यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है, जो छात्रों को अराजकता में धकेल रही है। पिछले वर्ष टॉपर घोटाले के कारण बिहार और राज्य की शिक्षा व्यवस्था की देशभर में जमकर खिल्ली उड़ी थी और इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ। पिछले वर्ष की टॉपर रूबी राय को गिरफ्तार किया गया था और इस वर्ष के टॉपर गणेश को गिरफ्तार कर लिया गया है। परीक्षा में टॉप करने वाला गणेश दो दिन तक गायब रहा लेकिन तीसरे दिन एक न्यूज चैनल उस तक पहुंच ही गया। उसकी पोल तब खुली जब उसने भी रूबी राय की तर्ज पर सवालों के जवाब दिए। आट्र्स की टॉपर रही रूबी राय ने पत्रकारों के सामने पॉलिटिकल साइंस को प्राडिकल साइंस बताया था। गणेश को संगीत विषय के प्रेक्टिकल में 70 में से 65 नम्बर मिले, थ्योरी में 18 अंक हासिल किए लेकिन संगीत में सुरताल, गाने और मुखड़े के बारे में वह कोई उत्तर नहीं दे सका। सही जवाब देता भी कैसे क्योंकि जिस रामनंदन सिंह जगदीप नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय में गणेश ने पढ़ाई की है, वहां संगीत और वाद्ययंत्रों की सुविधा ही नहीं है। विद्यालय में संसाधनों की घोर कमी है। प्रयोगशाला और लाइब्रेरी नाम के लिए चलाई जा रही हैं। गणेश को एडमीशन फार्म में जन्मतिथि और अन्य भ्रामक जानकारी देने पर गिरफ्तार कर लिया गया है और रूबी राय की तरह उसका भी परिणाम निलम्बित कर दिया गया। आखिर 42 वर्ष की उम्र को 24 बताकर उसे टॉपर बनने की क्या सूझी? हालांकि गणेश ने कई सवालों के जवाब सटीक और सही दिए लेकिन अब कानून की नजर में अपराधी हो चुका है। राज्य में हाहाकार मचा हुआ है, क्योंकि बिहार के इंटर का रिजल्ट सिर्फ 35 फीसद रहा है। यानी 8 लाख बच्चे फेल हो गए हैं, जो सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी मांग है कि उनकी उत्तर पुस्तिकाएं दोबारा जांची जाएं।
सुशासन बाबू के नाम से चर्चित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने शिक्षा के लिए सबसे ज्यादा बजट दिया हुआ है। राज्य में शिक्षा के लिए बजट कुल बजट का करीब 25 फीसदी है। इसके बाद भी शिक्षा व्यवस्था पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। महागठबंधन सरकार के दो साल में लगातार कई बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी बहुत खुश होंगे क्योंकि उन्होंने आपरेशन क्लीनअप की शुरूआत कर दी है। फेल सिर्फ बिहार के छात्र ही नहीं सरकार भी फेल हुई है। बिहार में जितने भी सफल विद्यार्थी हैं वे अपने बलबूते पर पास हुए हैं न कि बिहार में शिक्षा माफिया की व्यवस्था से। जिस सख्ती के साथ इस बार सभी परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा ली गई यदि उसी अनुपात में पठन-पाठन पर बल दिया जाता तो शायद ऐसी स्थिति कभी नहीं आती।
अब यह जुमला लोकप्रिय हो रहा है:
”लालू किए चारा घोटाला,
बेटा किए मिट्टी घोटाला,
और साथी किए शिक्षा घोटाला।”
बिहार में जो कुछ हुआ शर्मनाक है। शिक्षा क्षेत्र में अराजकता के पीछे है भ्रष्टाचार। 2016 के टापर्स घोटाले में दो दिन पहले ही प्रवर्तन निदेशालय ने कथित अनियमितताओं की जांच के लिए मनीलांड्रिंग मामला दर्ज कर लिया है। निदेशालय ने बिहार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह और 4 प्रिंसीपलों समेत 8 लोगों के विरुद्ध आपराधिक केस दर्ज किया है। कौन नहीं जानता कि बिहार में नकल कराने के लिए नकल माफिया ठेके पर काम करता था, परीक्षा में अच्छे अंक दिलाने के लिए बच्चा राय समेत कई अन्य शिक्षा माफिया बच्चों के अभिभावकों से लाखों रुपए वसूलता था। इन सबके तार शिक्षा बोर्ड के अधिकारियों से जुड़े होते थे। जांच के दौरान यह बात सामने आई कि बच्चा राय और उसकी बेटी के नाम दो करोड़ से भी ज्यादा की सम्पत्ति है। निजी शिक्षा संस्थानों और कोङ्क्षचग सैंटरों ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है। लोग भले ही व्यंग्य और तर्क दोनों का मजा ले रहे हैं। चाय की चुस्कियों के साथ समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचारों को किस मूल्य के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए, इसकी जरा भी फिक्र नहीं करते।
टीवी चैनलों ने रूबी को नकाब लगाकर पेश किया था, अब गणेश की मुंह ढांप कर गिरफ्तारी की तस्वीरें आ रही हैं, जबकि उसका चेहरा पहले ही उजागर हो चुका है। शिक्षा जगत में नए घोटाले ने एक ऐसे अध्याय को जन्म दे दिया जिस पर प्रतिक्रिया कई वर्षों तक होती रहेगी। गणेश ने नियमों का उल्लंघन कर परीक्षा दी, लेकिन ऐसी आवाजों का उठना कि उसे दलित होने के कारण फंसाया जा रहा है, वास्तव में व्यवस्था के लिए घातक है। अनैतिक हथकंडे अपनाने के लिए बच्चों के अभिभावक भी कोई कम जिम्मेदार नहीं। शिक्षा की प्रक्रिया और प्रणाली दुरुस्त करने की जरूरत है। डर तो इस बात का भी है कि फेल हुए छात्रों में से कुछ आत्महत्या ही न कर लें। आज भारत में कौशल विकास की बात हो रही है, लेकिन नकल मारकर पास होने वालों के लिए क्या कौशल विकास सम्भव है? भारत कैसे प्रगति करेगा? जिस बिहार ने नालंदा जैसा विश्वविद्यालय विश्व को दिया, जहां दूर-दूर से लोग पढऩे आते थे, उस बिहार में शिक्षा की हालत देखकर लोग आंसू न बहाएं तो क्या करें?