आगे कोई कार्रवाई न करे और इससे जुड़े हालात से भारत को वाकिफ रखे। दुनिया की इस सबसे बड़ी न्यायिक अदालत के 15 न्यायाधीशों ने एकमत से फैसला देते हुए प्राथमिक तौर पर पाकिस्तान की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि कुलभूषण के मामले में सुनवाई करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। उसने पाकिस्तान की यह दलील भी खारिज कर दी कि भारत और उसके बीच में 2008 में आतंकवाद के आरोपों में पकड़े गये एक-दूसरे के नागरिकों के बीच कानूनी मदद मुहैया कराने के मुसल्लिक जो करार हुआ था वह इस मामले में लागू नहीं होता है और विएना समझौते के वे प्रावधान लागू होते हैं जो एक-दूसरे के कैदियों को ऐसे मामलों में मिले होते हैं। हकीकत यह है कि भारत के वकील श्री हरीश साल्वे ने इस अदालत के सामने कुलभूषण व भारत के हक में दलीलें रखी थीं उनमें किसी एक का भी पाकिस्तान सन्तोषजनक उत्तर अदालत में पेश नहीं कर सका और विद्वान न्यायाधीशों ने अपने समक्ष प्रस्तुत दलीलों और सबूतों के आधार पर फैसला दिया। न्यायालय ने इस बात का भी संज्ञान लिया है कि कुलभूषण को 3 मार्च, 2016 को गिरफ्तार किया गया और भारत को इसकी सूचना 20 मार्च को दी गई।
पहली नजर में अदालत ने पाकिस्तान के लगभग सभी तर्कों को खोखला माना है और उसी के अनुसार अपना फैसला दिया है। अब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान कुलभूषण को मनमाने तरीके से फांसी पर नहीं लटका सकता है। श्री साल्वे ने अपनी ठोस दलीलें रखकर पाकिस्तान को इस बात के लिए भी पाबन्द कर दिया है कि पाकिस्तान के कानून के मुताबिक कुलभूषण के पास दया याचना करने की जो अवधि अगस्त महीने तक है, उसके खत्म होने के बाद भी पाकिस्तान उसे फांसी पर नहीं लटका सकता है क्योंकि अदालत ने हुक्म दे दिया है कि कुलभूषण को तब तक कुछ नहीं किया जा सकता जब तक कि यह अदालत अपना अन्तिम फैसला नहीं सुना देती। इसके साथ ही अदालत ने बहुत ही साफगोई के साथ कह दिया है कि उसका फैसला पाकिस्तान के लिए मानना जरूरी होगा। इससे ये अटकलें खत्म हो गई हैं कि अदालत का आदेश मानने के लिए पाकिस्तान बाध्य नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के तहत इस अदालत के निर्देश राष्ट्र संघ के सदस्य सभी देशों के लिए बाध्यकारी होते हैं बशर्ते वह देश राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद का सदस्य होने की वजह से वीटो ताकत का हकदार न हो। जाहिर है कि पाकिस्तान के पास यह ताकत नहीं है।
जाहिर तौर पर यह ताकत भारत के पास भी नहीं है अत: दोनों ही देश उसके फैसले को मानने के लिए बाध्य होंगे और इससे ऊपर यह है कि भारत स्वयं कुलभूषण को न्याय दिलाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की शरण में गया है तो न्यायालय का यह निर्देश पाकिस्तान के लिए चेतावनी है कि वह हालात से भारत को वाकिफ रखे और उसे भी बाखबर रखे। पूरे मामले में पाकिस्तान की फजीहत पूरी दुनिया के सामने हो चुकी है और यह तथ्य सामने आ चुका है कि किस तरह पाकिस्तान ने भारत के एक रिटायर्ड सैनिक अधिकारी को ईरान से अगवा कर बलूचिस्तान लाकर गिरफ्तार किया और उस पर जासूसी व आतंकी गतिविधियों में सक्रिय होने के आरोप लगाकर जबर्दस्ती उससे इकबालिया बयान लिया और बाद में एक फौजी अदालत की बन्द कमरे की कार्रवाई में उसे फांसी की सजा सुना डाली। इससे साबित हो गया है कि पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को किस तरह तोड़-मरोड़ कर भारत के खिलाफ साजिश करने में लगा हुआ है और खुद को आतंकवाद का शिकार बताने की कोशिश कर रहा है लेकिन ऐसे समय में पूरा भारत एक होकर पाकिस्तान की साजिशों का पर्दाफाश करने की कसम खाये बैठा है। देश के सभी राजनीतिक दलों ने भारत के कदम का एक स्वर से समर्थन किया है। कुलभूषण को न्याय दिलाने के लिए कांग्रेस से लेकर सभी दलों ने मोदी सरकार का साथ दिया है। भारत की यही ताकत है जो अचानक प्रकट हो जाती है। सवाल एक नागरिक का नहीं है बल्कि भारत के सम्मान का है और इसके लिए राजनीतिक मतभेदों का कोई मतलब नहीं होता है।